टीएनपी डेस्क(TNP DESK): -जगत प्रकाश नड्डा को एक बार फिर से बतौर भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी गयी है. इसके साथ ही उन पर इस वर्ष नौ राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव में भाजपा के माथे विजय तिलक लगवाने की जिम्मेवारी भी आ चुकी है. इन नौ राज्यों में कनार्टक, राजस्थान, मध्यप्रदेश और राजस्थान भी शामिल है, जहां पिछले चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन काफी लचर रहा था.
हालांकि बाद में जोड़-तोड़ सरकार को मध्यप्रदेश और कर्नाटक भाजपा ने सत्ता में वापसी तो कर ली, लेकिन अब जब एक बार फिर से पार्टी को जनता के पास जाना है, यह जनादेश इतना आसान नहीं रहने वाला.
पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को फ्रंट पर लाने की तैयारी
वैसे कहा जा रहा है कि कर्नाटक में एक बार फिर से पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को फ्रंट पर लाने की तैयारी की जा रही है, लेकिन राज्य में हालात भाजपा के ज्यादा अनुकूल नहीं नजर आ रहा है, खुद मुख्यमंत्री बोम्बई पर भ्रष्ट्रचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं. खास कर पार्टी संगठन में काफी नाराजगी देखी जा रही है.
येदियुरप्पा के केन्द्रीय नेतृत्व से नाराजगी की खबरें आती रहती
येदियुरप्पा को वहां की बड़ी आबादी लिंगायत का बड़ा और सर्वमान्य नेता माना जाता है, संभव है कि उनके एक्टिव होने से भाजपा के पक्ष में परिस्थितियां निर्मित हो, लेकिन बीच बीच में खुद येदियुरप्पा का केन्द्रीय नेतृत्व से नाराजगी की खबरें आती रहती है. इस दुविधा की स्थिति में क्या वह संकट मोचक की भूमिका में सामने आयेंगे और खास कर यह देखते हुए की उनकी उम्र उस सीमा को पार कर चुकी है, जहां से भाजपा में राजनीति की पारी खत्म होती है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा में आने का नगर निकाय चुनाव में नहीं मिला कोई विशेष लाभ
ठीक यही स्थिति मध्यप्रदेश की है, जहां पिछले चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था और यह स्थिति तब थी, जब मोदी मैजिक अपने चरम था, लेकिन इन पांच वर्षों में पार्टी ने ऐसा कोई करिश्मा नहीं किया है, जिसके बूते वह अपनी जीत का पुख्ता दावा करे, हां कुल मिलाकर उसके हिस्से में ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया की कांग्रेस में वापसी है. लेकिन यहां यह याद रहे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की मौजूदगी के बावजूद सिंधिया के इलाके में नगर निकाय चुनावों में भाजपा का प्रर्दशन काफी निराशाजनक रहा था. अब इसके सिवा राजस्थान और छत्तीसगढ़ की बात करें तो राजस्थान में हर पांच वर्ष के बाद सत्ता बदलने की प्रवृति रही है, लेकिन वहां भी भाजपा संगठन में मतभेद की खबरें है. वसुंधरा राजे, सतीश पूनिया के बीच तनातनी किसी से छिपी नहीं है. वसुंधरा राजे सिंधिया किसी भी कीमत पर किसी दूसरे किसी नेता को स्पेस देने को तैयार नहीं है, यही पार्टी में विवाद का कारण है, इस परिस्थिति में पार्टी एकजुट होकर किस प्रकार अशोक गहलोत का मुकाबला कर सकती है.
छत्तीसगढ़ में भूपेश बधेल की चुनौतियों का मुकाबला करना भी भाजपा के लिए आसान नहीं रहने वाला. पार्टी सूत्रों के अनुसार खुद आलाकमान को मध्य प्रदेश और कर्नाटक को लेकर शंकाएं हैं. इसके साथ ही भाजपा के लिए 2024 की तस्वीर साफ हो जायेगी. कहा जा सकता है छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश,राजस्थान और कर्नाटक वह चार राज्य हैं, जहां नड्डा की अग्नि परीक्षा होनी है, इसके साथ ही भाजपा के लिए 2024 की तस्वीर साफ हो जायेगी.
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