टीएनपी डेस्क(Tnp desk):-आज से तकरीबन एक दशक पहले एक सुबह ऐसी वारदात हुई, जिससे बिहार ही नहीं, बल्कि देश में खलबली और सनसनी मचा दी. ये हत्या और खून उस शख्स का किया गया था. जिसके नाम से लोग कांपते थे, डरते थे और सहमते थे. एक तबके के लिए तो ये मसीहा भी थे. लेकिन, 1 जून 2012 की उस काली सुबह रोजाना की तरह, जब मुखिया जी यानि रणवीर सेना प्रमुख टहलने निकले तो उनके सीने में छह राउंड गोलियां उतार दी गई. दर्द से छटपटाते ब्रह्मेश्वर मुखिया की जान निकल गई . इसके बाद तो फिर जो हुआ, उस दिन आरा समेत कई शहर जलने लगे. जगह-जगह आंदोलन और गुस्से की आग शोला बनाकर भड़कने लगे थे.
मुखिया जी की हत्या राज बनकर रह गई थी
इस नामचीन और रूतबेदार शख्स के हत्या के पीछे कौन लोग थे, आखिर क्या दुश्मनी थी और मुखिया जो को मारकर क्या मिलने वाला था. यह दस साल से ज्यादा वक्त तक रहस्यों में ही राज बनकर छुपा रहा. केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को तो इस हत्या की गुत्थी सुलझाने में ही शिकन और मुश्किलों का पहाड़ दिखने लगा था. ऐसा लगा मुखिया जी की मौत एक पहेली ही बनकर रह जाएगी. हत्यारों का पता नहीं चल पायेगा. नाउम्मीदी की चादर हर तरफ पसरी हुई थी. हालांकि, काफी जद्दोजहद और मेहनत के बाद हत्यारों की शिनाख्त मुक्कअमल हो पाई. केन्द्रीय जांच एजेंसी ने ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड को लेकर पूरक चार्जशीट आरा के जिला एवं सत्र न्यायालय में दायर की. सेशन जज की कोर्ट दायर चार्जशीट में पूर्व एमएलसी हुलास पांडेय समेत आठ लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया. इसमे अभय पांडेय, नंदगोपाल पांडेय उर्फ फौजी, रीतेश कुमार उर्फ मोनू, अमितेश कुमार पांडेय उर्फ गुड्डू पांडे, प्रिंस पांडेय, बालेश्वर पांडेय और मनोज राय उर्फ मनोज पांडेय का नाम शामिल था.
आखिर क्यों हुई मुखिया जी की हत्या !
आरा जिला एवं सत्र न्यायालय के सेशन जज-तृतीय के कोर्ट में दायर 63 पन्नों के पूरक आरोप में केन्द्रीय जांच एजेंसी का दावा है कि इस हत्या के पीछे राजनीतिक प्रतिशोध था. प्रतिद्वंद्वी उनकी लोकप्रियता से इस कदर घबरा गये थे कि उनका राजनीतिक करियर ही खत्म होने जैसा लग रहा था. पड़ताल में मालूम पड़ा कि जुलाई 2011 में जेल से बाहर निकलने के बाद बक्सर, भोजपुर, रोहतास, जहानाबाद, गया और औरंगाबाद जिलों में विशेष जाति, किसान और मजदूरों के गठजोड़ को सशक्त कर रहे थे. उनकी बढ़ती लोकप्रियता से विरोधी अपने राजनीतिक करियर खतरे में महसूस करने लगा. इसी के चलते इस हत्या को अंजाम दिया गया, जिसमे पूर्व एमएलसी हुलास पांडेय का नाम आया.
