धनबाद(DHANBAD): झारखंड में भाजपा की हार को लेकर समीक्षा बैठक तो शनिवार को हो गई. आगे भी होगी. हारे हुए प्रत्याशियों ने कारण बताएं और गिनाए भी. लेकिन इस बीच भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार सांसदों की भी रिपोर्ट कार्ड तैयार की जा रही है. किस संसदीय क्षेत्र में भाजपा कितनी सीट जीती और हार की वजह क्या थी, कितना भीतरघात हुआ. इन सब का भी जिक्र करने की तैयारी है. ऐसा हुआ तो गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे और गिरिडीह के आजसू सांसद चंद्र प्रकाश चौधरी के नाम सबसे ऊपर रहेंगे. गोड्डा सांसद के संसदीय क्षेत्र में सिर्फ जरमुंडी सीट ही भाजपा को मिली है. जबकि गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से सिर्फ बाघमारा सीट भाजपा के खाते में गई है .कुछ सांसदों का परफॉर्मेंस सीट को लेकर बहुत खराब रहा, तो कुछ एवरेज रहे. तो कुछ अव्वल भी आए हैं.
छठी झारखंड विधानसभा में विपक्ष के तेवर थोड़े ढीले जरूर दिखेंगे
यह अलग बात है कि 28 नवंबर को हेमंत सोरेन के शपथ लेने के बाद भी मंत्रिमंडल का गठन नहीं हुआ है. अभी कई पेंच फंसे हुए हैं. हालांकि माले अगर मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होती है, तो गठबंधन के अन्य दलों को मंत्री पद बढ़ाने में सुविधा हो जाएगी. वैसे छठी झारखंड विधानसभा में विपक्ष के तेवर थोड़े ढीले जरूर दिखेंगे. दहाड़ने वाले विधायक चुनाव हार गए हैं .कई दिग्गज नेता सदन में नहीं दिखेंगे. वैसे तो सत्ता पक्ष के मंत्री भी चुनाव हारे हैं. लेकिन विपक्ष की आवाज इस बार कमजोर दिखेगी. पांचवीं विधानसभा में विपक्ष की ओर से सबसे आक्रामक विधायक दिखने वाले कई चुनाव हार गए हैं. भाजपा के सीपी सिंह को छोड़ दिया जाए तो कई वरिष्ठ विधायक इस बार विधानसभा नहीं पहुंच सके हैं. सबसे मुखर रहने वाले नेता प्रतिपक्ष रहे अमर कुमार बाउरी इस बार चुनाव हार गए हैं.
इन नेताओं के चुनाव हार जाने से इस बार कमजोर हो सकता है विपक्ष
भाजपा के मुख्य सचेतक वीरांची नारायण, अनंत ओझा, भानु प्रसाद शाही, रणधीर सिंह भी चुनाव हार गए हैं. सदन के भीतर अथवा बाहर इन विधायकों की विपक्ष की ओर से मुख्य भूमिका होती थी. लगातार चार बार के विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा भी इस बार चुनाव हार गए हैं. रामचंद्र चंद्रवंशी भी इस बार सदन में नहीं पहुंच पाए हैं. आजसू भी कमजोर ही रहेगा. क्योंकि झारखंड की छठी विधानसभा में उसके एक विधायक तिवारी महतो ही जीतकर आए हैं. जो भी हो लेकिन 2024 का चुनाव प्रचार से लेकर परिणाम तक कुछ लग रहा .झारखंड की जनता ने प्रचंड बहुमत के साथ महागठबंधन को सरकार बनाने का मौका दिया है. इसके साथ ही सरकार की जिम्मेवारी भी बढ़ गई है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी अपने किए वादों को लेकर गंभीर दिख रहे हैं. चुनाव के पहले किए गए वादों को एक-एक कर पूरा करने का प्रयास शुरू कर दिए हैं.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
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