देवघर(DEOGHAR):1962 में गोड्डा लोकसभा स्थापित हुआ था तब से लगातार तीन बार कांग्रेस के सांसद यहां से बने.उसके बाद जनता पार्टी फिर दो बार कांग्रेस इसके बाद बीजेपी के सांसद बने. बीजेपी के बाद झामुमो के सांसद यहां रहे फिर दो बार बीजेपी 2004 में कांग्रेस और 2009 से लेकर अभी तक बीजेपी का परचम है.बात पोड़ैयाहाट के विधायक प्रदीप यादव की करें तो गोड्डा लोकसभा से बीजेपी के टिकट पर 2002 में हुए उपचुनाव जीत कर पहली बार सांसद बने.दूसरी बार जब 2004 में चुनाव लड़े तो इन्हें कांग्रेस उम्मीदवार फुरकान अंसारी ने हरा दिया.2007 में प्रदीप यादव बीजेपी का दामन छोड़ जेवीएम पार्टी से 2009,2014,2019 में चुनाव लड़े।वहीं 2024 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन 2002 के बाद से प्रदीप यादव को सफलता अभी तक हाथ नही लगी,जब तक बीजेपी में रहे प्रदीप लोकसभा जीते. बीजेपी छोड़ने के बाद एक बार भी वह नही जीते और 2009 से लगातार बीजेपी के निशिकांत दुबे के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे और हमेशा हारते रहे.
जिन जिन पर किया भरोसा उसी ने धोखा दिया
भले ही प्रदीप यादव विधायक के रूप में एक तेज़ तर्रार, मेहनती और विरोधियों के ऊपर हावी रहने वाले जाने जाते है यही वजह है कि क्षेत्र की जनता उन्हें जीता कर विधानसभा भेजती है,लेकिन जब सांसद का चुनाव होता है तो उन्हें अपनों द्वारा हमेशा से धोखा ही मिलता है.2004 में कांग्रेस के प्रत्याशी फुरकान अंसारी से हारने के बाद इनसे बदला लेने के लिए जब 2009 में चुनाव जेवीएम के टिकट पर लड़ने का मन बनाया तब उस वक्त निशिकांत दुबे की इंट्री गोड्डा लोकसभा में होती है.2009 का चुनाव कांग्रेस और जेवीएम के बीच सीधा टक्कर रहता लेकिन वैसा नहीं हुआ. बीजेपी ने कॉरपोरेट जगत से ताल्लुक रखने वाले निशिकांत को टिकट देकर त्रिकोणीय बना दिया.2009 के लोकसभा चुनाव में कॉरपोरेट की तरह चुनाव लड़ कर निशिकांत दुबे पहली बार सांसद बने.
प्रदीप यादव कभी भी निशिकांत के आगे टिक नहीं पायें है
प्रदीप 2004 में फुरकान से 2009 में निशिकांत से हारने के बाद 2014 में फिर चुनावी मैदान में यह सोच कर उतरे की. इस बार दोनो को हराकर सांसद बने.गोड्डा लोकसभा क्षेत्र यादव,मुस्लिम, सवर्ण और वैश्य बहुल है.2014 में मोदी लहर ने फिर से निशिकांत दुबे ने फुरकान और प्रदीप को हराकर सांसद बने.अब 2019 की बात करें तो इस बार गठबंधन से जेवीएम के टिकट पर प्रदीप यादव चुनाव लड़े.यानी की अब प्रदीप को फुरकान और निशिकांत के खिलाफ नहीं बल्कि सिर्फ निशिकांत के विरुद्ध चुनाव लड़ना था.जब माहौल प्रदीप यादव के पक्ष में बन रहा था तभी जेवीएम नेत्री ने छेड़खानी का मामला प्रदीप के खिलाफ देवघर महिला थाना में कर दिया.चारों तरफ चर्चा थी की निशिकांत के इशारे पर यह मामला दर्ज हुआ.चुनावी माहौल ऐसा प्रदीप का बिगड़ा की वह 1 लाख 84 हज़ार 227 मतों से चुनाव हार गए.इस बार यानी 2024 में फिर से बदला लेने के लिए निशिकांत के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े.लेकिन इस बार भी राजनीति के धुरंधर निशिकांत दुबे से 1 लाख 1 हज़ार 813 मतों से हार गए.इस बार का माहौल गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में ऐसा बना की चारों तरफ चुनाव से पहले प्रदीप की जीत की चर्चा होने लगी.वजह थी कि पुरोहित समाज का निशिकांत का विरोध करना, कुछ बीजेपी विधायक द्वारा प्रदीप के पक्ष में रहना,झारखंड के मंत्री बादल पत्रलेख, हाफिजुल हसन कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह ,पूरा यादव,मुस्लिम, आदिवासी, हरिजन समाज की गोलबंदी,लेकिन प्रदीप ने जिस जिस पर भरोसा किया उसी ने इस बार उन्हें धोखा दिया.हाफिजुल हसन ने अपने क्षेत्र में कड़ी मेहनत की और मधुपुर विधानसभा से जहां उम्मीद थी 20 हजार की लीड की. वहा 8877 से ही बढ़त प्रदीप को मिला.जरमुंडी जहां से लगातार दो बार से विधायक बन रहे है और झारखंड में अभी मंत्री के पद पर काबिज है.
