Ranchi-सीएम हेमंत की याचिका पर सुनवाई के लिए झारखंड हाईकोर्ट ने 11 अक्टूबर की तिथि निर्धारित की है. इस बीच कोर्ट ने सीएम हेमंत को अपनी याचिका में सुधार करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस याचिका में कुल पांच गलितयां है, और बगैर इसमें सुधार किये, सुनवाई नहीं की जा सकती, इस प्रकार ग्यारह अक्टूबर के पहले सीएम हेमंत को अपनी याचिका में सुधार करना होगा.
छठा समन भेज भी सकती है ईडी
लेकिन अब तक के पैटर्न से इस बात की आशंका बनी हुई है कि इस सुनवाई के पहले भी ईडी सीएम हेमंत को छठा समन जारी कर सकती है, हालांकि सीएम हेमंत ने ईडी को भेजे अपने पत्र में मामले की सुनवाई तक समन नहीं भेजने की गुजारिश की है, उन्होंने कहा कि जब तक कोर्ट के द्वारा मामले में अंतिम सुनवाई नहीं हो जाती और कोर्ट का दिशा निर्देश सामने नहीं आ जाता, समन भेजने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता.
ईडी के पास विकल्प क्या है
लेकिन क्या ईडी सीएम हेमंत की गुजारिश के अनुसार ही समन दर समन भेजने की अपनी प्रक्रिया पर विराम लगा देगा. लेकिन उसके भी बड़ा सवाल यह है कि यदि तमाम समन के बावजूद यदि सीएम हेमंत हाजिर नहीं होते है, तो ईडी के पास विकल्प क्या बचा है. क्योंकि कानूनी स्थिति बिल्कूल स्पष्ट है, मामला जब तक कोर्ट में हैं, तब तक ईडी के हाथ बंधे हुए हैं, और वह समन भेजने से ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नजर नहीं आती. बावजूद इसके वह समन के बाद समन भेजते जा रही है.
दोनों ही तरफ से हो रहा है पैतरों का इस्तेमाल
जानकारों का मानना है कि दोनों ही तरफ से पैतरों का इस्तेमाल किया जा रहा है. एक तरफ जहां हेमंत सोरेन इस संघर्ष को कानूनी लड़ाई का शक्ल देने का मन बना चुके हैं. उनकी पूरी कोशिश इस मामले को 2024 लोकसभा चुनाव तक खींचने की है. और इसी रणनीति के तहत ईडी के समन को उनके कानूनी जानकारों के द्वारा हाईकोर्ट के बजाय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी. उनके कानूनी सलाहकारों को इस बात पूरा इल्म था कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को सबसे पहले संबंधित हाईकोर्ट में उठाने का निर्देश देगा. लेकिन बावजूद इसके इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में महज इसलिए उठाय़ा कि ताकि कुछ समय सुप्रीम कोर्ट में भी बर्बाद हो जाय, और हुआ भी वही. उनकी रणनीति काम कर गयी. जैसे ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा यह मामला कानूनी दांव पेंच में फंस गया. और ईडी के हाथ बंध गयें, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने और और याचिका पर सुनवाई के दौरान एक अच्छा खासा समय पार गया, उसके बाद उनकी आशा के अनुरुप सुप्रीम कोर्ट ने पहले संबंधित हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का निर्देश दे दिया.
फिर चला गया दूसरा चाल
यहां एक बार फिर से रणनीति बनायी गयी, जिस दिन ईडी कोर्ट में हाजिर होने का निर्देश दिया गया था, ठीक उसी दिन को याचिका दायर करने के लिए भी चुना गया, हालांकि उस दिन भी याचिका दाखिल नहीं हो सकी, क्योंकि झारखंड हाईकोर्ट के न्यायविद की मौत के बाद कोर्ट में छुट्टी का एलान हो गया था, इस प्रकार छुट्टी के बाद एक बार फिर से हाईकोर्ट में याचिका दायर किया गया. इस बीच ईडी करीबन दो समन भेज चुका है, लेकिन अभी तक मामले की सुनवाई नहीं हुई है. और अब मामले की सुनवाई के लिए 11 अक्टूबर की तिथि निर्धारित की गयी है, वह भी सिर्फ इस आधार पर याचिका में कई खामियां है, अब देखना होगा कि 11 अक्टूबर के पहले सीएम हेमंत की ओर से याचिका की त्रुटियों को सुधार किया जाता है, या यह तिथि एक बार और आगे बढ़ती है.
एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर खड़ा हो सकता है यह मामला
लेकिन सवाल यहां यह भी है कि यदि याचिका पर सुनवाई का दौर शुरु होता है, तब क्या इस मामले का समापन महज एक दिन में हो जायेगा, या मामले पर बहस के दौरान कई तिथियां सामने आयेगी, कोर्ट के सामने पक्ष और विपक्ष के तर्क पेश किये जायेंगे. बहुत संभव है कि इस पूरी प्रक्रिया में लम्बा समय लगे. लेकिन यहां एक और सवाल अहम है, वह यह है कि क्या झारखंड हाईकोर्ट के फैसले के बाद तुरंत सीएम हेमंत ईडी दफ्तर में पेश हो जायेंगे, क्या तब उनके कानूनी सलाहकारों के द्वारा एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने पर विचार नहीं किया जायेगा.
पीएमएलए एक्ट की धारा 50 और 63 की संवैधानिकता पर खड़ा किया गया है सवाल
क्योंकि ध्यान रहे कि यहां मामला पीएमएलए एक्ट-2002 की धारा-50 व 63 की वैधता का है, सीएम हेमंत का तर्क है कि पीएमएलए एक्ट-2002 की धारा-50 और 63 विभेदकारी है, यह महज ईडी के समझ दिये गये बयान के आधार पर गिरफ्तारी का अधिकार देता है, जो आईपीसी की धारा का उल्लंघन है, किसी भी दूसरी एजेंसी को यह सुविधा प्रदान नहीं की गयी है, किसी भी दूसरी जांच एजेंसी के समक्ष दिया गये बयान को साक्ष्य नहीं माना जाता है, ईडी की इसी असीमिति शक्ति के कारण आरोपियों पर गिरफ्तारी की तलवार लटकती रहती है. उनका तर्क इस धारा की संवैधानिकता पर है.
हेमंत की गिरफ्तारी से झामुमो की सत्ता को कोई खतरा नहीं, लेकिन भाजपा पर उल्टा पड़ सकता यह चाल
इस हालत में सीएम हेमंत के पास झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प खुला हुआ है. और यदि यह मामला एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंचता तो बहुत संभव है कि वहां भी यह लम्बा खींचे. और तब तक 2024 के जंग का एलान होने की स्थिति खड़ी हो जाये, और यदि उस हालत में सीएम हेमंत की गिरफ्तारी होती है तो झारखंड की राजनीति में भूचाल आना तय है. गिरफ्तारी के साथ ही आदिवासी-मूलवासी समूहों को हेमंत के पक्ष में गोलबंदी तेज हो सकती है, वैसे भी हेमंत की गिरफ्तारी से झामुमो की सत्ता तो कुछ होने नहीं है. बहुत हद तक सीएम का चेहरा बदलेगा, लेकिन इसके उलट सीएम हेमंत को आदिवासी-मूलवासी समूहों की सहानुभूति प्राप्त होने का खतरा मौजूद है और उसकी आंधी में भाजपा के लिए 2024 के जंगे मैदान में पांव डिगाये रखना भी मुश्किल साबित हो सकता है, कुल मिलाकर यह भाजपा का घातक प्रयोग हो सकता है, हालांकि उसके नेताओं के द्वारा बार-बार शिशूपाल वध की कथा सुनाई जा रही है, लेकिन यहां याद रखना चाहिए कि आज का शिशूपाल महाभारत कालीन नहीं है, अब उसके अपने तेवर और पैतरें है.
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