रांची(RANCHI): यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बजट सत्र का दूसरा दिन लोबिन हेम्ब्रम के नाम रहा, चारों तरह लोबिन की कांवर यात्रा की चर्चा होती रही, सत्ता पक्ष हो या विपक्ष केन्द्र में लोबिन हेम्ब्रम ही रहें. सरकार को घेरने की जो जिम्मेवारी विपक्ष के कंधे पर थी, उस भूमिका को अपने बेहद ही रोचक अंदाज में लोबिन हेम्ब्रम ने निर्वाह किया.
कांवर लेकर विधान सभा पहुंचे थें लोबिन हेम्ब्रम
दरअसल बजट सत्र के दूसरे दिन की शुरुआत होते ही लोबिन हेम्ब्रम कांवर लेकर विधान सभा पहुंचे थें, उस कांवर पर स्थानीय नीति की मांग, नियोजन नीति की मांग, जल-जगंल और जमीन की लूट, सीएनटी एक्ट का उल्लंघन, आदिवासी-मूलवासियों जमीन की लूट, पारसनाथ विवाद आदि से संबंधित मांग लिखे गये थें.
मीडिया कर्मियों की पहली पसंद बने लोबिन हेम्ब्रम
जिसके बाद सारे मीडिया कर्मी लोबिन हेम्ब्रम की ओर दौड़ पड़ें, उनसे सवालों की बौछार की जाने लगी, सवाल दागे जाने लगे कि आप तो सत्ता पक्ष में है, फिर यह नाराजगी क्यों? लेकिन लोबिन तो लोबिन ठहरें, उन्होंने सीधा जवाब दिया, हां हम सरकार में हैं, हम ही सरकार है, लेकिन क्या जब सरकार आदिवासी-मूलवासियों की मांग की उपेक्षा करेगी, तब हम चुप्पी साध लें, आज जब चारों तरह आदिवासियों की जमीन लूटी जा रही है, पारसनाथ से लेकर हर स्थान पर आदिवासियों की हकमारी की जा रही है, हम सरकार का गुणगान करें, यह हमारा दायित्व है कि सरकार से सवाल दागे.
सरकार से नाराजगी नहीं, सवाल - संदेश पहुंचाने का है
लोबिन हेम्ब्रम से जब यह पूछा गया कि क्या वह सरकार से नाराज है, उन्होंने कहा, नहीं यह नाराजगी का सवाल नहीं है, सवाल सरकार तक संदेश पहुंचाने का है. अब सवाल यह है कि यह संदेश तो लोबिन हेम्ब्रम वैसे भी सरकार तक पहुंचा सकते थें, लेकिन उनके द्वारा जो रास्ता चुना गया वह रास्ता तो विपक्ष का था.
हेमंत सोरेन को निशाना बनाने का पुराना इतिहास रहा है
यहां सनद रहे कि लोबिन हेम्ब्रम बोरियो से झामुमो विधायक हैं, शिबू सोरेन को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं. लेकिन उनके निशाने पर कभी भी विपक्ष नहीं, बल्कि राज्य की हेमंत सरकार और हेमंत सोरेन की नीतियां होती है. उनकी घेराबंदी के चलते पहले भी कई बार सरकार की फजीहत होती रही है. यहां यह भी बता दें कि यह लोबिन हेम्ब्रम ही थे, जिन्होंने 1932 के खतियान को लेकर हेमंत सरकार को कटघरे में खड़ा किया था, लोबिन हेम्ब्रम ने ही यह घोषणा की थी कि जब तक 1932 का खतियान लागू नहीं किया जाता, वह अपने घर नहीं जायेगे, यह लोबिन हेम्ब्रम ही है, जिसने पारसनाथ के सवाल पर हेमंत सोरेन को आदिवासी विरोधी करार दिया था और कहा था कि “पारसनाथ जैनियों का धर्मस्थल” है का बयान देकर हेमंत सोरेन ने आदिवासी समाज की भावनाओं का अपमान किया है.
लोबिन प्रखरता और तीक्ष्णता तो विपक्ष में भी दिखलाई नहीं देती
माना जाता है कि जिस शिद्दत के साथ लोबिन आदिवासी-मूलवासियों का अधिकार, जल, जगंल और जमीन की लूट, सीएटी एक्ट का उल्लघंन और दूसरे मुद्दों को उठाते हैं, वैसी गंभीरता, प्रखरता और तीक्ष्णता तो विपक्ष में भी नहीं होती.
यही कारण है कि हेमंत सरकार का घोषित विपक्ष भाजपा और आजसू जब तक हेमंत सोरेन को घेरने की रणनीतियां बना रहा होता है, चक्र व्यूह तैयार कर रहा होता है, तब तक अपने सवालों और अजीबोगरीब हरकतों से लोबिन हेम्ब्रम राजनीति की महफिल लूट चुके होते हैं.
हर बार की तरह इस बार भी बजट सत्र के पहले ही दिन लोबिन हेम्ब्रम ने अपने अजीबोगरीब कारनामों से महफिल लूट ली है. इसके साथ ही हेमंत सरकार को यह संदेश भी दिया है कि 1932 के खतियान को लेकर राज्य के आदिवासी-मूलवासी समूहों में नाराजगी है.
क्या विपक्ष को स्पेस नहीं देने की कोई रणनीति है ये
अब सवाल यह उठाया जाता है कि क्या लोबिन एक रणनीति के तहत यह सब करते हैं, क्योंकि आखिरकार उनकी हर मांग सरकार के द्वारा मान ही ली जाती है, बहुत हद तक संभव है कि लोबिन का इसके पीछे कोई रणनीति हो, लेकिन सवाल यह भी है कि विपक्ष को इसी प्रकार का आक्रामक रणनीति बनाने से किसने रोका है.
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