टीएनपी डेस्क(TNP DESK): बिहार के बाद ओडिशा अब दूसरा प्रदेश है, जहां पिछड़ी जातियों की जातीय जनगणना की शुरुआत कर दी गयी है. 1मई से पूरे ओडिशा में पिछड़ी जातियों की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का आंकलन किया जा रहा है. इस सामाजिक शैक्षणिक के बहाने पिछड़ी जातियों की आजीविका, संसाधन और स्कूल कॉलेज तक उनकी पहुंच को चिह्नित किया जा रहा है.
सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का आकलन
बताया जा रहा है कि 27 मई को इस सर्वे का समापन हो जायेगा. और उसके बाद ओडिशा सरकार के सामने पिछड़ी जातियों की सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का पूरा ब्योरा उपलब्ध होगा. जिसके बाद पिछड़ी जातियों की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए उनके लिए कल्याणकारी कार्यक्रमों का निर्माण किया जा सकेगा. बिहार से अलग हटकर ओडिशा सरकार के द्वारा इस सर्वे को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरीके से करनी की सुविधा दी जा रही है, यानि इसकी प्रश्नावली को ऑफलाइन मोड में भी भरा जा सकता है.
मोदी सरकार से जातीय जनगणना की मांग लेकिन ओडिशा में विरोध
इस बीच केन्द्र में जातीय जनगणना के समर्थन में खड़ी कांग्रेस के द्वारा ओडिशा में बीजू जनता दल की इस कोशिश का विरोध किया जा रहा है, कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इसे पिछड़ी जातियों को लुभाने की राजनीति बता रहे हैं.
जाति की राजनीति नहीं है जातीय जनगणना
हालांकि ओडिशा के एससी, एसटी विकास, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री जगन्नाथ सरकार ने दावा किया है कि इस बीजू जनता दल कभी भी जाति की राजनीति नहीं करती, इस गणना का उद्देश्य कल्याणकारी योजनाओं का संचालन के लिए पिछड़ी जातियों की सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का जमीनी आकलन भर है. जिससे कि उनकी सामाजिक और शैक्षणिक जरुरतों के हिसाब से उनके लिए कल्याणकारी नीतियों का निर्माण किया जा सके.
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