TNP DESK-अपने विवादित बयानों और राजनीतिक कारनामों की वजह से लगातार सुर्खियों में रहने वाले जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी ने झारखंड के राजनीतिक गलियारों में एक और बम फोड़ा है, अब तक हिन्दू मुस्लिम एकता की वकालत करने वाले इरफान अंसारी के निशाने पर इस बार कांग्रेस के हिन्दू चेहरे हैं. 2024 लोकसभा से पहले अघोषित रुप से अपने पिता फुरकान अंसारी के लिए फिल्डिंग करते हुए उन्होंने कहा है कि यदि गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को पराजित करना है तो यहां से किसी ना किसी अल्पसंख्यक चेहरे को सामने लाना ही होगा. क्योंकि गोड्डा संसदीय सीट हो या महागामा विधान सभा क्षेत्र, यह दोनों ही मिनी पाकिस्तान है और कोई भी हिन्दू चेहरा यहां निशिकांत दुबे को शिकस्त देने की स्थिति में नहीं होगी, गोड्डा और महागामा की राजनीति में यह मुसलमान ही तय करेगा कि किसके सिर पर जीत का सेहरा बंधेगा और कौन महज चुनाव लड़ने के लिए चुनाव लड़ेगा.
प्रदीप यादव के हाथों नहीं दिया जा सकता निशिकांत को शिकस्त
बड़ी बात यह है कि इस बार विधायक इरफान अंसारी ने 2019 में गोड्डा सीट से चुनाव लड़ कर पराजय का सामना कर चुके प्रदीप यादव का नाम लेने से भी गुरेज नहीं किया, उन्होंने साफ शब्दों में कांग्रेस को चेतावनी देने के लहजे में कहा है कि निशिकांत दुबे के सामने यदि एक बार फिर से प्रदीप यादव को उतार जाता है तो, हार तय है. क्योंकि कोई भी आंकड़ा यहां किसी हिन्दू चेहरे के पक्ष में जाता नहीं दिखता. इसे और भी विस्तार से बताते हुए इरफान अंसारी कहते हैं कि याद कीजिये वर्ष 2014 को, जब झारखंड सहित पूरे देश में मोदी की आंधी बह रही थी, बावजूद इसके फुरकान अंसारी को महज 49 हजार मतों से हार मिली थी, लेकिन वर्ष 2019 में ज्योंही इस सीट के प्रदीप यादव को उम्मीवार बनाया गया निशिंकात दुबे को दो लाख से अधिक मतों से विजय मिली. अब इस स्थिति में साफ है कि गोड्डा संसदीय सीट से अल्पसंख्यकों की पसंद अल्पसंख्यक उम्मीवार ही है, किसी अल्पसंख्यक को मैदान में उतारने के साथ ही उसके पक्ष में अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण होता है.
क्या विधान सभा चुनाव के पहले गरमा सकता है महागामा विधान सभा का मामला
लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि क्या विधायक इरफान अंसारी का यह बयान महागामा विधान सभा के लिए एक संदेश है, क्या उनकी नजर महागामा विधान सभा पर भी लगी हुई है, क्या अगले विधान सभा के चुनाव के पहले वह प्रदीप यादव की तरह ही महागामा विधायक दीपिका पांडेय को भी निशाना बनाया जा सकता है. अब यदि इन सभी बयानों और इरफान के पूर्व के बयानों पर गौर करें तो साफ है कि यह मिनी पाकिस्तान की लड़ाई नहीं होकर यह कांग्रेस के अन्दर की गुटबाजी कुछ ज्यादा ही नजर आती है.यह कांग्रेस के अन्दर की गुटबाजी क्यों है इसे समझने के लिए बेहद जरुरी है कि हम गोड्डा संसदीय सीट के सामाजिक समीकरण का विश्लेषण करें.
गोड्डा संसदीय सीट का सामाजिक समीकरण
एक अनुमान के अनुसार गोड्डा संसदीय क्षेत्र में करीबन दो से ढाई लाख यादव, ढाई से तीन लाख मुसलमान, दो लाख ब्राह्मण, ढाई से तीन लाख वैश्य, डेढ़ लाख के करीब आदिवासी, एक लाख के करीब भूमिहार, राजपूत, कायस्थ हैं, इसके साथ ही पचपौनियां जातियों और दलितों की एक बड़ी आबादी है, साफ है कि आंकड़े इरफान अंसारी के दावों की पुष्टि नहीं करतें.
हालांकि गोड्डा संसदीय सीट में मुसलमानों की तीन लाख की आबादी से इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके साथ ही वहां दो लाख यादव, दो लाख आदिवासी और बड़ी संख्या में दलित और दूसरे पंचपौनियां जातियों की आबादी भी है. जीत और हार इस बड़ी आबादी के हाथ में भी है, और इसका सामाजिक समीकरण कांग्रेस के पक्ष में जाता है, यदि कांग्रेस और जेएमएम का गठजोड़ यहां एक आदिवासी चहेरे को उतारता है तो चुनावी मैदान में निशिकांत दुबे को चुनौती दी जा सकती है, वैसे भी कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उलास की स्थिति है.
क्या भाजपा के पक्ष में बैटिंग कर रहे हैं इरफान
तब इरफान अंसारी के द्वारा अचानक से मिनी पाकिस्तान का राग अलापे जाने का कारण क्या हो सकता है, उनके इस बयान से तो भाजपा को लाभ मिलता दिख रहा है, इसके बाद तो हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण भी तेज हो सकता है, और भाजपा को बैठे बिठाये एक मुद्दा मिल गया है, तब क्या यह माना जाय कि कोलकत्ता कैश कांड में फंस कर अपनी ही पार्टी में हाशिये पर चल रहे इऱफान ने भाजपा के पक्ष में राजनीतिक जमीन तैयार करने की शुरुआत कर दी है.
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