रांची(RANCHI): 'इंडिया' गठबंधन के सभी घटक दलों की बैठक मुंबई में रखी गई थी जिसमें कई एजेंडों पर वार्ता हुई और कई रणनीति बनाई गई, वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार ने एक देश-एक चुनाव का नारा उछाल दिया है .एक देश-एक चुनाव' की बात बहुत पहले से कही जाती रही है,बताया जाता है कि पहले की सरकारों में भी इस पर बात होती रही है. हालांकि कुछ रिपोर्ट के बाद इसको लेकर मामला आगे नहीं बढ़ा,लेकिन थोड़ा और पीछे चलें तो यह भी एक सत्य-तथ्य है कि, भारत में, 1967 तक एक साथ चुनाव कराने का चलन था.गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने शुक्रवार को एक कमेटी का गठन भी किया है. इसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपी गई है.बताया जा रहा हैं कि जो कमेटी बनाई गई है वो एक देश-एक चुनाव को लेकर काम करेगी. सरकार ने ये कमेटी का गठन ऐसे समय किया है, जब इस बात की चर्चा खूब है कि संसद के विशेष सत्र में एक देश-एक चुनाव को लेकर बिल लाया जा सकता है. संसद का विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर तक चलेगा.
एक देश एक चुनाव का क्या है मतलब
एक देश एक चुनाव का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और सभी राज्य के विधानसभा एक साथ होंगे,यही नहीं मतदान भी इसी समय के आस पास होंगे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आजादी के बाद 1952,1957,1962, और 1967 में लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ हुआ करता था लेकिन 1968,1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई थीं और ठीक इसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गईं, और इसके बाद से ही एक देश एक चुनाव की परंपरा टूट गई. इस परंपरा को फिर से लागू करने के लिए फिर से चर्चाएं तेज हो गई है
एक देश एक चुनाव से क्या हैं फायदे?
एक देश एक चुनाव के कई फायदे फिलहाल बताए जा रहे हैं,एक देश एक चुनाव की परंपरा लागू करने से चुनाव में पैसों की बर्बादी बचेगी. साथ ही अलग अलग चुनाव होने से कई राज्यों में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तो कहा जा रहा है कि यह परंपरा लागू करने से चुनाव कराने की चुनौती से भी मुक्ति मिलेगी.मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मानना है कि ऐसा करने से चुनाव में इस्तेमाल होने वाले काले धन पर भी लगाम लगाया जा सकता है.इस परंपरा को लागू करने से सरकारी संसाधनों का उपयोग सीमित होगा. और इससे देश में विकास कार्यों की रफ्तार पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा.
एक देश एक चुनाव लागू होने से क्या है नुकसान?
एक साथ चुनाव करवाने से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के लिए संवैधानिक संशोधन करना पड़ेगा. साथ ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और अन्य संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन करना होगा, एक साथ चुनाव कराने पर क्षेत्रीय दलों के जितने भी मुद्दे हैं वह अच्छे से नहीं उठ पाएंगे क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे केंद्र के पास हैं .इसके अलावा वे चुनावी खर्च और चुनावी रणनीति के मामले में भी राष्ट्रीय पार्टियों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे. बुद्धिजीवियों का यह कहना है कि देश विविधताओं से भरा हुआ है और अलग-अलग राज्यों में जनादेश के हिसाब से कई बार सरकारी अल्पमत में आ जाती हैं जिस कारण से विधानसभा भंग कर दी जाती हैं और फिर से चुनाव कराया जाता है. ऐसे में या महसूस होता है कि 5 साल में एक बार केंद्र और राज्यों के चुनाव होने से जनता से जुड़े मुद्दे पर आवाज उठनी कम हो जाएगी.आज जो व्यवस्था है उसमें सभी दलों के जनप्रतिनिधियों को यह जरूर लगता है कि वह जनता से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय रहें.
4+