रांची(RANCHI)- रामगढ़ उपचुनाव में हार के बाद यूपीए खेमा में सन्नाटा पसरा है, कोई भी इस हार के बाबत अपना जुबान खोलने को तैयार नहीं है, खासकर कांग्रेस के अन्दर उपचुनाव के नतीजों के बाद आपसी गिरोहबंदी एक बार फिर से तेज हो गयी है. इसके साथ ही रामगढ़ में कांग्रेस की जीत के लिए दो सौ फीसदी गारंटी देने वाले हेमंत सोरेन के सामने भी कई यक्ष प्रश्न खड़े हो गये हैं. झामुमो के अन्दर चर्चा इस बात की भी है कि यदि कांग्रेस के बदले यहां से झामुमो का प्रत्याशी को उतारा गया होता तो शायद नतीजा दूसरा आता.
हर खेमे की नजर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर
वहीं दबी जुबान इस बात की भी चर्चा की जा रही है कि झारखंड कांग्रेस कई टूकडों में विभाजित है, हर टुकड़े का अपना नेता है, हर खेमा दूसरे खेमा को नीचा दिखाने की जुगत में बैठा है, सबकी नजर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर है. दावा यह भी है कि प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर विधायकों और कार्यकर्ताओं की पसंद नहीं है, जबकि प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे कांग्रेस के अंदर विभिन्न गिरोहों को एक साथ जोड़ने में असफल साबित हो रहे हैं. वहीं एक खेमा आदिवासी-मूलवासी विधायकों का भी है, जो कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर किसी आदिवासी मूलवासी को बिठाना चाहता है.
क्या इस कांग्रेस को सीट देना भाजपा को जीत का तोहफा देना नहीं होगा?
हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने हार के कारणों की समीक्षा की बात की है, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या टुकडों-टुकड़ों में विभाजित कांग्रेस हेमंत सोरेन के लिए नयी चुनौती बनने वाली है. क्या इस टुकड़ों-टुकडों में विभाजित कांग्रेस को साथ लेकर हेमंत सोरेन 2024 में भाजपा का रथ रोक पायेंगे? क्या इस कांग्रेस को सीट देना भाजपा को जीत का तोहफा देना नहीं होगा?
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