WORLD EARTH DAY: पहले हमने प्रकृति से प्रेम करना छोड़ा,अब प्रकृति हमें छोड़ने लगी है, जानिए कैसे मच रही तबाही


धनबाद(DHANBAD): आज पृथ्वी दिवस है. आज के दिन पेड़ पौधों, मौसम, जलवायु की बात होगी. बेमौसम बारिश ,अत्याधिक गर्मी, भीषण बाढ़, भूस्खलन की घटनाएं लगातार बढ़ रही है. दरअसल जब से हमने प्रकृति से प्रेम करना छोड़ दिया है, तब से प्रकृति भी हमारे साथ प्रेम करना धीरे-धीरे छोड़ रही है. नतीजा है कि जलवायु में लगातार बदलाव से पूरा विश्व परेशान हो गया है. अत्यधिक गर्मी से अनाज की पैदावार में कमी आई है, उत्तराखंड समेत देश के कई जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ी है. बाढ़, भूस्खलन, आसमानी बिजली गिरने की घटनाएं भी तेज हुई है. जल जनित बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है. आज इसकी चर्चा तो खूब होगी लेकिन आज के बाद सब कुछ भुला दिया जाएगा. नतीजा होगा कि हालात बिगड़ते जाएंगे.

अगर हम धनबाद की बात करें तो आज से 50 साल पहले एक चुनमुना और साफ सुथरा, हरा भरा शहर था धनबाद ,लेकिन अब ना हरियाली है और धनबाद जंगलों से घिरा हुआ है. यह शहर भी तेजी से कंक्रीट के जंगल में बदल रहा है. नतीजा है कि धनबाद का मौसम भी अन्य जगहों की तरह बदल गया है. बे मौसम बरसात की बात तो होती ही है, अप्रैल में ही तापमान 44 डिग्री तक पहुंच जा रहा है. धनबाद शहर के चारों ओर कभी हरियाली हुआ करती थी,

अभी हाल ही की बात की जाए तो जहां 8 लेन सड़क बन रही है ,वह इलाका सबसे अधिक बदल गया है. 20 से 25 साल पहले तक यहां बड़े-बड़े पेड़ थे. देखने से लगता था कि इलाके में हरियाली है लेकिन अब पेड़ तो नहीं रहे लेकिन बिल्डिंग जरूर दिख रही है. इसके अलावा कोयला उत्खनन के लिए आउटसोर्सिंग कंपनियों को जो पैच उपलब्ध कराया जा रहा है, वहां से भी वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है. जितने पेड़ काटे जा रहे हैं, मानक के हिसाब से लगाए नहीं जाते हैं. यह बात सही है कि धनबाद में कुछ सड़कें विकसित हुई है. सिंगल लेन की सड़कें अब फोरलेन और 8 लेन में बदल रही हैं, लेकिन इसके लिए पुराने पेड़ों को काट दिया गया. इन पेड़ों की जगह थ्री टाइम्स वृक्ष लगाए जाने थे, लेकिन यह कभी हुआ नहीं. शहर के डिवाइडर में जो पौधे लगाए गए हैं ,वह भी सिर्फ शोपीस बने हुए हैं.

धनबाद कोयलांचल की परेशानियां एक नहीं, कई है. कोयला उत्पादन क्षेत्र होने के कारण यहां वायु प्रदूषण अधिक है. पहले भूमिगत खदानों से कोयला उत्पादन होता था तो हवा में धूल कण की मात्रा कम हुआ करती थी. लेकिन अब तो 95% उत्पादन ओपन कास्ट से होता है .ऐसे में वायुमंडल में धूल कण की मात्रा अधिक हो जाती है. इसके अलावा जो तय मानक है कि कोयले की ढुलाई किस प्रकार की जाए, कोयला लोड होने के बाद वाहनों को ढक कर एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाया जाए, ऐसा कुछ होता नहीं है. आज पृथ्वी दिवस है, केवल चर्चा ही नहीं बल्कि इस पर अगर कोई ठोस निर्णय लिया जा सके तो लोगों के लिए यह भले की बात होगी.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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