टीएनपी डेस्क(TNP DESK) : गुजरात का चुनाव परिणाम अपने हैट्रिक को पार कर गया है. वैसे तो इस चुनाव में सभी के कयास थे कि बीजेपी ही सत्ता संभालेगी लेकिन कहीं न कहीं बीजेपी के खुद के मन में 2017 का चुनाव भटक रहा था. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व और उनके सीक्रेट मंत्र ने न सिर्फ लड़खड़ाती हुई बीजेपी को गुजरात में संभाला बल्कि जीत की सुपर डुपर हैट्रिक भी दिला दी. कहीं न कहीं इस जीत से 2024 की रूप रेखा का भी पता लगाया जा सकता है. पिछले दो लोकसभा चुनावों में लगातार मोदी के नेतृत्व में बीजेपी प्रचंड बहुमत से जीतती आ रही है. वहीं कॉंग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही. इस बार भी ऐसा ही कुछ गुजरात में देखने को मिला. 182 सीटों पर हो रहे विधानसभा चुनाव में अकेले बीजेपी 157 सीट पर जीत दर्ज की है. इस जीत ने अब तक के सभी रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया है. बता दें कि इससे पूर्व 1985 में माधव सिंह सोलंकी की अगुआई में कांग्रेस ने 149 सीटें हासिल की थी. वह सूबे में किसी भी पार्टी का अबतक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था लेकिन इस बार बीजेपी की कुछ ऐसी लहर चली कि सोलंकी का रेकॉर्ड भी ध्वस्त हो गया. लेकिन प्रश्न ये है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बमुश्किल अपनी सत्ता बचा पाने वाली बीजेपी 5 साल बाद अभूतपूर्व कामयाबी कैसे हासिल कर ली. कैसे गुजरात में 2017 की डँवाडोल स्थिति के बाद भी बीजेपी ने अपनी जबरदस्त वापसी की. आईए जानते हैं आखिर क्या है वो “मोदी मंत्र” जिससे बीजेपी ने गुजरात में करिश्मा कर डाला.
2017 के खराब परिणाम के बाद गुजरात की कमान पीएम ने अपने हाथों में ली
बात करें पिछले विधान सभा चुनाव की तो बीजेपी 100 का आंकड़ा भी नहीं छू पाई थी. 1995 के बाद सूबे में बीजेपी का ये सबसे खराब प्रदर्शन था. कांग्रेस लगभग उसे सत्ता से बेदखल करते-करते रह गई थी. 2017 में कॉंग्रेस के खाते में 78 सीटें आईं जो गुजरात में 32 सालों में उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. वहीं बीजेपी को 99 सीटें तो मिलीं जो बहुमत के आंकड़े 92 से ज्यादा थीं लेकिन 1995 के बाद सूबे में बीजेपी का ये सबसे खराब प्रदर्शन था. बीजेपी के इस खराब प्रदर्शन के लिए कई फैक्टर जिम्मेदार थे. पाटीदारों का आंदोलन जिनको राजनीतिक रूप से प्रभावशाली माना जाता है. पाटीदारों की मांग थी कि उन्हें आरक्षण दिया जाए. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में आरक्षण अपने चरम पर था. इससे बीजेपी को नुकसान पहुंचा. वहीं ओबीसी और दलितों के नेता अल्पेश और जिग्नेश मेवानी ने भी जातिवाद की राजनीति कर के बीजेपी को बहुत नुकसान पहुंचाया. इसके अलावा नए-नए लागू हुए जीएसटी की वजह से कारोबारियों में रोष था. इन सभी मुख्य कारणों के कारण 2017 में बीजेपी को एक शर्मनाक जीत हासिल हुई . इसके बाद गुजरात की कमान प्रधानमंत्री मोदी ने अपने हाथों में ली, गुजरात मोदी का गृहराज्य होने के साथ साथ उनका गढ़ भी था इसलिए गुजरात में बीजेपी यदि हारती तो इससे शर्मनाक कुछ नहीं. उन्होंने बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ और अपने गृह राज्य को बचाने के लिए खुद मोर्चा संभाल लिया.
