Patna- मध्य निषेध विभाग में सचिव पद पर कार्यरत के.के पाठक को जब शिक्षा विभाग का अपर मुख्य सचिव की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी. तब यह दावा किया था कि शिक्षा विभाग में बड़ा ऑपरेशन होने वाला है और इस ऑपरेशन का सही संचालन के लिए सीएम नीतीश कुमार ने अपने सबसे तेज-तर्रार अधिकारी को शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चन्द्रशेखर के साथ लगाया है, हालांकि तब भी के.के पाठक पर कई सवाल खड़े किये गये थें और यह प्रश्न भी उठाया गया था कि मध्य निषेध विभाग के सचिव के रुप में केके पाठक बूरी तरह से असफल रहे हैं, क्योंकि उनके रहते ही बिहार के अलग-अलग हिस्सों से जहरीली शराब पीने से मौत की खबर आयी.
सत्ता के गलियारों में सक्रिय एक खेमे के द्वारा यह भ्रम फैलाने की भी कोशिश की गयी कि के.के पाठक को शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चन्द्रशेखर की अक्षमता पर नियंत्रण पाने के लिए लाया गया है, उनका संकेत था कि शिक्षा मंत्री के रुप में प्रोफेसर चन्द्रशेखर अपनी भूमिका का निर्वहन नहीं कर रहे हैं, और इसी कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह फैसला करना पड़ा. के.के पाठक ने भी शुरुआती दिनों में इस बात को स्थापित करने की कोशिश भी की उनका इरादा बिहार की शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने का है, उनके द्वारा तेजी से स्कूलों का औचक निरीक्षण की शुरुआत की गयी और बड़े ही सुनियोजित तरीके से इस औचक निरीक्षण को मीडिया की सुर्खियां बनाया गया.
शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य से मुक्त करने का किया गया था एलान
के.के पाठक की ओर से शिक्षकों को गैर शक्षैणिक कार्यों से मुक्त करने का एलान किया गया, और दावा किया गया कि शिक्षक अब सिर्फ पठन-पाठन का कार्य करेंगे, लेकिन जैसे ही जाति आधारित जनगणना को पटना हाईकोर्ट से हरी झंडी मिली आनन-फानन में इस आदेश को तिलाजंलि देकर तुरंत सभी शिक्षकों को जाति गणना का आदेश दिया गया. और अब उसी शिक्षा विभाग की ओर से शिक्षकों को बोरा गिनने का फरमान सुनाया गया है. नये आदेश में सभी सरकारी स्कूलों के हेममास्टरों को पठन पाठन के साथ एक और नया टास्क जोड़ दिया गया है, अब शिक्षक अपनी सुबह की शुरुआत बोरों के बंडल के साथ करेंगे, बोरों का बंडल के लेकर हेडमास्टर साहब बाजार पहुंचेंगे और उसकी बिक्री कर सरकारी खाते में उस राशि को जमा करेंगे. यही है के. के पाठक के ऑपरेशन एजुकेशन की सच्चाई.
यहां बता दें कि के.के पाठक बारे में कई कहानियां राजधानी पटना में घूमती रहती है, हालांकि उन कहानियों में कितनी सच्चाई है, उसका कोई आधार नहीं है, लेकिन इतना तो तय है कि मध्य निषेध विभाग में भी के.के पाठक ने कोई करिश्मा नहीं किया था और शिक्षा विभाग में किसी बड़े बदलाव की आशा बेकार है.
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