पटना(PATNA):- लालू परिवार और उनके करीबियों पर ईडी और सीबीआई की छापेमारी पर तंज कसते हुए बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने कहा है कि पिछले आठ सालों में ईडी और सीबीआई ने 3184 स्थानों पर छापेमारी की है, इसमें 95 फीसदी छापे विपक्ष के नेताओं और उनके समर्थकों पर की गयी है. उन्होंने कहा कि दस वर्षों की मनमोहन सरकार ने मात्र 112 रेड मारे गये थें. इन आकड़ों को सामने रख कर कोई भी समझ सकता है कि यह भ्रष्टाचार मिटाने की मुहिम है या विपक्ष कमजोर बनाने का हथकंडा.
केन्द्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग
यहां हम बता दें कि इसके पहले भी विपक्ष भाजपा पर केन्द्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाती रही है, विपक्ष का आरोप है कि भाजपा इन एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी दलों के नेताओं पर भाजपा में शामिल होने का दवाब बनाती है, लेकिन जब उसमें सफलता नहीं मिलती है, तो फिर छापेमारी शुरु कर दी जाती है, यही कारण है कि विपक्ष के जिन-जिन नेताओं पर ईडी की छापेमारी की गयी, उसमें से अधिकांश नेता आज भाजपा के साथ है. और वे सभी अब आरोप मुक्त हो गयें या उनके खिलाफ जांच बंद कर दी गयी.
जिन-जिन नेताओं का जमीर जिंदा वह भाजपा के खिलाफ खड़े हैं
बावजूद इसके जिन-जिन नेताओं का जमीर जिंदा है, जिनमें देश के प्रति प्यार और अपने सिन्धातों के प्रति आस्था है वह आज भी पूरी कुव्वत के साथ भाजपा की विभाजनकारी नीतियों का मुकाबला कर रहे हैं, अब आम अवाम को यह बात समझ में आने लगी है, यही कारण है कि अब ईडी और सीबीआई को कोई गंभीरता से नहीं लेता, उल्टे छापेमारी के बाद उन नेताओं के प्रति जनता की सहानुभूति पैदा होती है.
चुनाव की घोषणा होते ही भाजपा के पहले पहुंचती है सीबीआई और ईडी
उनका तर्क है कि जिन-जिन राज्यों में चुनाव की घोषणा होने वाली होती है, वहां भाजपा से पहले ईडी और सीबीआई सक्रिय हो जाती है, विपक्ष के नेताओं को निशाने पर लिया जाने लगता है, लेकिन बावजूद इसके भाजपा को हिमाचल, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, बंगाल, पंजाब, दिल्ली में हार का सामना करना पड़ा, साफ है कि ईडी और सीबीआई के छापे को अब जनमानस में संदेह की नजर से देखा जा रहा है. इन संस्थाओं की विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है.
एक -एक कर सभी आरोपी भाजपा में
यहां हम बता दें कि कभी शुभेंदु अधिकारी पर चीड फंड मामले में शामिल होने का आरोप लगाया जाता था, इसके साथ ही तृणमुल के कई नेताओं पर शारदा चिट फंड घोटाले में शामिल होने का गंभीर आरोप था, लेकिन वह सभी नेता एक-एक कर भाजपा में चले गये और भाजपा में उनका शानदार स्वागत हुआ, उनके खिलाफ सारी जांच बंद हो गयी, यही हाल महाराष्ट्र में भी हुआ, अजीत पवार के खिलाफ कभी भाजपा काफी आक्रमक हुआ करती थी, लेकिन महाराष्ट्र चुनाव के बाद अचानक से भाजपा ने अजीत पवार के साथ मिलकर सरकार बनाने का निर्णय ले लिया, हालांकि यह सरकार एक दिन भी नहीं चली. ठीक यही हाल असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्व सरमा के साथ हुआ, हेमंत विस्व सरमा के खिलाफ भाजपा भ्रष्टाचार की मुहिम चला रही थी, उनके खिलाफ हर दिन नये घोटाले को सामने लाया जा रहा था, लेकिन अचानक से एक दिन हेमंत विस्व सरमा ने अपना पाला बदला और भ्रष्टाचार की सारे आरोपों को भूल कर भाजपा उन्हें असम का मुख्यमंत्री बना बैठी. अब विस्व सरमा भाजपा के सिरमौर बने बैठे हैं.
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