Bihar Politics: बिना क्षेत्रीय दलों के राष्ट्रीय पार्टियों की बैतरणी क्यों नहीं पार लगती, पढ़िए इस रिपोर्ट में

Bihar Politics: बिहार में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने को है. इसको लेकर एनडीए के साथ-साथ इंडिया गठबंधन में अपनी -अपनी दावेदारी मजबूत करने, अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर सहयोगी दलों ने पूरा जोर लगाया है. लेकिन सवाल यह बड़ा है कि बिहार में आखिर क्या विशेषता है कि राष्ट्रीय दल यहां क्षेत्रीय दलों के सामने घुटने टेक देते है. आप यहां भाजपा की भी बात कर सकते हैं और कांग्रेस की भी कर सकते है. बिहार की राजनीति अन्य राज्यों की तरह नहीं है. यहां की राजनीति जातिवाद की जकड़न से बाहर नहीं निकल पाई है. यही वजह है कि क्षेत्रीय पार्टियों का वजूद यहां बना हुआ है. भाजपा अथवा कांग्रेस यहां क्षेत्रीय दलों की मदद के बिना राजनीति करने की कोशिश तो करती है, लेकिन आगे बढ़ कर पीछे लौट जाती है.
आगे बढ़ कर पीछे लौट गए हैं राष्ट्रीय दाल
2025 में होने वाले प्रस्तावित चुनाव को लेकर ही अगर बात की जाए ,तो भाजपा भी कई डेग आगे चली थी, फिर पीछे लौट गई. तो कांग्रेस का भी यही हाल है. कांग्रेस भी लगा कि 2025 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी लेकिन अब परिस्थितियों बदलाव हुआ है. कांग्रेस भी बैकफुट पर दिखने लगी है. बिहार कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को हटा दिया गया. इससे यह संदेश गया कि बिहार कांग्रेस राजद से अलग होना चाहती है. कांग्रेस ने बिहार में बिना राजद की अनुमति की पदयात्रा शुरू कर दी. इसके बाद लगने लगा था कि कांग्रेस अकेले विधानसभा में चुनाव लड़ेगी. फिर बयान आने लगा कि 2019 की तरह 70 सीटों से कम पर चुनाव कांग्रेस नहीं लड़ेगी और विधानसभा चुनाव के बाद महागठबंधन के विधायक मुख्यमंत्री तय करेंगे. फिर क्या था, राजद आँख दिखाना शुरू कर दिया. राजद ने कड़ा रुख दिखाया, बात दिल्ली पहुंचाई गई कि 70 सीट भी कांग्रेस को बिहार में नहीं दी जाएगी.
कांग्रेस को राजद नहीं देगा 70 सीट ,फिर भी नहीं टूटेगा गठबंधन
40 से 50 सीट पर लड़ना है तो कांग्रेस लड़ सकती है अन्यथा वह अकेले चुनाव लड़े , इसके बाद सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस भी बैकफुट पर चली गई है. यह तो हुआ कांग्रेस की बात, अगर एनडीए की बात की जाए तो कुछ महीने पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि जहां तक बिहार में सीएम का सवाल है, उसे पार्लियामेंट बोर्ड तय करेगा. लेकिन इसके बाद तो राजनीति बदल गई. फिर तो कई तरह के बयान आए, यहां तक बयान में कहा गया कि नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा. अमित शाह के बयान के बाद जदयू खेमे में नाराजगी देखी गई, फिर तो एक तरह से कहा जाए कि भाजपा को भी बैकफुट पर आना पड़ा और यह कहना पड़ा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही भाजपा चुनाव लड़ेगी. मतलब बहुत साफ है कि भाजपा और कांग्रेस ने बिहार में जो करना चाहिए था, करके देख लिया, लेकिन उसके बाद उसे लगा कि बिना क्षेत्रीय दलों के सहयोग से चुनाव की बैतरणी पार लगाना संभव नहीं है. इसके बाद तौर तरीके बदल दिए गए. यह अलग बात है कि 2025 का चुनाव परिणाम बिहार में क्या रंग दिखता है, इसको लेकर सब की निगाहें टिकी हुई है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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