Tnpdesk-बड़कागांव विधायक अम्बा प्रसाद के ठिकानों पर ईडी की छापेमारी के बाद झारखंड का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. ईडी की इस कार्रवाई को सियासी चश्मे से देखने-समझने की कोशिश जारी है. आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरु हो चुका है. लेकिन सियासी दलों की इन बयानबाजियों से अलग खुद अम्बा ने जो आरोप लगाये हैं, वह वाकई एक गंभीर मामला है और यदि इस आरोप में जरा भी तथ्य है, तो निश्चित रुप से यह बेहद हैरान-परेशान करने वाला है. क्योंकि अम्बा का आरोप भाजपा पर नहीं होकर संघ परिवार पर है. झारखंड की सियासत में पहली बार कटघरे में भाजपा नहीं होकर संघ परिवार और उसके कार्यकर्ता है. क्योंकि यदि भाजपा के द्वारा पाला बदल कर कमल की सवारी करने का दवाब बनाया जाता है. तो इसे सामान्य सियासी गतिविधि मानी जा सकती है. एक सियासी दल के कार्यकर्ता के नाते भाजपा कार्यकर्ताओं को यह हक है कि वह अपनी ताकत का विस्तार करें और विरोधी खेमे के योग्य और जमीन स्तर पर मजबूत सियासी कार्यकर्ताओं को भाजपा के साथ जोड़ने का प्रयास करें. लेकिन इस बार आरोप तो उस संघ परिवार है. जिसके द्वारा बार-बार राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने का दावा किया जाता है. अपने को सांस्कृतिक संगठन बताया जाता है. इस बात का दावा किया जाता है कि क्या भाजपा, क्या राजद और क्या कांग्रेस उसके लिए तो सभी एक ही पायदान पर खड़े हैं. उसका सपना को हिन्दूओं को एकजूट करना है, और हिन्दू की परिभाषा भी किसी संकीर्ण दायरे में बंधा नहीं है. उनके हिन्दूत्व में पंथ-संप्रदाय का कोई स्थान नहीं है. हिन्दूत्व की परिभाषा इतनी विशाल है कि कई बार तो मस्लिम और ईशाई धर्मालंबियों को भी इस दायरे में समेटने की कोशिश की जाती है. यानि हिंदूत्व के इस अम्ब्रेला में सारे पंथ संप्रदाय एक साथ खड़े हैं. यानि कुल मिलकर राष्ट्रवाद ही धर्म और राष्ट्र की पूजा ही संस्कृति है.
संघ कार्यकर्ताओं का अम्बा के आवास पर जमघट
लेकिन अम्बा के दावे और आरोप तो कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं. छापेमारी के बाद करीबन आधी रात जैसे ही अम्बा मीडिया के सामने आयी, इस बात का दावा किया कि जैसे ही सुबह उनकी नींद टूटी, अभी अलसायी अवस्था में ही थी, उससे बेड के करीब ईडी के अधिकारी पहुंच चुके थें, और उसके बाद पूरा दिन ईडी अधिकारियों के सामने खड़ा रहना पड़ा. खैर यहां तक तो ठीक है. लेकिन इसके बाद का आरोप और भी गंभीर है. अम्बा का आरोप है कि उस पर संघ परिवार के कार्यकर्ताओं के द्वारा कमल की सवारी कर चतरा-हजारीबाग संसदीय सीट से मैदान में उतरने का लगातार दवाब बनाया जा रहा था. संघ के कार्यकर्ता उसके आवास पर लगातार जमघट लगा रहे थें. लेकिन उसके द्वारा द्वारा बार-बार संघ परिवार के इस ऑफर को खारिज किया जा रहा था, वैसे ही उसके पास कांग्रेस आकालमान की ओर से हजारीबाग में अपनी तैयारी शुरु करने का आदेश मिल चुका था. बावजूद इसके पर यह दवाब बढ़ता ही गया. और आखिरकार इसकी परिणति इस छापेमारी के रुप में हुई.
अब इन आरोपों में कितनी सच्चाई है. इसका जवाब तो संघ परिवार की ओर से ही आ सकता है. लेकिन अम्बा के इन आरोपों के बाद एक साथ कई सवाल खड़े होने लगे हैं, और अब यह सवाल सिर्फ झारखंड के सियासी गलियारे तक सिमटता नजर नहीं आता है. निश्चित रुप से इसकी गूंज दूर तलक जायेगी और अब यह मुद्दा राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आयेगा.
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