Ranchi-धनबाद के बाद लोहरदगा में भी कांग्रेस का कांटा फंसता दिखने लगा है, जिस तरीके से गैंगस्टर प्रिंस खान ने भाजपा प्रत्याशी ढुल्लू महतो के पक्ष में बैटिंग करते हुए सरयू राय को निशाने पर लिया है और पिछड़ी जातियों का विरोधी होने का आरोप लगाया है. यह दावा किया है कि महतो होने कारण सरयू राय ढुल्लू महतो को पचा नहीं पा रहे हैं. उसके बाद एक तरफ पिछड़ी जातियों की गोलबंदी और तो दूसरी ओर अगड़ी जातियों का धुर्वीकरण की आशंका जतायी जाने लगी है. और इस बदलती सियासत के बीच कांग्रेसी रणनीतिकारों के सवाल खड़ा होने लगा है कि सामाजिक धूर्वीकरण के बीच में उनका प्रत्याशी किस सामाजिक समूह से हो. जिसके बूते एक तरफ पिछड़ी जातियों को साध जा सके तो दूसरी ओर अगड़ी जातियों में फैलती नाराजगी को भी समेटा जाय. अभी धनबाद की उलझन दूर भी नहीं हुई थी कि लोहरदगा में चमरा लिंडा की संभावित इंट्री से कांटा फंसते दिखने लगा है.
चमरा लिंडा की इंट्री से त्रिकोणीय हो सकता है लोहरदगा का मुकाबला
ध्यान रहे कि भाजपा ने लोहरदगा से इस बार राज्य सभा सांसद रहे समीर उरांव को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर सुखदेव भगत पर से दांव लगाया है. लेकिन जैसे ही सुखदेव भगत के नाम की घोषणा हुई झामुमो विधायक चमरा लिंडा की नाराजगी की खबर तैरने लगी. सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा तेज है कि इस बार भी चमरा लिंडा मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. हालांकि चमरा लिंडा अभी अपना पत्ता खोल नहीं रहे हैं, लेकिन चमरा के करीबी इसकी ताल जरुर ठोकते दिख रहे हैं और सियासी उलझन के बीच झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य भी इशारों ही इशारों में कांग्रेस को अपनी जमीन ताकत परखने की सलाह दे रहे हैं. कांग्रेस की नसीहतों की घूंट पिलाते सुप्रियो ने कहा है कि सिर्फ सीटों की संख्या नहीं, अपनी अपनी जमीनी ताकत भी देखना परखना चाहिए. सिर्फ उम्मीदवार का एलान कर देने से भर से फतह नहीं होती, उसके पीछे जमीनी ताकत भी होना चाहिए, यदि लोहरदगा सीट झामुमो के पास होती तो निश्चित रुप से हम कांग्रेस की तुलना में बेहतर नतीजा देंते. लेकिन इसके साथ ही इस बात का आश्वासन भी दिया कि यदि कांग्रेस अपने संगठन को दुरुस्त रखे, पूरी ताकत और सांगठनिक क्षमता के साथ मैदान में उतरे, तो हमारा एक एक कार्यकर्ता जीत के लिए जान लड़ा देगा, बावजूद इसके चमरा लिंडा के सवाल पर चुप्पी साध गयें.
इसके पहले भी लोहरदगा से किस्मत आजमा चुके हैं चमरा लिंडा
यहां बता दें कि चमरा लिंडा इसके पहले भी वर्ष 2009 में निर्लदीय और 2014 में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर अपनी किस्मत आजमा चुके हैं और दोनों ही बार प्रदर्शन काफी बेहतर रहा. वर्ष 2009 में निर्दलीय रहते हुए भी दूसरा स्थान प्राप्त किया था और महज आठ हजार के मात खानी पड़ी थी. यदि उस वक्त रामेश्वर उरांव कांग्रेस की ओर मैदान में उतर कर 1,29,622 वोट नहीं काटे होते तो चमरा लिंडा वर्ष 2009 में ही संसद पहुंच चुके होते. जबकि वर्ष 2014 में चमरा लिंडा ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर 1,18,355 मत पाया था, दूसरे स्थान पर 2,20,177 मत के साथ कांग्रेस के रामेश्वर उरांव थें, जबकि 2,26,666 के साथ भाजपा के सुर्दशन भगत बाजी मार गये थें. चमरा लिंडा के करीबियों का दावा है कि जब चमरा निर्दलीय और तृणमूल कांग्रेस जैसी अनजान सी पार्टी के बैनर पर भी अपना दम खम दिखला सकते हैं तो इंडिया गठबंधन ने बार बार मात खाते रहे सुखदेव भगत पर दांव क्यों लगाया. आखिर कांग्रेस को चमरा लिंडा के चेहरे से आपत्ति क्यों है. शायद चमरा लिंडा की इसी सियासी ख्वाहीश को अंजाम तक पहुंचाने की चाहत में इस बार झामुमो चमरा लिंडा को मैदान में उतराने की तैयारी में था. लेकिन कांग्रेस ने एकतरफा अपने प्रत्याशी का एलान कर दिया, इस प्रकार जो सीट इंडिया गठबंधन के खाते में बेहद आसानी के साथ आ सकती थी, उसकी संभावना अब धूमिल होती दिखने लगी.
क्या है सामाजिक और सियासी समीकरण
यहां यह भी याद रहे कि लोहरदगा संसदीय सीट में आने वाले मांदर विधान सभा से कांग्रेस से शिल्पी नेहा तिर्की, सिसई से झामुमो का जिगा सुसारन होरो, गुमला से झामुमो का भूषण तिर्की, विसुनपुर से झामुमो के टिकट पर खुद चमरा लिंडा और लोहरदगा से कांग्रेस के रामेश्वर उरांव है. यानि कुल पांच विधान सभा में आज झामुमो का तीन और कांग्रेस का दो विधायक है. जबकि लोहरदगा लोकसभा में आज के दिन भाजपा के पास एक भी विधायक नहीं है. यही कारण था कि लोहरदगा सीट को इंडिया गठबंधन की सबसे संभावित सीट मानी जा रही थी. लेकिन चमरा लिंडा की इस संभावित इंट्री से पूरा खेल बिगड़ता नजर आ रहा है. हालांकि नामांकन की तिथि 18 से 25 अप्रैल तक है. यदि इस बीच कांग्रेस चमरा लिंडा का मान मनौबल में सफल होता है, तब तो बात बन सकती है, लेकिन यदि बात नहीं तो राह मुश्किल साबित हो सकती है. अब देखना होगा कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने प्रत्याशी घोषित करने में तो बाजी मार ली, लेकिन इस उलझन को दूर करने में कितनी ताकत लगाते हैं.
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