टीएनपी डेस्क(Tnp desk):-साल भर में चार बार नवरात्री आती है, जिसमे चेत्र और शरदीय नवरात्र प्रमुख तौर पर मनाया जाता है. हालांकि, इन दोनों के अलावा गुप्त नवरात्री भी आती है. सबसे ज्यादा सितंबर-अक्टूबर महीने में आने वाली चेत्र नवरात्र बंगाल, बिहार और झारखंड में काफी धूमधाम से मनायी जाती है. इस दौरान मां जगदम्बे के उपासक देवी की अराधान करने में पूरी तरह से लीन रहते हैं. नवरात्र में देवी के 9 स्वरुप की पूजा होती है. जिसकी अपनी अलग ही महिमा है. देवी के उपासक अपने व्रत के दौरान इन देवियों की पूजा शास्त्रों में बताए के पूजन विधि के अनुसार करते हैं. आईए बारी-बारी से सभी के बारे में जानते हैं
1.शैलपुत्री
कलश स्थापना के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. दरअसल, हिमालय का एक नाम शैलेंद्र या शैल भी है, शैल को पहाड़ और चट्टान भी बोला जाता है. कहा जाता है कि देवी दुर्गा ने पार्वती के रुप में हिमालय के घर जन्म लिया था, उनकी की मां का नाम मैना था, इसलिए ही देवी का पहला नाम शैलपुत्री यानी हिमालय की बेटी भी बोला जाता है. भक्त मां शैलपुत्री की पूजा बेहद ही विधि विधान से करते हैं. इनकी पूजा, धन, रोजगार और स्वास्थ्य के लिए की जाती है. शैलपुत्री सिखाती है कि जीवन में सफलता के लिए सबसे पहले इरादों में चट्टान की तरह मजबूती और अडिगता होनी चाहिए, तब किसी भी तरह की बाधा के बावजूद सफलता हाथ में आ ही जाती है.
2.ब्रह्मचारिणी
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाता है, जिसका अर्थ होता है, जो ब्रह्मा के बताए गए आचरण पर चले, जो ब्रह्म की प्राप्ति कराती हो. इसके साथ ही, जो हमेशा संयम और नियम से रहे. इसका अर्थ जीवन में ये बताया गया है कि जीवन में सफलता के लिए सिद्धांत और नियमों पर चलने की बहुत आवश्यकता होती है. इसके बिना कोई मंजिल नहीं पाई जा सकती. अनुशासन सबसे ज्यादा जरूरी है. बताया जाता है कि ब्रह्मचारिणी की पूजा पराशक्तियों को पाने के लिए की जाती है. इस देवी की पूजा करने से कई सिद्धियां मिलती हैं.
3.चन्द्रघंटा
नवरात्र के तीसरे दिन मां चन्द्रघंटा की पूजा जाती है, इसे देवी दुर्गा का तीसरा रुप बोला गया है . मां के माथे पर घंटे के आकार का चंद्रमा है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा है. ये देवी संतुष्टि की देवी मानी जाती है. मां चन्द्रघंटा बताती है कि जीवन में सफलता के साथ शांति का अनुभव तब तक नहीं हो सकता है, जब तक कि मन में संतुष्टि का भाव ना हो. आत्म कल्याण और शांति की तलाश जिसे हो, उसे मां चंद्रघंटा की आराधना करनी चाहिए.