क्या कहती है सीबीआई की चार्जशीट
सीबीआई की चार्जशीट में लिखा गया कि ब्रहमेश्व मुखिया किसानों और मजदूरों को एकजुट कर राष्ट्रवादी किसान संगठन का गठन किया था. साक्ष्य को रखते हुए सीबीआई ने बताया कि उस समय हुलास पांडेय का समर्थन क्षेत्र भी भोजपुर, बक्सर और रोहतास जिलों में मुख्य रुप से एक ही समुदाय विशेष के बीच था. 2010 में आरा-बक्सर स्थानीय निकाय से एमएलसी का चुनाव जीता था. राजनीतिक पतन की घबराहट को देखते हुए ही हत्या की साजिश रची गई. डीएसपी वी दीक्षित ने हत्या, आर्म्स एक्ट एवं साजिश अधिनियम के तहत चार्जशीट दाखिल किया है. इस मामले पर सोमवार को तारीख थी . लेकिन, जिला सत्र न्यायालय सेशन-3 ने केस में तीन जनवरी को नई तारीख मुकर्रर की है.
सुबह-सुबह कैसे साजिश को दिया अंजाम
सीबीआई ने अपनी तफ्तीश में ये पाया कि 1 जून 2012 की सुबह एक योजना के तहत सुबह चार बजे हुलास पांडेय, अभय पांडेय, नंद गोपाल पांडे उर्फ फौजी, रितेश कुमार उर्फ मोनू, मनोज राय उर्फ मनोज पांडे बालेश्वर राय एक-दूसरे से जुड़े हुए थे. जांच में ये बात सामने आई कि अमितेश पांडे उर्फ गुड्डु पांडे और प्रिंस पांडे कतीरा मोड़ के पास थे. पूर्व एमएलसी हुलास पांडेय और बालेश्वर राय स्कार्पियों में सवार थे. जबकि, अभय पांडे, नंद गोपाल पांडे उर्फ फौज, रितेश कुमार मोनू, अमितेश कुमार पांडे उर्फ गुड्डु पांडे और प्रिंस पांडेय पैदल थे. मुखिया जी को उनके घर के पास ही रोजाना टहलते देखा तो मनोज राय उर्फ मनोज पांडेय ने पहले उन्हें स्कार्पियो में बुलाया और फिर मुखिया जी को स्कार्पियो की बीच वाली सीट पर बैठाया गया. इसके बाद गली के ठीक आगे स्कार्पियो रोकने के बाद ब्रह्मेश्वर मुखिया और हुलास पांडेय स्कार्पियो से उतरे. बाकी पांच अभय पांडे, नंद गोपाल पांडे उर्फ फौजी, रितेश कुमार उर्फ मोनू, अमितेश कुमार पांडे उर्फ गुड्डु पांडे और प्रिंस पांडे पैदल ही उनका पीछा करते हुए उनके पास पहुंच गए. नंद गोपाल पांडेय उर्फ फौजी और अभय पांडे ने ब्रह्मेश्वर मुखिया के दोनों हाथ पकड़ लिया. फिर हुलास पांडेय ने अपनी पिस्तौल से रणवीर सेना प्रमुख पर छह राउंड फायर किए, जिससे वे जमीन पर गिर गए. मुखिया जी की हत्या के बाद बाकी लोग वारदात की जगह पर ही आसपास थे. गुड्डु पांडे अपने हाथों में एक-47 लेकर सड़क पर खड़ा था. चार्जशीट में जिक्र किया गया कि हुलास पांडे और बालेश्वर राय वहां से मनोज राय के साथ स्कॉर्पियो में आरा रेलवे स्टेशन की तरफ चले गये. बाकी लोग वहां से पैदल ही भाग गये .
सीबीआई ने 30 लोगों को बनाया गवाह
सीबीआई ने इस हत्याकांड में 30 लोगों को गवाह बनाया है. इसमे मुखिया पुत्र इंदु भूषण और ओम नारायण राय के अलावा करीब 12 आम लोगों, सदर अस्पताल के चार डॉक्टर, एफएसएल के जांच पदाधिकारी समेत पुलिस और सीबीआई के सब इंस्पेक्टर, डीएसपी से लेकर 13 पदाधिकारी गवाह बनाए गए है. एफएसएल का जांच रिपोर्ट औऱ पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि को संलग्न किया गया है. इधर लोजपा (रामविलास) पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और पूर्व विधान पार्षद हुलास पांडेय ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. उन्होंने सीबीआई की चार्जशीट पर सवाल उठाया और अपने ऊपर लगे आरोपो को बेबुनियाद बताया.
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