रांची(RANCHI)- कर्नाटक चुनाव के बाद भाजपा में मंथन का दौर जारी है, हार की समीक्षा की जा रही है, उन कारणों की विवेचना की जा रही है, जिनके कारण भाजपा को इस भारी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा की परेशानी का एक सबक कांग्रेस की वह चाल है, जिसमें उसने बड़े ही सधे अंदाज में पिछड़ा -दलित कार्ड खेलते हुए डीके शिवकुमार की दावेदारी को दरकिनार कर प्रदेश की बागडोर सिद्धारैमया के हाथों में सौंपने का फैसला कर लिया. इसके साथ ही कांग्रेस अब खुलकर जातीय जनगणना के पक्ष में भी खड़ी हो गयी है, अब वह भाजपा पर यह तंज कस रही है कि एक-एक मस्जिद-मिनार की गिनती करने वाली भाजपा को पिछड़ी जातियों की गिनती से इतनी परेशानी क्यों है?
दलित पिछडों की युगलबंदी से भाजपा को नुकसान का खतरा
भाजपा के एक खेमे का यह आकलन है कि यदि दलित-पिछड़ों की युगलबंदी इसी तरह कांग्रेस के पक्ष में खड़ी होती गई और उसे अल्पसंख्यक मतदाताओं का साथ मिलता गया तो यह भाजपा के सामने एक बड़ी मुसीबत आने वाली है और इसका खामियाजा राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भुगतना पड़ सकता है. इस खेमे का यह भी आकलन है कि वह दौर अब गया जब पीएम मोदी अपने रसूख के बल पर तमाम राजनीति- सामाजिक समीकरणों को दरकिनार कर अप्रत्याशित रुप से सीएम का चेहरा बनाया करते थें. इसी रसूख के बल पर यूपी जैसे पिछड़ा बहुल राज्य में ठाकुर योगी और जाट बहुल हरियाणा में वैश्य मनोहर लाल खट्टर, आदिवासी बहुल झारखंड में वैश्य रघुवर दास और मराठा बहुल महाराष्ट्र में ब्राह्मण देवेन्द्र फडणवीस को सीएम की कुर्सी दी गई थी और तब इसे मोदी का मास्टर स्ट्रोक बताया गया था.
मोदी की आभा छिकुड़ते ही भाजपा के अन्दर शुरु हुई बेचैनी
लेकिन अब परिस्थितियां वैसी नहीं रही, पूरे देश में दलित पिछड़ों की गोलबंदी कांग्रेस के पक्ष में होती दिख रही है, और समय रहते इसका समाधान खोजने की जरुरत है. क्योंकि जैस-जैसे 2024 का लोकसभा चुनाव नजदीक आयेगा. कांग्रेस पिछड़ों को लेकर कोई और बड़ा चाल खेल सकती है.
सीएम योगी और पीएम मोदी की मुलाकात
इस बीच खबर यह भी आयी है कि कर्नाटक चुनाव के बाद सीएम योगी और पीएम मोदी के बीच एक मुलाकात भी हुई है, और दावा किया जा रहा है कि मोदी ने यह साफ कर दिया है कि जनादेश जनता देती है, लेकिन सीएम विधायक चुनते हैं, उनकी ही कृपा पर सीएम की कुर्सी रहती है, इसलिए जरुरी है कि विधायकों की नाराजगी को दूर किया जाय.
2024 की परस्थितियों का आकलन कर रहे हैं पीएम मोदी
लेकिन इसके साथ ही दूसरी खबर यह भी आई कि पीएम मोदी अभी यूपी का आकलन कर रहे हैं, और उन परिस्थितियों की समीक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका मुकाबला उन्हे 2024 में यूपी में करना पड़ सकता है, क्योंकि पिछले विधान सभा चुनाव में अखिलेश यादव ने 25 सीटों से अचानक 111 सीट का छलांग लगाया था यदि उसके सहयोगियों की सीटों को जोड़ दिया जाय तो यह आंकड़ा 125 तक जाता है. साफ है कि इस बार मुकाबला बेहद कठिन होने वाला है, और आशंका इस बात की है कि कहीं योगी का चेहरा यूपी में हार का कारण नहीं बन जाय. क्योंकि इस बार योगी के खिलाफ सिर्फ और सिर्फ अखिलेश ही नही होंगे बल्कि पिछड़ा कार्ड खेल रही कांग्रेस भी गठबंधन का हिस्सा हो सकती है.
वहीं कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा को बहुमत मिलना मुश्किल था, लेकिन पीएम मोदी ने बड़ी ही साफगोई से अपना पिछड़ा कार्ड खेला था, नहीं तो योगी का डूबना तय था, लेकिन इस बार खुद पीएम मोदी का जलवा मंद पड़ता दिख रहा है, इस हालत में एक ठाकुर चेहरे के साथ यूपी के मुकाबले में उतरना खतरनाक हो सकता है. क्योकि जिस मोदी लहर का मुकाबला करते हुए अखिलेश ने 25 से 111 का सफर पूरा किय, उसके लिए आगे की यात्रा बहुत कठीन नहीं होने वाली है.
केशव प्रसाद मौर्य को सीएम बनाने की मांग फिर से हुई तेज
इस बीच खबर यह भी है कि सीएम योगी के खिलाफ एक बार फिर से पिछड़े और दलित विधायकों की गोलबंदी तेज हो गयी है, उनकी मांग केशव प्रसाद मौर्य को सीएम बनाने की है, पूर्व की तरह ही इस बार भी सीएम योगी पर तानाशाही का आरोप लगाया जा रहा है. जबकि कुछ लोगों का यह भी आकलन है कि खुद डिप्टी सीएम भी इस मांग को हवा दे रहे हैं, कर्नाटक में भाजपा जिस प्रकार चारो खाने चीत हुई, उसके बाद केशव मौर्या के हौसले बुंलद है, और अपने को सौदेबाजी की स्थिति में पा रहे हैं, यही कारण है कि कर्नाटक चुनाव के बाद उनकी पीएम मोदी से मुलाकात भी हुई है, उस मुलाकात में उन्हे क्या आश्वासन मिला, यह तो एक रहस्य है, लेकिन जिस प्रकार कभी सीएम योगी तो कभी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या को बुलाया जा रहा है, उससे यह तो संकेत मिलता है कि यूपी में कुछ बड़ा बदलाव होने जा रहा है.
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