धनबाद(DHANBAD) : धनबाद की झरिया देश की अनूठी कोयला बेल्ट है. दुनिया भर से अच्छी गुणवत्ता का कोयला झरिया में ही मिलता है. विशेषता यह भी है कि यह कोयला जमीन के बहुत करीब होता है. कोयला खनन का यहां इतिहास बहुत पुराना है. 1884 से झरिया इलाके में कोयला का खनन किया जा रहा है. भूमिगत आग का पता भी 1919 में इसी इलाके से चला. कोयलांचल की अर्थव्यवस्था का प्रमुख केंद्र पहले झरिया थी. आज भी कमोवेश है. विशेषता यह है कि कोयला जमीन के नजदीक उपलब्ध हो जाता फिलहाल जमीन के नीचे आग लगी हुई है तो जमीन के ऊपर "राजनीतिक आग" भी जल रही है. आग की 'लौ' एक ही परिवार के लोगों से उठ रही है. यह इलाका दबंगई के लिए भी जाना जाता है. झारखंड में विधानसभा चुनाव अब होने ही वाला है. विधानसभा चुनाव को लेकर टिकट की चर्चा होना बहुत स्वाभाविक है. हर कोई टिकट पाने की इच्छा रखता है, रखना भी चाहिए. लेकिन झरिया विधानसभा की कहानी थोड़ी अलग है. यह कहानी रोचक भी है तो चिंतनीय भी है.
1977 के बाद लगभग एक ही परिवार का रहा दब दबा
1977 के बाद से अगर बात की जाए तो कोयला क्षेत्र के बेताज बादशाह रहे सूर्यदेव सिंह झरिया विधानसभा से चार बार विधायक रहे. उनके निधन के बाद दो बार उनकी पत्नी और एक बार उनका बेटा विधायक रहे. उनके भाई बच्चा सिंह भी विधायक रहे. फिलहाल सूर्यदेव सिंह के भाई की बहू झरिया विधानसभा से विधायक है. अभी सिंह मेंशन और रघुकुल के बीच पारिवारिक विवाद चल रहा है. विवाद चरम पर है. अपने चचेरे भाई नीरज सिंह हत्याकांड में पूर्व भाजपा विधायक और सूर्यदेव सिंह के बेटे संजीव सिंह 2017 से ही जेल में है. 2019 में उनके जेल में रहने के कारण झरिया विधानसभा से उनकी पत्नी रागिनी सिंह भाजपा से चुनाव लड़ी, तो दूसरी ओर स्व. नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा नीरज सिंह ने भी चुनाव में ताल ठोक दी. वह कांग्रेस की टिकट पर चुनाव में थी. चुनावी लड़ाई हुई और अंततः कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही पूर्णिमा नीरज सिंह चुनाव जीत गई और वह फिलहाल झरिया से विधायक है.
2019 में पूर्णिमा नीरज सिंह को 79,786 वोट मिले थे
2019 के विधानसभा चुनाव में पूर्णिमा नीरज सिंह को 79,786 वोट मिले थे. भाजपा से चुनाव लड़ रही रागिनी सिंह को 67,732 वोट से ही संतोष करना पड़ा था. 2024 का चुनाव फिर आ गया है. इसके पहले 2024 में लोकसभा का चुनाव भी हुआ. लोकसभा चुनाव में झरिया विधानसभा से कांग्रेस पिछड़ गई और भाजपा को यहां से लीड मिली. अब 2024 विधानसभा चुनाव की तैयारी है और झरिया सीट निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण सीट होगी. वैसे, झरिया की भौगोलिक बनावट भी विचित्र है. राजा के शहर झरिया की बूढ़ी हड्डियां आज आठ-आठ आंसू बहा रही है. यह कहना गलत नहीं होगा कि झरिया की राजनीति कर कई लोग राज्य से लेकर केंद्र तक मंत्री बन गए. मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन इसका लाभ झरिया की बूढ़ी हड्डियों को नहीं मिला. आज झरिया प्रदूषण से कराह रही है. झरिया की जनता बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही है. झरिया के रैयत पुनर्वास के लिए प्रयास कर रहे है. झरिया का संशोधित मास्टर प्लान कैबिनेट से पारित नहीं हुआ है. नतीजा हुआ कि एक लाख से कुछ अधिक लोगों का पुनर्वास ठप पड़ गया है.
झरिया में टकराव की राजनीति भी खूब चलती रही है
झरिया में टकराव की राजनीति भी खूब चलती है. यह राजनीति आज से नहीं, बल्कि बहुत पहले से चलती आ रही है. एक समय तो झरिया की हैसियत कुछ ऐसी थी कि झरिया से ही लोग धनबाद को जानते थे, लेकिन आज यह गौरवशाली झरिया सुविधाओं की मांग कर रही है. कहा तो यह भी जाता है कि झरिया में रहने वाले लोग अपनी कुल आयु के 10 वर्ष कम जीते है. क्योंकि प्रदूषण इतना अधिक है कि लोगों की आयु कम हो जाती है. फिलहाल आउटसोर्सिंग के जरिए भारत कोकिंग कोल लिमिटेड कोयला का उत्पादन कर रहा है. नतीजा है कि वायुमंडल में धूल कण की वजह से प्रदूषण की मात्रा काफी अधिक रहती है. ऐसी बात नहीं है कि समस्याओं से घिरी झारिया आवाज नहीं उठाती है. आवाज उठाती है तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती. यह भी होता है कि राजनीतिक दल के लोगों की आवाज में बुलंदी नहीं होती. कुछ सामाजिक संगठन आवाज उठाते हैं, लेकिन वह नक्करखाने में तूती की आवाज साबित होती है. अब देखना है कि 2024 के विधानसभा चुनाव में झरिया क्या रंग दिखती है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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