विपक्ष को तोड़ने का सीक्रेट
पीएम मोदी कभी विपक्ष को कमजोर नहीं समझते. गुजरात में भी कुछ ऐसा ही प्रयोग मोदी ने किया. 2017 के बाद बीजेपी नेताओं ने साम दाम दंड भेद की नीति अपनाते हुए अपने प्रतिद्वंदीयों को तोड़ना शुरू कर दिया. जो टूट सकते थे तोड़े गए जो नहीं टूटे बीजेपी ने चुन-चुनकर उन नेताओं पर डोरे डालने शुरू कर दिए जो भविष्य में उसके लिए खतरा साबित हो सकते थे. कॉंग्रेस की ताकत को टटोलने और जो कांग्रेस को ताकत पहुंचा रहे थे उन सभी नेताओं को कॉंग्रेस के खेमे से निकाल कर अपने खेमे में मिलने का मंत्र काम आया. इसके बाद पाटीदार आंदोलन के नेताओं में फूट पड़ गया. आंदोलन के प्रमुख चेहरे हार्दिक पटेल अलग-थलग पड़ गए. बाद में पटेल ने कांग्रेस का दमन थाम लिया. फिर उसके बाद अल्पेश ठाकोर जो की एक प्रभावशाली युवा नेता और ओबीसी का सशक्त चेहरा था उसे बीजेपी ने अपने साथ मिलाया. बता दें ठाकोर ने 2019 में कांग्रेस के साथ-साथ राधनपुर विधानसभा सीट के सदस्यता से भी इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया. हालांकि, उसके बाद हुए उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था फिर भी इस जीत के इस मंत्र में एक बेहतरीन मोहरा साबित हो रहे थे ठाकोर. इसके बाद अलग थलग पड़े पटेल को भी 2022 आते-आते बीजेपी कांग्रेस से तोड़कर अपने पाले में लाने में कामयाब हो गई. बता दें कभी पानी पी-पीकर पीएम मोदी को कोसने वाले हार्दिक पटेल का अचानक ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ कि वह मोदी को गुजरात और देश का गौरव बताते नहीं थकते.
मौके का पूरा उठाया लाभ
डूबती हुई कॉंग्रेस की नैया को छोड़ सभी भागना चाहते थे ऐसे में बीजेपी ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाया और सिर्फ अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल ही नहीं, बीजेपी अपनी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कई नेताओं को तोड़ने में कामयाब रही. ऐसा लग रहा था की 2017 के चुनाव के बाद कांग्रेस में जैसे भगदड़ मच गई हो. एक-एक करके कॉंग्रेस के कई विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए. बड़ी बात ये रही की इनके जरिए क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को भी साधने में बीजेपी कामयाब हो गई. अल्पेश ठाकोर को छोड़कर ऐसे सभी विधायक बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव जीतने में कामयाब हो गए. कांग्रेस के कई पूर्व विधायक भी बीजेपी में शामिल हुए. इसके जरिए बीजेपी ने न सिर्फ जातिगत समीकरण साधे बल्कि ये नैरेटिव बनाने में भी कामयाब हुई कि कॉंग्रेस में कोई नही है' तभी तो उसके नेता भाग रहे है.
