रांची(RANCHI): राज्य की हेमंत सरकार ने रघुवर शासन काल में बंद किये गये सभी स्कूलों को एक बार फिर से खोले जाने का निर्णय लिया है, झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद के निदेशक किरण कुमारी पासी ने सभी उपायुक्तों को पत्र लिख कर वर्ष 2016 और उसके बाद बंद किये गये सभी स्कूलों की सूची मांगी है.
क्या था फैसला
यहां बता दें कि रघुवर शासन काल में वैसे सभी स्कूलों का मर्जर करने का फैसला लिया गया था, जिन स्कूलों में बच्चों की संख्या नगण्य थी, या एक ही परिसर में दो-दो स्कूलों का संचालन किया जा रहा था या फिर एक किलोमीटर के दायरे में एक से अधिक प्राथमिक स्कूल चल रहे थें. इसके साथ ही तीन किलो मीटर के दायरे में संचालित होने वाले दो-दो मध्य विद्यालयों का भी मर्जर करने का भी फैसला लिया गया था. इसी प्रकार विभिन्न जिलों के 527 मध्य विद्यालयों को अवक्रमित कर प्राथमिक विद्यालय बनाने का निर्णय हुआ था.
हंगामा क्यों बरपा
रघुवर शासन काल में लिये गये इन फैसलों का बाद में विरोध शुरु हो गया. जनप्रतिनिधियों का कहना था कि स्कूलों का मर्जर करने के पहले जनप्रतिनिधियों की राय भी नहीं ली गयी, सिर्फ प्राथमिक विद्यालयों के एक किलोमीटर और मध्य विद्यालयों के लिए तीन किलो मीटर का पैमाने के आधार पर मशीनी रुप से फैसला ले लिया गया.
इसके कारण कई ऐसे विद्यालयों को भी बंद कर दिया जो बेहद दुर्गम इलाकों में थें, इसके कारण पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में शिक्षा का संकट पैदा हो गया, इसका सबसे खराब असर राज्य के आदिवासी और वंचित समुदायों पर पड़ा, उनके बच्चों की शिक्षा दाव पर लग गयी. जनप्रतिनिधियों का यह भी कहना था कि मर्जर के बाद कई स्थानों पर बच्चों को राष्ट्रीय/राज्य मार्गों को पार कर विद्यालय जाना पड़ रहा है, कभी भी उनके साथ कोई बड़ा हादसा हो सकता है. इन नौनिहालों की जिंदगी दाव पर लगी हुई है.
रघुवर सरकार का क्या था दावा
तब स्कूलों के मर्जर का बचाव करते हुए तात्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक आकांक्षा रंजन ने कहा था कि 4600 स्कूलों के मर्जर से राज्य सरकार को सालाना करीबन 400 करोड़ रुपए की बचत होगी. साफ है कि सरकार इस मामले को सिर्फ बचत और खर्च के आधार पर देख रही थी, लेकिन यह सवाल तब भी बना हुआ था कि जब इन क्षेत्रों में पब्लिक स्कूलों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है, सरकार शिक्षा जैसी बुनियादी संरचना से अपना हाथ क्यों खिंचना चाह रही है. यह सवाल तब भी उठा था कि इस नीति से पब्लिक स्कूलों को लाभ होगा और समाज का सबसे कमजोर सरकार के इस निर्णय से दुष्प्रभावित होगा.
अब क्या होगा
अब झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद् के निदेशक किरण कुमारी पासी ने सभी उपायुक्तों को पत्र लिख कर इस बात की जानकारी मांग है कि किन-किन विद्यालयों के मर्जर से छात्र-छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, उनका पठन-पाठन प्रभावित हुआ है. इसकी पूरी सूची बना कर भेजी जाए, माना जा रहा है कि सरकार जल्द ही इन विद्यालयों को एक बार फिर से शुरु कर सकती है.
4+