रांची (RANCHI) : झारखंड में पहले चरण में चार सीटों पर 13 मई को वोटिंग हुई. मतदाताओं ने अपने पसंद के प्रत्याशियों के समर्थन में वोट डाले. इन चारों सीटों में किसके सिर जीत का सेहरा बंधेगा ये तो चार जून को चुनाव परिणाम से ही पता चलेगा. दरअसल हम खूंटी संसदीय क्षेत्र की बात कर रहे हैं. यह सीट जनजातियों के सुरक्षित है. इस सीट से सात प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है. जिनमें भाजपा के अर्जुन मुंडा, कांग्रेस के कालीचरण मुंडा, झारखंड पार्टी की अर्पणा हंस, भारत आदिवासी पार्टी की बबीता कच्छप, बहुजन समाज पार्टी की सावित्री देवी, निर्दलीय उम्मीदवार बसंत कुमार लोंगा और पास्टर संजय कुमार तिर्की शामिल हैं.
इनके बीच है मुख्य मुकाबला
खूंटी में चुनाव के बाद राजनीतिक के जानकार अपने-अपने गणित के अनुसार जीत-हार की गणना करना शुरू कर दिया है. इस चुनाव में किसकी जीत होगी और किसका हार वह तो चुनाव परिणाम के दिन ही पता चलेगा. पर इतना तय है कि इस संसदीय क्षेत्र से मुख्य मुकाबला कांग्रेस के कालीचरण मुंडा और भाजपा के अर्जुन मुंडा के बीच है. दरअसल खूंटी को भाजपा का किला कहा जाता है. यहां से आठ बार करिया मुंडा ने जीत हासिल की. पिछले चुनाव में बीजेपी के अर्जुन मुंडा मैदान में थे. उन्होंने कड़े मुकाबले में कांग्रेस के कालीचरण को 1445 वोटों से हराया था. इस बार इस किले को बचाना अर्जुन मुंडा के लिए चुनौती हो गया है. क्योंकि कालीचरण के अलावा अन्य प्रत्याशियों ने भी सेंधमारी की है.
किस क्षेत्र से किसे मिला वोट
राजनीति के जानकारों का कहना है कि 13 मई को हुए मतदान में खूंटी, तोरपा, कोलेबिरा और तमाड़ विधानसभा क्षेत्र में कालीचरण मुंडा को बढ़त मिल सकती है. वहीं सिमडेगा और खरसावां विधानसभा क्षेत्र में अर्जुन मुंडा बढ़त बनाते हुए दिख रहे हैं. खूंटी में शहरी क्षेत्र से भाजपा के पक्ष में वोट जाते हुए दिख रही है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस को मत मिलने की संभावना जानकार बता रहे हैं. जानकारों का कहना है खूंटी संसदीय क्षेत्र से कुर्मी समुदाय का वोट भी कांग्रेस को मिल सकता है, जबकि ये वोटर भाजपा और आजसू का माना जाता है.
वोटरों को रिझाने में कौन हुआ कामयाब
जानकारों का मानना है कि खूंटी संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस ने वोटरों को रिझाने में काफी कामयाब हुआ है. वहीं भाजपा सेंधमारी करने में असफल होते हुए दिख रही है. कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के समय सीएनटी एक्ट खत्म करने, संविधान बदलने, आरक्षण खत्म करने की बात कही. जिससे आदिवासी मतदाताओं को अपने पाले में सफल रही. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस कहा कि इंडिया गठबंधन अगर सत्ता में आयी तो सरना कोड को लागू करेगी. जबकि बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता वोटरों को समझाने में नाकामयाब साबित हुए. बूथ मैनेजमेंट में बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस काफी आगे थी दर्जनों ऐसे मतदान केंद्र थे जहां बीजेपी का कोई एजेंट नहीं था. जमीन जुड़े कार्यकर्ताओं को बीजेपी के प्रति काफी नाराजगी देखी जा रही है. कार्यकर्ताओं का मानना है कि भाजपा में नेता ज्यादा हो गए हैं और कार्यकर्ता काफी रह गये. ये भी एक बहुत बड़ा कारण मना जा रहा है. कारण जो भी अब चार जून को पता चलेगा की अर्जुन मुंडा अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को मात देकर भाजपा के किले को सुरक्षित रख पाते हैं या कालीचरण मुंडा जीत का स्वाद चख पायेंगे.
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