रातोंरात एंटी-इन्कंबेंसी को बदल कर बना दी प्रो इन्कंबेंसी
गुजरात हमेशा से बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है. साथ ही गुजरात बीजेपी की राजनीतिक प्रयोगशाला भी रही है. पीएम मोदी ने इस जीत की तैयारी 2021 से ही करनी शुरू कर दी थी. 2021 में पहले तो कैबिनेट फेरबदल किए जिसके जरिए पाटीदारों की नाराजगी दूर करने और सौराष्ट्र को साधने की कोशिश की. इसके दो महीने बाद उन्होंने ऐसा मास्टरस्ट्रोक खेल दिया जिसने एंटी-इन्कंबेंसी की हवा निकाल दी. एक ऐसा प्रयोग जिसके बारे में सियासत के बड़े-बड़े शूरमाओं को भी अंदाजा नहीं रहा होगा. रातों-रात गुजरात की पूरी सरकार ही बदल गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से इस्तीफा ले लिया गया. पाटीदार भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया. नए मंत्रिपरिषद में रुपाणी मंत्रिपरिषद के सभी सदस्यों की छुट्टी कर दी गई. यानी सभी नए मंत्री बनाए गए. नए मंत्रिपरिषद में क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन साधा गया. पाटादारों को ज्यादा जगह दी गई. युवा चेहरों को तवज्जों दिया गया. इससे वर्षों से सत्ता में रहने की वजह से जो कुछ भी सत्ताविरोधी रुझान था उसे खत्म कर दिया गया. रही-सही कसर 2022 में टिकट बंटवारे में पूरी कर दी गई. विजय रुपाणी, नितिन पटेल, भूपेंद्र सिंह चुडास्मा जैसे दिग्गजों के बजाय नए चेहरों को टिकट दिया गया. कद्दावर पूर्व मंत्रियों ने ऐलान किया कि वे चुनाव नहीं लड़ना चाहते. बड़े पैमाने पर सिटिंग एमएलए के टिकट काटे गए. इससे कुछ जगह बीजेपी को बगावत का सामना तो करना पड़ा लेकिन नतीजे बताते हैं कि बीजेपी का ये दांव एंटी-इन्कंबेंसी को प्रो- इन्कंबेंसी मे बदलने मे कामयाब रही.
AAP की काट, झाड़ू से सतर्कता और मुफ़्त की राजनीति पर हमला
आम आदमी पार्टी की गुजरात में दस्तक के साथ ही बीजेपी सतर्क हो गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मुफ्त की रेवड़ी' कल्चर बता कर केजरीवाल पर तीखा हमला करते हुए आम आदमी पार्टी को कठघरे में खड़ा किया. इस दौरान बीजेपी पूरी तरह आम आदमी पार्टी पर हमलावर रही. बीजेपी ने हमेशा की तरह इस बार भी “गुजराती अस्मिता” का दांव खेला. दूसरी तरफ, पीएम मोदी ने चुनाव से पहले गुजरात को हजारों करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट की सौगात की. ताबड़तोड़ शिलान्यास और लोकार्पण कार्यक्रम हुए. बीजेपी ने 'गुजरात के विकास मॉडल' को शो केस किया. इन सबसे ये संदेश गया कि निवेश के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच गुजरात पहली पसंद है.
गुजरात यूं ही नहीं कहलाता बीजेपी का गढ़
यदि गुजरात के इतिहास को देखें 1995 में पहली बार केशुभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में बीजेपी की सरकार बनी. उसके बाद से बीच के 17 महीने को छोड़ दें तो अबतक लगातार सूबे में बीजेपी का ही परचम लहरा रहा है. अक्टूबर 1996 में बीजेपी के शंकर सिंह वघेला ने बगावत कर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी. वघेला ने बगावत के बाद राष्ट्रीय जनता पार्टी नाम से एक अलग पार्टी बनाई. अक्टूबर 1997 में वघेला ने पद छोड़ा तो राष्ट्रीय जनता पार्टी के ही दिलीप पारिख मुख्यमंत्री बने जो मार्च 1998 तक पद पर रहे. 1995 के बाद यही 17 महीने का अपवाद है जब गुजरात में बीजेपी की सरकार नहीं रही है. अब पिछले 27 सालों के बाद आने वाले 5 वर्षों तक पुनः बीजेपी ही गुजरात की सत्ता पर काबिज रहेगी.
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