4.कुष्मांडा
नवरात्र में चौथे दिन कुष्मांडा देवी का चौथा स्वरूप है. वेद, पुराणों और ग्रंथों के अनुसार इन्हीं देवी की मंद मुस्कार से अंड यानी ब्रह्मांड की रचना हुई थी. इसी के चलते इनका नाम कूष्मांडा पड़ा, ये देवी भय को दूर करती है. दरअसल, भय यानी डर ही सफलता की राह में सबसे बड़ी मुश्किल होती है, जो रोड़े अटकाती है. बताया गया है कि जिसे जिवन में सभी तरह के भय से मुक्त होकर जीवन व्यतित करना है, उसे देवी कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए
5.स्कंधमाता
भगवान शिव और पार्वती के पहले पुत्र हैं कार्तिकेय, जिन्हें काफी वीर माना जाता है . उन्हें का एक नाम स्कंद है. कार्तिकेय यानी स्कंद की माता होने के कारण देवी के पांचवें रुप का नाम ही स्कंद माता है. इसे शक्ति देने वाली माता के तौर पर भी माना जाता है. जिंदगी में कामयाबी के लिए शक्ति का संचय और सृजन की क्षमता दोनों का होना जरूरी है. देवी दुर्गा के स्कंधमाता का ये रूप यही सिखाता है और प्रदान भी करता है।
6.कात्यायिनी
कात्यायिनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं, वेद,पुरानों और ग्रंथों में मिले उल्लेख में बताया गया है कि कात्यायन ऋषि ने देवी दुर्गा की बहुत तपस्या की थी और जब दुर्गा प्रसन्न हुई तो ऋषि ने वरदान में मां से मांगा था कि देवी दुर्गा उनके घर पुत्री के रुप में जन्म लें. कात्यायन की बेटी होने के कारण ही उनका नाम कात्यायिनी पड़ा. इन्हें स्वास्थ्य की देवी भी बोला जाता हैं. ये तो सर्वदा सत्य है कि जिंदगी में रोग और कमजोर शरीर के साथ कभी सफलता हासिल नहीं की जा सकती. मंजिल औऱ कामयाबी पाने के लिए शरीर का स्वस्थ्य रहना जरुरी है. बताया जाता है कि जिन्हें भी रोग, शोक, संताप से मुक्ति चाहिए उन्हें देवी कात्यायिनी अराधना करनी चाहिए.
7. कालरात्री
देवी के सातवें स्वरुप के तौर पर कालरात्री की पूजा की जाती है. काल यानी समय और रात्रि मतलब रात होता है. दरअसल, जो सिद्धियां रात के समय साधना से मिलती हैं उन सब सिद्धियों को देने वाली माता कालरात्रि हैं. माता कालरात्री की पूजा आलौकिक शक्तियों, तंत्र सिद्धि, मंत्र सिद्धि के लिए की जाती है. उनके इस स्वरुप ये बताता और सिखलाता है कि दिन-रात के भेद को भूला दीजिए. जो बिना रुके और थके, लगातार आगे बढ़ना चाहता है वो ही सफलता के शिखर पर पहुंच सकता है.
8.महागौरी
देवी का आठवां स्वरूप है महागौरी को कहा जाता है. गौरी यानी पार्वती, महागौरी यानी पार्वती का सबसे उत्कृष्ट स्वरूप. अपने पाप कर्मों के काले आवरण से मुक्ति पाने और आत्मा को फिर से पवित्र और स्वच्छ बनाने के लिए महागौरी की पूजा की जाती है. ये चरित्र की पवित्रता की प्रतीक देवी हैं.दरअसल, महागौरी का स्वरुप बतलाता है कि, सफलता अगर कलंकित चरित्र के साथ मिलती है तो वो किसी काम की नहीं, चरित्र उज्जवल हो तो ही कामयाबी का सुख मिलता है.
9.सिद्धिदात्री या नवदुर्गे
मां सिद्धिदात्री देवी दुर्गा का नौवा रुप माना जाता है. ये देवी सारी सिद्धियों की मूल हैं. देवी पुराण में बताया गया है कि आदिदेव भगवान शिव ने देवी के इसी स्वरूप से कई सिद्धियां प्राप्त की. शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में जो आधी देवी हैं वो ये सिद्धिदात्री माता ही हैं. हर तरह की सफलता के लिए इस देवी की आराधना की जाती है. सिद्धिदात्री या नवदुर्गे की पूजा करने का अर्थ कुशलता के बारे बताया गया है. कुशलता और सलीका ही है, जिससे सफलता आसानी से मिलती है.
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