ममता दीदी, एमके स्टालिन की श्रेणी में अब क्यों लिया जाने लगा हेमंत सोरेन का नाम, पढ़िए विस्तार से


धनबाद(DHANBAD): देश में कुछ ही नेता ऐसे हैं, जो भाजपा के सशक्त संगठन के सामने चुनौती देते दिखते है. ममता बनर्जी का नाम इसमें सबसे ऊपर है. बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने भाजपा के सारे प्रयासों पर पानी फेर दिया था. भाजपा को चुनौती देने वालों में एमके स्टालिन का भी नाम गिना जाता है. लेकिन झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम भी अब इस श्रेणी में लिया जाने लगा है. हालांकि नाम तो पहले से ही लिया जा रहा था, लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव में और उसके बाद जिस तरह हेमंत सोरेन मजबूती के साथ खड़े दिख रहे है. तो अब उनका नाम भाजपा को चुनौती देने वालों की श्रेणी में गिना जाने लगा है. झारखंड अब 25 साल का हो गया है. 15 नवंबर को झारखंड ने अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे किये. 2024 के विधानसभा चुनाव में जो काम उनके पिता स्वर्गीय शिबू सोरेन नहीं कर सके, वह काम झारखंड मुक्ति मोर्चा ने हेमंत सोरेन की अगुवाई में कर दिखाया. सबसे बड़ी पार्टी के रूप में झारखंड में झामुमो उभरा.
भाजपा के लगातार निशाने पर रहने के बावजूद हेमंत सोरेन की मुखरता बनी रही
भाजपा के लगातार निशाने पर रहने के बावजूद हेमंत सोरेन राजनीतिक तौर पर मुखर और सक्रिय रहते हैं और शायद यही वजह है कि राष्ट्रीय राजनीति में उनकी अलग पहचान बनती जा रही है. वैसे तो जब 21 दिसंबर 2023 को हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया गया था, उसी समय से यह कहा जाने लगा था कि हेमंत सोरेन ने जेल जाना पसंद किया, लेकिन घुटने नहीं टेके. यह अलग बात है कि जेल से निकलने के बाद हेमंत सोरेन और मजबूत हुए और विधानसभा चुनाव में इसका परिणाम भी दिखा. झारखंड में भाजपा का लगभग सुपड़ा साफ हो गया. वैसे, जिस समय हेमंत सोरेन गिरफ्तार किए गए थे, उस समय ममता बनर्जी और एमके स्टालिन ने भी गिरफ्तारी की आलोचना की थी. ममता बनर्जी ने कहा था कि बीजेपी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए सबको जेल में डाल रही है.
भाजपा की तमाम घेराबंदी के बावजूद रिकॉर्ड वोट से जीता झामुमो
घाटशिला उपचुनाव में एनडीए की तमाम घेराबंदी के बावजूद रिकॉर्ड मतों से झामुमो के प्रत्याशी की विजय होने के बाद से यह कहा जाने लगा है कि झामुमो का सिक्का झारखंड में चल रहा है. वैसे भी झारखंड में भाजपा की ओर से प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की सक्रियता के अलावे और कुछ दिखता नहीं है. लेकिन यहां यह कहना भी जरूरी है कि 25 वर्षों के इस झारखंड में प्रदेश महत्वपूर्ण पड़ाव पर खड़ा है. तमाम खनिज संपदाओं से भरपूर होने के बावजूद यदि राज्य अभी भी पिछड़ा है, तो इसके लिए हो सकता है कि पूर्ववर्ती सरकार जिम्मेवार हो , लेकिन आने वाला समय हेमंत सोरेन से भी पूछेगा कि प्रचंड बहुमत के बाद भी झारखंड की दिशा और दशा क्यों नहीं बदली?
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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