पटना (PATNA) : लोकसभा चुनाव के रण में कौन बाजी मारेगा ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा. लेकिन बिहार में जिस तरीके से महागठबंधन में शामिल पार्टियों ने उम्मीदवारों की घोषणा की है इससे ऐसा ही लगता है कि पार्टी ने जातिगत जनगणना के हिसाब उम्मीदवारों का चयन किया है. आपको याद होगा जब जातिगत जनगणना की रिपोर्ट आयी थी तो उस समय कहा गया था कि जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी भागदारी होगी. अगर इस लिहाज से देखें तो महगठबंधन ने सवर्णों से ज्यादा दूसरे जातियों पर ज्यादा भरोसा जताया है.
कुशवाहा और यादव पर फोकस
बिहार के 40 सीटों में महगठबंधन के दलों ने लोकसभा चुनाव में इस बार ब्राह्मणों को टिकट नहीं दिया है. राजपूतों को एक मिला है. जबकि पिछले चुनाव में चार उम्मीदवारों को मिला था. इस बार स्थिति पूरी तरह बदल गई है. बक्सर सीट से राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को टिकट दिया है. इस बार सबसे ज्यादा कुशवाहा और यादव पर फोकस किया है. कुशवाहा को छह और यादव जाति से आठ उम्मीदवार मैदान में है. वैसे कांग्रेस के छह उम्मीदवारों के नाम अभी सामने नहीं आये हैं, उनमें भी किसी राजपूत उम्मीदवार को जगह मिलने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रही है.
भूमिहारों को मिली ज्यादा अहमियत
सवर्ण जाति में भूमिहारों को सबसे ज्यादा अहमियत दी गई है. भूमिहारों को तीन सीटें दी गई है. वैशाली से राजद ने मुन्ना शुक्ला, भागलपुर से कांग्रेस ने अजीत शर्मा को उम्मीदवार बनाया है. महाराजगंज से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह के बेटे आकाश सिंह को टिकट मिल सकता है. पिछले चुनाव में भूमिहारों को एक सीट दी गई थी.
बिहार में महागठबंधन की सोशल इंजीनियरिंग
बता दें कि बिहार में पिछले साल आयी जातीय जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार ब्राह्मणों की आबादी 3.66 प्रतिशत भूमिहारों की संख्या 2.86 प्रतिशत है. जबकि राजपूतों की आबादी 3.45 प्रतिशत है. ये महागठबंधन की सोशल इंजीनियरिंग का कमाल है कि सवर्णों में सबसे ज्यादा आबादी वाले ब्राह्मण इस बार साफ हो गये. राजपूत चार में से एक सीट पर चले आये. वहीं भूमिहारों की संख्या एक से बढ़कर तीन हो गया. जबकि पिछले चुनाव में भूमिहार को एक टिकट मिला था. इस बार महागठबंधन ने सवर्णों को दरकिनार कर अन्य जातियों पर दांव लगाया है. देखना होगा कि आने वाले चुनाव में किस जाती के उम्मीदवार बाजी मारते हैं.
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