टीएनपी डेस्क (TNP DESK):-बिहार की राजधानी पटना में महागठबंधन का महाजुटान होने वाला है. 23 तारीख को क्या-क्या बातें होगी, क्या-क्या दांव-पेंच बुने जाएंगे और क्या-क्या नफे-नुकसान पर चर्चा होगी. इसकी तस्वीर बहुत हद तक साफ हो सकती है. इस पर देश औऱ सभी सियासी पार्टियों की नजरें बनीं रहेगी. महागठबंधन को मजबूत करने में नीतीश कुमार झंडा उठाये हुए हैं. उनकी मंशा और ख्वाहिश किसी भी तरह भाजपा को दिल्ली की सत्ता से बेदखल करने की है . उनकी कोशिशें और कवायद लगातार जारी है , उनका ही प्रयास है कि ज्यादातर बीजेपी विरोधी पार्टियां पटना में महाजुटान करने के लिए तैयार हो गयी है. हालांकि, कशमकश औऱ किचकिच अभी भी मौजूद है . क्योंकि, उन्हें बीजेपी के खिलाफ लामबंदी होना एक मजबूरी है , तो कुछ के लिए यह बेहद जरुरी है. इसलिए सभी साथ आने पर सहमत हुए हैं.
नीतीश पर सबकुछ टिका है !
नीतीश कुमार सियासत के तजुर्बेदार खिलाड़ी है . सत्ता को साधने और मौके की नजाकत को देखते हुए करवट लेना भी बखूबी आता है. उनके मन में महागठबंधन को लेकर क्या खिचड़ी पक रही है. औऱ क्या ख्वाहिशें हिलोरें ले रही है. यह तो कोई नहीं जनता, इसकी तस्दीक तो वक्त ही कर सकता है . फिलहाल उनकी राहों में महगधबंधन को मजबूत करने और आने वाले चुनौतियों के अग्निपथ को संभालने की हैं.
बिहार में महागठबंधन की चुनौती
हाल में महागठबंधन से जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के अलग हो जाने के बाद इसकी एकता पर सवाल उठा रहें है. नीतीश और मांझी ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए. हालांकि, हकीकत को देखे तो हम के जाने के बाद बिहार में अब छह दलों की सरकार है. अगर महगठबंधन की बैठक में भाजपा के खिलाफ संयुक्त विपक्ष का एक प्रत्याशी के उतराने पर बात बनती है. इसमे सबसे ज्यादा पेंच और किचकिच बिहार में ही देखने को मिल सकती है.
जेडीयू करेगी त्याग !
बिहार में महागठबंधन के सभी दलों को मिलाकर लोकसभा में कुल17 सदस्य हैं. जिसमे अकेले 16 जदयू के पास हैं. क्योंकि , पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था. जिसमें 17-17 सीट का बंटवारा हुआ था. जेडीयू ने 16 सीट जीती थी, सिर्फ एक ही सीट हारी थी. यहां जेडीयू के सामने बीजपी झुकी थी. लेकिन, महागठबंधन की मजबूती के चलते लगता है कि जेडीयू झुकेगी. क्योंकि, कर्नाटक जीत के बाद कांग्रेस का उत्साह और भाकपा माले की महत्वकांक्षा के आगे जेडीयू को त्याग करना पड़ सकता है.
जीतन राम मांझी के जाने के बाद महागठबंधन के सीटों के बंटवारें में थोड़ी आसानी होगी, क्योंकि मांझी पांच सीट देने का राग अलाप रहे थे. अब छह दलों में ही सीटों का बंटवारा होगा . विधानसभा में आऱजेडी सबसे बड़ी पार्टी है, पिछली बार उसने 9 सीट कांग्रेस को दिया था. लेकिन, क्या इस बार कांग्रेस 9 पर मानेगी ?. पिछली बार 11 सीट की मांग पर आखिर दम तक लड़ाई की थी . राजद के हिस्से 20 सीट आई थी. जिसमे अपनी तरफ से उसने 1 सीट भाकपा-माले के लिए छोड़ी थी. बाकी बची सीटों में पांच रालोसपा, तीन हम और तीन विकासशील इंसान पार्टी को मिली थी. लेकिन, बीजेपी-जेडीयू की लहर में पिछले चुनाव में खाता सिर्फ कांग्रेस का ही खुला था, बाकी सभी शून्य पर ही ऑलआउट हो गये थे.
इसबार महागठबंधन में रालोसपा, हम और विकासशील इंसान पार्टी नहीं है. लेकिन, महागठबंधन में जो तीन पार्टियां आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस हैं. इन तीनों में ही टिकट को लेकर कुछ न कुछ दांए-बाएं हो सकता है, अंदर ही अंदर रार छिड़ सकती है.
दिक्कत क्या है ?
पिछले लोकसभा चुनाव को देखे तो महागठबंधन की तरफ से आरा की एक संसदीय सीट मिलने के बावजूद माले ने दो अन्य सीटों पर भी प्रत्याशी उतारकर दोस्ताना चुनाव लड़ा था. इसके चलते ही जहानाबाद की सीट पर राजद को बहुत कम अंतर से हार झेलनी पड़ी थी. इस बार भी माले ने छह सीटों पर दावेदारी की है. लिहाजा, मनाना इतना आसान नहीं होगा. इधर, कर्नाटक की शानदार जीत के बाद कांग्रेस के हौंसले भी बुलंद हैं. पिछली बार कांग्रेस 11 सीट पर अड़ी थी, लेकिन 9 सीट ही मिली. इस बार नहीं लगता कि, इतनी सीटों पर कांग्रेस मानने वाली है.
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें है. इसमे महागठबंधन में शामिल पार्टियों को कितनी-कितनी सीट मिलेगी. इस पर सभी की नजर होगी. हालांकि, यह सच्चाई है कि टिकट बंटवारें को लेकर खींचतान औऱ आखिरी वक्त तक कशमकश देखने को मिलेगी, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता. यहां सबसे ज्यादा दिलचस्पी जेडीयू को लेकर होगी, आखिर वह कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. क्योंकि, ये तय है कि कि महगठबंधन की एकता में किसी तरह की आंच न आए, इसके लिए जेडीयू को ही पहले कुर्बानी देनी होगी. तब ही नीतीश कुमार भाजपा को चुनौती दे पायेंगे.
रिपोर्ट-शिवपूजन सिंह
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