पटना(PATNA)- कभी नीतीश कुमार की राजनीति को सुशासन का प्रतीक बताने वाले, सीएम नीतीश के एक इशारे मात्र से लालू परिवार के खिलाफ दिन रात विष वमन करने वाले और हालिया दिनों में बिहार की बदलती राजनीति का शिकार बन चुके पूर्व जदयू प्रवक्ता अजय आलोक ने आखिरकार अपना राजनीतिक ठिकाना खोज लिया. बल्कि यों कहें की औपचारिक रुप से उस राजनीतिक ठिकाने को अंगीकार कर लिया.
पूरा हुआ राजनीतिक सफरनामा?
क्योंकि जदयू से दूरी बनने के बाद भले ही विभिन्न राष्ट्रीय चैनलों पर उन्हे बतौर राजनीतिक विश्लेषक बुलाया जाता रहा हो, उनसे निष्पक्ष राय की उम्मीद की जाती रही हो, लेकिन यह सब को पता था कि अजय आलोक का यह नया अवतार महज दिखावा है, आरसीपी सिंह की तरह उनके अन्दर भी भाजपा का भूत प्रवेश कर चुकी और आज दिल्ली में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) की उपस्थिति में उनके द्वारा भाजपा की औपचारिक सदस्यता ग्रहण कर ली गयी. कहा जा सकता है कि इस प्रकार उनकी राजनीतिक सफरनामा पूरा हुआ.
महागठबंधन की सरकार बनने के बाद जदयू के लिए सीमित हो गयी थी इनकी उपयोगिता
याद रहे कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने का सबसे बड़ा राजनीतिक सदमा अजय आलोक को ही लगा था, नीतीश तेजस्वी के एक फैसले से उनकी नींद उड़ गयी थी, अंत समय तक उनकी कोशिश आरसीपी सिंह को आगे कर राजनीतिक पैतरे आजमाने की रही, लेकिन जिस प्रकार से आरसीपी सिंह को जदयू से बेआबरु कर निकाला गया, उसके बाद अजय कुमार के लिए उस जदयू में रहना नामुमकीन हो गया था, जिसका प्रवक्ता बन कर वह उस लालू परिवार के खिलाफ जहर बोते रहते थें.
शायद उन्हे इस बात का भान नहीं था कि नीतीश का प्रवक्ता बनना अलग बात है और नीतीश कुमार बनना एक जूदा बात, जिस बात को अजय आलोक नहीं समझ पाये, राजनीति की उस तल्ख हकीकत को समय रहते नीतीश कुमार समझ गयें, उन्हे इस बात का भान हो गया कि जिस प्रकार अपने छुपे रुस्तमों को आगे कर भाजपा के द्वारा जदयू की जमीन खोदी जा रही है, यदि यह दोस्ती कुछ दिन और चली तो जदयू को शिव सेना बनते देर नहीं लगेगी. और नीतीश कुमार ने अपनी राह अलग करने का फैसला ले लिया.
विकल्पहीन अजय आलोक ने पहली ही भाजपा में जाने का मन बना लिया था
इधर इस बदलती राजनीति के बीच विकल्पहीन अजय आलोक ने भी भाजपा में जाने का मन बना लिया, लेकिन भाजपा में जाने के पहले एक बतौर एक राजनीतिक विश्लेषक अपने को पेश करनी की राजनीति हुई, जहां वह पक्ष तो भाजपा का ही रखते थें, लेकिन उसे पेश एक स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक के बतौर किया जाता था.
वर्षों तक कसीदे पढ़ने के बाद सीएम नीतीश के चेहरे में दिखने लगा था “नाश कुमार” की छवि
यही कारण है कि वर्षो तक जिस नीतीश कुमार के स्वागत में उनके द्वारा कसीदा पढ़ा जाता था, अचानक से उसी नीतीश कुमार के चेहरे में उन्हे नाश कुमार दिखने लगा था. नीतीश कुमार को नाश कुमार की उपाधि देते हुए अजय आलोक ने लिखा था कि "पिछले 12 साल से PM बनने की आशा में बिहार का सत्यानाश करने वाले ये महान व्यक्ति नीतीश कुमार नहीं बल्कि 'नाश' कुमार हैं. कबीरदास ने तो अपनी डाल काटी थी ये आदमी अपनी छाया को काटने चला हैं. सोचिए आप लोग? आपका क्या होगा?" एक दूसरे ट्वीट में अजय आलोक ने लिखा था- "पलटने का मौसम आ गया - बिहार की सत्ता में बने रहना इनका 1-1 दिन बिहार को 1-1 साल पीछे ले जा रहा है."
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