रांची(RANCHI): पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन भाजपा में जाने के बाद से ही झारखंड की राजनीति में चर्चा का विषय बने हुए हैं. भाजपाई होने के बाद परिवर्तन यात्रा के विज्ञापन और पोस्टर से गायब होना, चंपाई के लिए चिंता पैदा कर रहा है. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि भाजपा में शामिल हो कर चंपाई ने कोई गलती तो नहीं कर दी. अब इस परेशानी के बीच ही चंपाई सोरेन ने अपने काफिले की सभी गाड़ियों को वापस भेज दिया है. सरकार को सभी गाड़ी लौटा दिया है. आखिर अब सवाल उठने लगा की चंपाई सोरेन किस परेशानी में है. क्या जिस उम्मीद से भाजपा में शामिल हुए उस पर पानी फिरा या कुछ और खेला हो गया.
सोशल मीडिया पर सुरक्षा से खिलवाड़ का लगाया आरोप
बता दें कि, चंपाई सोरेन के पास सीएम कारकेड की चार गाड़ियां थी. जिसे विभाग ने वापस मांगी. लेकिन गुस्से में चंपाई ने अपने कारकेड की सभी गाड़ियों को वापस भेज दिया है. हालांकि, चंपाई सोरेन इस संबंध में कुछ भी बोलने से परहेज कर रहे हैं. आखिर सभी गाड़ियों को क्यों वापस भेज दिया. इसका जवाब नहीं दे रहे हैं. इससे साफ है कि चंपाई सोरेन परेशान हैं. लेकिन चंपाई सोरेन ने अपने सोशल साइट पर पोस्ट कर सुरक्षा से खिलवाड़ का आरोप राज्य सरकार पर लगाया है. उन्होंने लिखा है कि प्रोटोकॉल के तहत उन्हें मिलने वाली गाड़ियों को वापस बुला कर दिखाया गया है कि कैसे तानाशाही की जाती है.
सम्मान के साथ धीरे-धीरे पार्टी से हो रहे किनारा
चंपाई सोरेन ने तो एक मांझे हुए नेता के जैसे ट्वीट कर दिया. लेकिन अब समझिए कि आखिर क्यों परेशान है चंपाई? हाल में शुरू हुई भाजपा की परिवर्तन यात्रा में चंपाई सोरेन की तस्वीर कम दिख रही है. इसके अलावा अन्य नेताओं के मुकाबले सक्रियता भी कम देखी जा रही है. ऐसा लग रहा है कि पार्टी में शामिल कराने के बाद भाजपा ने सम्मान के साथ धीरे-धीरे चंपाई को किनारा लगाने में लगी है. इस वजह से भी चंपाई परेशान हो सकते हैं. सोच रहे होंगे कि आखिर क्या हो गया. स्वागत तो बड़े धूम धाम से किया गया, लेकिन अब बीच मझधार में किधर जाएंगे.
अब विधानसभा का चुनाव भी नजदीक है. चंपाई अपने राजनीतिक करियर में पहली बार तीर कमान की जगह कमल पर चुनावी दंगल में दिखेंगे. इससे जनता भी असमंजस में है कि चंपाई सोरेन किस दल में है. सबसे बड़ी बात कि कोल्हान और संथाल परगना में आदिवासी समुदाय सिर्फ गुरुजी और तीर धनुष को ही समझ पाते हैं. कोई दल का नाम और चिन्ह को नहीं पहचानते हैं. ऐसे में यह बात चंपाई को भी मालूम है. भले वह मुख्यमंत्री बन गए लेकिन गुरुजी के बराबरी और खुद की पहचान उतना नहीं बना सके है.
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