प्रदीप यादव ने जिन लोगों पर भरोसा जताया उनसे धोखा मिला
बादल पत्रलेख उनके क्षेत्र की बात करें तो प्रदीप को यह से 8 से 10 हज़ार लीड की उम्मीद थी लेकिन बादल पत्रलेख ने ऐसा नही करवाया और प्रदीप 44398 मतों से यहां पिछड़ गए.देवघर विधानसभा में आदिवासी,यादव,वैश्य औऱ हरिजन की संख्या ज्यादा है लेकिन यहां उन्हें उम्मीद से कम मत मिले.अब बात खुद प्रदीप के विधानसभा क्षेत्र पोड़ैयाहाट की. जहां से इनको 30 हज़ार की बढ़त की उम्मीद थी, वहां से 8540 मतों से पिछड़ गए.कांग्रेस विधायिका दीपिका पांडे ने भी अपना क्षेत्र महगामा में कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया. यहां से प्रदीप को 8 से 15 हज़ार की बढ़त की उम्मीद थी लेकिन मात्र 121 मत से ही बढ़त पाया.कुल मिलाकर प्रदीप को जिस जिस पर भरोसा था उन्होंने ही भरोसा तोड़ा और प्रदीप लगातार 5वीं बार लोकसभा चुनाव हार गए.
प्रदीप के लगातार हारने के बाबजूद उनका वोट बैंक बढ़ रहा है
2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के फुरकान अंसारी के चुनाव लड़ने के बाबजूद प्रदीप यादव को 1 लाख 76 हज़ार 926 मत प्राप्त हुए थे.वही 2014 के चुनाव में फिर से फुरकान के खड़ा होने पर भी उन्हें 1 लाख 93 हज़ार 506 वोट मिले थे.2019 के चुनाव में फुरकान नही लड़े तो प्रदीप को 4 लाख 53 हज़ार 383 मत मिले जबकी निशिकांत दुबे को 6 लाख 37 हज़ार 610 वोट मिले।निशिकांत दुबे का वोट बैंक 2009 में जहां 1 लाख 89 हज़ार 526 था वहीं 2019 में बढ़कर 6 लाख 37 हज़ार 610 हो गया,लेकिन 2024 में यह महज 55530 ही बढ़ा और इस बार निशिकांत दुबे को गोड्डा की जनता ने 6 लाख 93 हज़ार 140 मतों का आशीर्वाद दिया.दूसरी ओर प्रदीप यादव की बात करें तो जहां 2019 में उन्हें 4 लाख 53 हज़ार 383 मत मिले थे तो इस बार 2024 के चुनाव में इनका 1 लाख 37 हज़ार 944 वोट बढ़ कर आंकड़ा 5 लाख 91 हज़ार 327 तक पहुँच गयांइस हिसाब से भले ही प्रदीप यादव एक ओर लगातार चुनाव हार रहे है लेकिन दूसरी तरफ इनका वोट बैंक बढ़ रहा है.इतना सारा मुद्दा और लोगो का साथ रहने के बाबजूद प्रदीप क्यों नहीं जीते यह सोचना और इस पर मंथन करना प्रत्याशी और आलाकमान का विषय है,लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि इनको अपने ही धोखा दिया है.जिसने धोखा दिया उनके पार्टी आलाकमान उनके साथ क्या करती है.यह समय बतायेगा,लेकिन हार की चिंतन और मंथन जरूर करनी चाहिए.
रिपोर्ट-रितुराज सिन्हा
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