रांची(RANCHI) - बंगलादेश से सटे इलाकों में बंगालदेशी घूसपैठ पर राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने अपनी चिंता प्रकट की है. शीतकालीन सत्र से ठीक पहले जनसांख्यिकी बदलाव राज्यपाल की चिंता बेहद महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि इस बंगलादेशी घूसपैठ के कारण इस इलाके के जनसांख्यिकी में बड़ा बदलाव आ रहा है, और इसके कारण आदिवासी समाज की परंपरायें और उनकी सभ्यता संस्कृति पर खतरा उत्पन्न हो गया है, घूसपैठिये यहां की आदिवासी महिलाओं से शादी कर नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं. राज्यपाल ने इस मामले में सीएम हेमंत और मुख्य सचिव के बात भी की है. उन्होंने इस जनसांख्यिकी बदलाव को रोकने के लिए सतर्कता बरते सलाह दी है.
झारखंड में बांग्लादेशी घूसपैठ के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आती है भाजपा की राजनीति
यहां बता दें कि झारखंड में भाजपा की पूरी राजनीति पर भी इसी मुद्दे के इर्द गिर्द घूमती नजर आ रही है, उसके द्वारा संताल इलाके में मिनी एनआरसी के दावे किये जा रहे हैं. वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल और पूर्व सीएम रघुवर दास के द्वारा इस मुद्दे को ट्वीटर वार छेड़ दिया गया है, भाजपा की पूरी रणनीति बांग्लादेसी घूसपैठ के सवाल पर हेमंत सरकार को घेरने की है. भाजपा बांग्लादेशी घूसपैठियों को आईटम बम तुलना कर रही है, और उसके शब्दों में इसका सीधा जिम्मेवार हेमंत सोरेन की सरकार है.
झारखंड हाईकोर्ट में दायर हुई है याचिका
यहां यह भी ध्यान रहे कि इस मुद्दे को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई है. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय से रिपोर्ट भी तलब किया है. कोर्ट ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय से इस बात की जानकारी की मांग की है कि संताल इलाकों में इतने बड़े पैमाने पर बंग्लादेशियों का घूसपैठ कैसे हो रहा है. यहां ध्यान रहे कि सीमा की सुरक्षा राज्य सरकार की जिम्मेवारी नहीं है, यह केन्द्रीय गृह मंत्रालय से जुड़ा मामला है, और सीमा की सुरक्षा उसकी जिम्मेवारी है, लेकिन इसके ठीक उलट भाजपा के द्वारा इस मुद्दे पर राज्य सरकार पर निशाना साधा जा रहा है.
जामताड़ा, पाकुड़, गोड्डा, साहिबगंज पर मचा है कोहराम
ध्यान रहे कि याचिकाकर्ता का मुख्य चिंता जामताड़ा, पाकुड़, गोड्डा, साहिबगंज जिलों को लेकर है. याचिका कर्ता का दावा है कि इन जिलों में आदिवासियों की जनसंख्या में लगातार गिरावट रही है. इस हालत में हमें इन जिलों की जनसांख्यिकी बदलाव को समझना होगा, इन इलाकों में आदिवासी मुस्लिम आबादी के अनुपात में क्या बदलाव आया उसे परखना होगा.
क्या कहता है जनगणना के आंकड़ें
यदि हम साहिबगंज की बात करे तो 2001 में साहिबगंज की कुल आबादी 9 लाख 27 हजार 770 थी, जिनमें मुस्लिम आबादी 2 लाख 70 हजार 423 थी. साफ है कि तब भी साहिबगंज जिले में मुस्लिमों की आबादी करीबन 29.15 फीसदी थी, जबकि 2011 की जनगणना में मुस्लिमों की आबादी 2 लाख 70 हजार 423 से बढ़कर 3 लाख 8 हजार 343 हो गयी, जबकि कुल आबादी का 11 लाख 50 हजार 567 थी, इस प्रकार कुल जनसंख्या में मुस्लिमों की आबादी करीबन 26.80 आती है, यानि 2001 में मुस्लिमों की आबादी जो 29.15 फीसदी थी वह 2011 में 26.80 फीसदी हो गयी. इस प्रकार तो भाजपा का पूरा दावा ही खोखला नजर आने लगता है.
ठीक यही हाल पाकुड़ जिले की है. 2001 की जनसंख्या रिपोर्ट में पाकुड की कुल आबादी 7 लाख 1 हजार 664 थी, इसमें से मुस्लिमों की आबादी 2 लाख 32 हजार 373 थी, यानि कुल आबादी का 33 फीसदी जबकि 2011 की जनगणना रिपोर्ट में पाकुड़ की कुल आबादी 9 लाख 422 हो गयी, इसमें से मुस्लिम समुदाय की आबादी कुल 3 लाख 22 हजार 963 थी,यानि कुल आबादी का 33.87 फीसदी, इस प्रकार जिस जनसांख्यिकी बदलाव का दावा किया जा रहा है, उसकी सच्चाई मात्र 0.87 फीसदी की है.
करना होगा अगली जनगणना का इंतजार
साफ है कि जनसांख्यिकी बदलाव के सच्चाई को समझने लिए हमें अगली जनगणना रिपोर्ट का इंतजार करना होगा. साथ ही इस पूरे शासन काल में सरकार को कमोबेश भाजपा के पास ही थी. लेकिन इस संभावित जनसांख्यिकी बदलाव के लिए सिर्फ और सिर्फ हेमंत सरकार को जिम्मेवार कैसे माना जा सकता है, इसके लिए तो वह सारी पार्टियों उतनी ही जिम्मेवार हैं, जिनका इस दौरान शासन रहा. याद रहे कि 2019 तक झारखंड में भाजपा की ही सरकार थी, रघुवर दास उस सरकार के मुखिया थें, तब तो उनके द्वारा इस जनसांख्यिकी बदलाव को रोकने लिए कोई कदम नहीं उठाया गया, लेकिन सत्ता हाथ से जाते ही यह कथित जनसांख्यिकी बदलाव आईटम बम नजर आन लगा. जबकि सच्चाई है कि हमें जनसांख्यिकी बदलाव के इस आंकडों को समझना होगा, बगैर किसी आकंड़े के हम सिर्फ हवावाजी करते नजर आते हैं, हालांकि महामहिम राज्यपाल ने जो चिंता प्रकट की है, उसका ध्यान रखा जाना चाहिए, लेकिन इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि देश की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेवारी केन्द्रीय गृह मंत्रालय की है, निश्चित रुप से यदि गृह मंत्रालय के द्वारा कोई अलर्ट जारी किया जाता है, तो उसे कार्यान्वित करने की जिम्मेवारी राज्य सरकरा के कंधों पर है.
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