रांची(RANCHI): झारखंड में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा को अलविदा बोलकर हरे रंग से भगवा हो चुके. पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के बारे कहा जा रहा है कि वो टेंशन में है! वजह ये है की जिस तरह से वो गुरु जी के साथ झारखंड आंदोलन से जुड़े और लंबे समय तक तीर धनुष वाले झंडे को ढोया है. उसके बाद भले ही चम्पई दा कमल को थाम लिया हो, लेकिन ना तो उनके कार्यकर्ता और ना ही जनता इस बदलाव को पचा पा रहे है. क्योंकि आज भी तीर धनुष उनके लिए सबसे भरोसे मंद और विश्वास का प्रतीक है. ज्यादातर आदिवासी इसी तीर धनुष के नाम पर ही वोट देते हैं. ऐसे में अब चर्चा है कि हेमंत सोरेन भी कोल्हान से चुनाव ही मैदान में उतर सकते हैं. अगर हेमंत सोरेन चंपाई के सामने खड़े हो गए तो उनके लिए जीत मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी हो सकती है. चंपाई सोरेन अब सोच में है कि आगे क्या करेंगे अगर चुनाव हार जाएंगे तो उनके राजनीतिक कैरियर पर भी विराम लग जाएगा.
झामुमो से बगावत कई कद्दावर को महंगी पड़ी
देखा जाए तो झारखंड मुक्ति मोर्चा से जिसने भी बगावत कर अलग रास्ते पर चल पड़ा उन्हें वापस जेएमएम में वापसी करना पड़ा है. इसके कई उदाहरण है चाहे साइमन मरांडी को देखें या हेमलाल मुर्मू को, झामुमो को छोड़ने के बाद इन्हें पछतावा हुआ है और साथ ही एक बड़ी चोट इनके राजनीतक कैरियर पर पहुंची है. खुद को कदद्वार समझने के बाद यह लोग भी भाजपा में शामिल होकर झामुमो को चुनौती दे रहे थे. लेकिन जनता ने इन्हें नकार दिया था. अब इसी राह पर चंपाई सोरेन भी है इसका परिणाम आने वाले दो माह में तय हो जाएगा कि चंपाई अपने साम्राज्य को बचा पाएंगे या तीर धनुष के निशाने पर इनके करियर पर ही एक संशय खड़ा हो जाएगा.
चंपाई पर भारी पड़ेंगे हेमंत
इस बीच विधानसभा चुनाव में कैसे कोल्हान में भाजपा का झण्डा बुलंद होगा. इसकी जिम्मेवारी चंपाई सोरेन पर भाजपा ने दिया है. लेकिन खबर है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी कोल्हान को ही चुन सकते हैं. कोल्हान की किसी सीट से या फिर जिस सीट से चंपई सोरेन विधायक बने. उसी सीट पर हेमंत चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में देखें तो चंपाई के सामने हेमंत सोरेन काफी भारी पड़ते दिखेंगे. एक तो हेमंत सोरेन जिस तरह से लगातार योजनाओं की सौगात लोगों को दे रहे हैं तो दूसरी ओर हाल ही में जिस तरह से जेल उन्हें जाना पड़ा था उसकी सिंपैथी उनके साथ है, और खास बात देख लें तो गुरुजी अगर उस स्थान पर जाकर खड़े हो जाते हैं तो माहौल खुद ब खुद बदल जाता है.
लोकसभा चुनाव में खुद के विधानसभा में हार गए थे चंपाई
चंपई सोरेन के विधानसभा क्षेत्र में देखें तो लोकसभा चुनाव में वह अपने विधानसभा क्षेत्र में ही इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को जीत नहीं दिला सके थे. अपने विधानसभा क्षेत्र से ही कई हजार वोटो से पीछे रह गए थे. तमाम चीजों को मिलाकर देखने से साफ है की चंपई सोरेन ज्यादा कुछ नुकसान तो नहीं पहुंचा पाएंगे लेकिन उनका खुद का एक बड़ा नुकसान हो सकता है.यही वजह है कि चंपाई सोरेन टेंशन में है. आखिर उनके आगे का भविष्य क्या होने वाला है.
लोग गुरुजी को जानते है
इस पर राजनीतिक जानकार बताते है कि कोल्हान में 2019 के चुनाव में भाजपा का सुपड़ा साफ हो गया था. एक सीट पर भी जीत दर्ज नहीं कर सकी थी, जबकि झामुमो ने सभी सीट को कब्जे में ले लिया. अब जब 2024 में चुनाव होना है तो भले ही चंपाई सोरेन अब भगवा रंग में रंग गए. लेकिन जनता के बीच विश्वास अभी तीर धनुष और गुरुजी पर है. यह ऐसी धरती है जहां से गुरुजी ने की कई आंदोलन की शुरुआत कर चुके है. शिबू सोरेन को लोग भगवान मानते है. अब ऐसी स्थिति में हेमंत के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं है. चंपाई सोरेन के जाने से कोई भी फर्क नहीं पड़ने वाला है.
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