धनबाद (DHANBAD): धनबाद में संचालित बीसीसीएल का मैनेजमेंट भारी दबाव में है. वह पंगा भी नहीं लेना चाहता और आवास भी नहीं देना चाहता. उसे समझ में नहीं आ रहा कि किसको क्वार्टर दें और किसे नहीं. पुलिस अधिकारी और नेताओं का भारी दबाव है. इस दबाव की बात प्रबंधन सीधे तौर पर तो नहीं कहता, लेकिन सूत्रों के अनुसार गुरुवार को कंपनी के फंक्शनल डायरेक्टर्स की बैठक में इस बात का निर्णय होना था कि किन-किन खाली अथवा अतिक्रमित आवास को आवंटित किया जाए. दबाव जब बढ़ा तो कंपनी ने आगे की बैठक के लिए इस निर्णय को टाल दिया. सूत्रों के अनुसार दो दर्जन से अधिक पुलिस अधिकारी और नेताओं ने क्वार्टर का डिमांड रखा है. अभी हाल-फिलहाल में पुलिस अधिकारियों का तबादला बड़ी संख्या में धनबाद से हुआ है और बाहर से अधिकारी आए है. इस वजह से भी क्वार्टर का डिमांड अधिक हो गया है. वैसे तो गैर बीसीसीएल कर्मी को क्वार्टर आवंटित करने का प्रावधान नहीं है, लेकिन दबाव की वजह से प्रबंधन को क्वार्टर देना पड़ता है.
पहले भी बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी और नेता क्वार्टर में रह चुके है
पहले भी बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी और नेता क्वार्टर में रह चुके है. स्वीकृति के बाद रेंटल बेसिस पर क्वार्टर आवंटित किए जाते है. भाड़ा सिर्फ औपचारिकता भर रह जाता है. एक बार क्वार्टर मिल जाने के बाद कोई जल्द खाली भी नहीं करता और भाड़ा भी नहीं भुगतान करता. पानी- बिजली का खर्च भी कंपनी भुगतान करती है. बीसीसीएल के लगभग 8000 से अधिक आवासों पर अभी अतिक्रमणकारियों का कब्जा है. इधर, आवासों की उपयोगिता साबित करने के लिए कोल इंडिया में कुछ नए नियम बनाने की सुगबुगाहट चल रही है. लंबे समय से रिटायर्ड कोल कर्मियों को सरप्लस आवास लीज या किराए पर देने की मांग उठती रही है. इस मांग के बाद कोल इंडिया मैनेजमेंट ने कमेटी भी गठित की है. सूत्र बताते हैं कि इसकी बैठक जून महीने में हुई थी, लेकिन प्रबंधन ने जो आंकड़े प्रस्तुत किये, उस पर यूनियन को आपत्ति थी. यूनियन की मांग थी कि अगली मीटिंग की तिथि निर्धारित की जाए और उसमें सही आंकड़ा दिया जाए.
सेवानिवृत कर्मचारियों को आवास आवंटित करने की भी सुगबुगाहट
अब जानकारी निकल कर आ रही है कि सेवानिवृत कर्मचारियों को आवास आवंटित करने के लिए गठित कमेटी की दूसरी बैठक जुलाई महीने में हो सकती है. कोल इंडिया और अनुषंगी कंपनियां के आवासों पर गैर कर्मियों का कब्जा है. यह बात आईने की तरह साफ है. कुछ पर तो रिटायर्ड कोल कर्मी भी कब्जा जमा कर बैठे हुए है. एक आंकड़े के मुताबिक सबसे अधिक आवासों पर कब्जा सीसीएल में है. बताया गया है कि19000 से अधिक आवासों पर गैर कर्मी, जबकि 2600 से अधिक आवासों पर रिटायर्ड कोल कर्मियों का कब्जा है. धनबाद में संचालित बीसीसीएल की बात की जाए तो यह संख्या 8000 को पार करती है. ईसीएल में तो 15000 से अधिक आवासों पर बाहरी लोगों का कब्जा है. दरअसल, कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद कर्मचारियों की संख्या को देखते हुए आवासों का निर्माण कराया गया था. लेकिन कर्मचारी घटते गए, नई नियुक्तियां नहीं हुई. नतीजा हुआ कि निर्मित आवास की उपयोगिता कम होने लगी.
कंपनी के आवासों पर बड़े पैमाने पर हो गया है कब्ज़ा
आवासों पर बाहरी लोगों का कब्जा हो गया, तो बहुत से आवासों पर रिटायर्ड कर्मी जमे रहे. यह भी बात सच है कि बहुत सारे आवास खंडहर में तब्दील हो गए है. उनकी मरम्मत नहीं होती है. धनबाद की भूली में बड़ी कॉलोनी बनी थी. इस कॉलोनी का हाल भी आज बेहाल है. यहां तो एक प्रथा सी चल गई है कि जो लोग आवास पर कब्जा करते हैं, वह दूसरों से पैसा लेकर दूसरे को हैंडओवर कर देते है. ऐसे आवासों की संख्या कितनी है, इसका तो कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन संख्या अच्छी है. इस तरह का हाल कोल इंडिया की अन्य अनुषंगी कंपनियों का भी है. अब जाकर सुगबुगाहट बढ़ी है कि ऐसे आवासों को कोयला कर्मियों को लीज पर या भाड़े पर दे दिया जाए. ऐसा होने से कंपनी को भी फायदा हो सकता है और अवैध कब्जाधारी से आवास लेकर उसकी उपयोगिता को साबित किया जा सकता है.
रिपोर्ट : धनबाद ब्यूरो
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