टीएनपी डेस्क(TNP DESK): 2024 का महासमर की शुरुआत होने ही वाली है, सारे राजनीतिक दल इस चुनावी समर में अपना-अपना जाल फेंकने को तैयार बैठे हैं, चुनावी जीत और हार के सबके अपने-अपने समीकरण है, किसी को हिन्दूत्व के एजेंडे पर चल कर अपनी राजनीतिक वैतरणी पार होती नजर आती है, तो कोई दलित-पिछड़ों की उपेक्षा और सत्ता-शासन में इन सामाजिक समूहों की अपर्याप्त भागीदारी का सवाल उठाकर सत्ता का स्वाद चखना चाहता है.
यही कारण है कि भाजपा यूपी अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने कहा है कि हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे को सामने रख यूपी की सभी सीटें जीतने जा रहे है, तो इधर सपा सुप्रीमो ने यह कह कर राजनीतिक सरगर्मी तेज कर दी है कि भाजपा यूपी की सारी 80 सीटों पर हार का स्वाद चखने जा रही है.
यूपी के किसी भी दो सरकारी हस्पतालों का दौरा करें जेपी नड्डा, मिल जायेगा जवाब
भाजपा को सीधी चुनौती देते हुए अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी नड्डा को यूपी के किसी भी दो सरकारी अस्पतालों का दौरा कर लेना चाहिए, भाजपा क्यों सभी 80 सीटें हारने जा रही है, राष्ट्रीय अध्यक्ष को इसका जवाब मिल जायेगा. अखिलेश यादव ने अपनी बात को रेखांकित करने के लिए मैनपुरी लोकसभा और मुजफ्फरनगर में खतौली विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की हालिया हार का भी जिक्र किया.
2019 में भाजपा ने जीती थी 64 सीटें
यहां बता दें कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यूपी से 71 सीटें जीती थी, जबकि 2019 में सपा और बसपा गठबंधन के बावजूद 64 सीटों पर विजय मिली थी. सवाल यह है कि इस बीच यूपी के राजनीति में क्या बदलाव आया कि अब अखिलेश यादव सभी 80 सीटों पर जीत ताल ठोक रहे हैं. क्या वास्तव में यूपी के हालत बदतर हो चुके हैं? क्या अखिलेश यादव का यह आरोप सही है कि यूपी में अस्पतालों की हालत बदतर हो चुकी है, क्या विपक्ष का यह आरोप सही है कि यूपी की कानून व्यवस्था की जमींदोज हो चुकी है.
2022 विधानसभा के नतीजों के सपा उत्साहित
यहां यह भी बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को मात्र 47 सीटों जीत मिली थी, लेकिन 2022 के विधान सभा उपचुनाव में सपा ने 111 सीटों पर कामयाबी पायी थी. इसी कामयाबी से सपा उत्साहित है. वह इसकी जमीन पर 2024 में सपा का विस्तार देख रही है. उसकी मंशा एक बार फिर से छोटे-छोटे दलों और सामाजिक समूहों को एक साथ लाकर इस कामयाबी हासिल करना है, यही कारण है कि सपा प्रमुख किसी भी बड़े राजनीतिक दल के साथ समझौता नहीं कर छोटे-छोटे सामाजिक समूहों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. उसकी रणनीति सभी कमजोर और वंचित माने जाने वाली जाति समूहों को अपने पाले में करने की है. उसकी रणनीति साफ है वह पिछड़ा-दलित कार्ड को पूरी तन्मयता के साथ खेलकर हिन्दूत्व के कार्ड को बेसर कर सकती है.
किसी भी राजनीतिक दल को यूपी में हिस्सेदारी देने को अखिलेश तैयार नहीं
अखिलेश यादव विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ अपने संबंधों के आधार पर वोट बैंक की राजनीति को साधने की कोशिश में हैं. इस बार उनके साथ उनके पिता मुलायम सिंह नहीं होंगे, आजम खान चुनावी राजनीति से करीबन बाहर हो चुके हैं. उनके सामने अपनी नयी और युवा टीम तैयार करने का विकल्प खुला है. अखिलेश यादव किसी भी राजनीतिक दल के साथ समीकरण बनाने को तो तैयार हैं, लेकिन इसके साथ ही वह किसी को भी यूपी में सीटों का कोई बड़ा हिस्सा देने को तैयार नहीं है. उनकी रणनीति सपा को केन्द्र में रखकर छोटे-छोटे दलों को साथ लाने की है.
एक बार फिर से राहुल अखिलेश की जोड़ी आ सकती है सामने
यदि हम कांग्रेस सपा के बीच किसी समीकरण को देखे तो इसकी गुंजाइश ज्यादा नजर आती है. इसके पहले ही वर्ष 2017 में राहुल और अखिलेश की जोड़ी एक साथ उतर चुकी है, हालांकि दोनों को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली थी, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि अब वह नहीं रही, साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि अब मोदी की लोकप्रियता भी ढलान पर है. ऐसे में अखिलेश कांग्रेस के साथ कोई समीकरण बना लें तो आश्चर्य नहीं होनी चाहिए.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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