टीएनपी डेस्क (Tnp desk):- साल के आखिरी मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने झारखंड के एक गांव की जमकर तारीफ की. अक्सर पीएम अपनी संस्कृति, भाषा, परंपरा को सहेजने की पुरजोर वकालत करते हैं. उनकी कोशिशे लगातार इसे बचाने की रखते हैं. इस बार उन्होंने झारखंड के सुदूर में बसने वाले आदिवासी बहुल गांव मंगलो की पीएम मोदी खूब सराहना की. गांव की ओर से की गई पहल से इतने अभिभूत हुए कि जमकर तारीफ की. सूचना क्रांति की इस तेज भागती दुनिया में सबसे बड़ी चुनौती अंग्रेजीयत के बीच अपनी भाषा को बचा कर रखने की है. यही काम गढ़वा जिले के आदिवासी बहुल मंगलो गांव कर रहा है. इस गांव में बच्चों को कुडुख भाषा में तालीम दी जा रही है. ताकि भाषा का भी संरक्षण हो और बच्चों को भी शिक्षा में आसानी हो. मंगलो गांव में ही कार्तिक उरांव आदिवासी कुडुख स्कूल, जहां 300 आदिवासी बच्चे इस भाषा को सीखने के साथ अन्य विषयों की भी पढ़ाई करते हैं.
पीएम मोदी कहते है कि कुड़ाख भाषा, उरांव आदिवासी समुदाय की मातृभाषा है. जिसकी अपनी लिपि भी है. जिसे तोलंग सिकी के नाम से जाना जाता है. ये भाषा समय के साथ धीरे-धीरे लुप्त होते जा रही थी. जिसके बाद इस समुदाय ने अपनी भाषा में बच्चों को शिक्षा देने का फैसला किया है. इस स्कूल के संचालक अरविंद उरांव बताते हैं कि गांव के बच्चे को इंग्लिश समझने में दिक्कत होती थी. इसलिए अपनी मातृभाषा में पढ़ाने के लिए सोचा गया. इससे ये बात सामने आई कि लोग भी अपनी भाषा में पढ़ने के लिए जुटने लगे और उनकी मुश्किलें भी अन्य भाषा को सीखने में आसान हो गई. प्रधानमंत्री ने मन की बात में बताया कि इन मुश्किलों से निजात पाने के लिए नई शिक्षा नीति से भी मदद मिल रही है. कोशिश यही है कि भाषा बच्चों की शिक्षा में किसी तरह की बाधा न बनें.
रांची से 200 किलोमीटर दूर है मंगलो गांव
राजधानी रांची से करीब 200 किलोमीटर दूर मंगलो गांव है, जो अचनाक मन की बात कार्यक्रम में पीएम मोदी के जिक्र लेने के बाद सुर्खियों में आ गया. गढ़वा जिले में मौजूद ये गांव शिक्षा का अलख आदिवासियों के बीच जल रहा है. इसकी स्थापना यू हीं नहीं हो गई, बल्कि अरविंद उरांव शिक्षा की अहमियत को समझते हुए 2008 में खोला था. उस दौरान उनकी उम्र 20 साल थी. जब बच्चों को अग्रेंजी जैसे विषय सीखने में परेशानियां सामने आने लगी तब कुड़ाख भाषा को शामिल किया. इसका नतीजा ये रहा कि अपनी भाषा में बच्चे पढ़ाई करने लगे. इससे अंग्रेजी सरीखी विदेशी भाषा भी समझ में आने लगी. जो बच्चे स्कूल छोड़कर भटक जाते थे, आज वो भी रोजाना स्कूल पहुंचकर तालीम हासिल करते हैं. कार्तिक उरांव आदिवासी कुड़ुख स्कूल में कक्षा एक से आठवीं तक पढ़ाई होती है. यहां 300 बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में 8 शिक्षक हैं. 300 से 400 रुपए महीना फीस लिया जाता है. जो क्लास के मुताबिक तय होता है.
आखिर क्या है कुड़ुख भाषा का इतिहास
मन की बात में प्रधानमत्री ने उस आदिवासी भाषा का नाम लिया, जिसका नाम कुड़ुख है. बहुत सारे लोग इस भाषा के बारे में जानते भी नहीं होंगे. लेकिन, इसका जिक्र करके इसे सुर्खियों में ला दिया, जो अपने ही समुदाय के बीच ओझल हो रही थी, उसे एक बार फिर उभार दिया. अगर इस बोली को जाने तो इसे कुड़ुख के साथ कुरुख भाषा भी बोला जाता है. जो भारत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में बोली जाती है. हिन्दुस्तान की बात करे तो बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, झारखंड, पश्चिम बंगाल के उरांव जनजातियों के द्वारा बोली जाती है. इसका संबंध उतरी द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है. इसे ‘उरांव भाषा’ भी कहते हैं. इस भाषा में तमिल और कनारी के शब्दों का संग्रह है. पश्चिम बंगाल में कुड़ुख भाषा को पश्चिम बंगाल में राजकीय भाषा के रुप में दर्जा मिला है. इसे फरवरी 2028 में स्वीकृति मिली थी. लिंगविस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया 2011 के रिपोर्ट के अनुसार भारत देश में कुड़ुख भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या 19,88,350 है. माना जाता है कि पुरी दुनिया में कुड़ुख भाषा बोलने वाले उरांव लोग 50 लाख के लगभग है. झारखंड में भी उरांव जनजाति के बीच ये वाणी बोली जाती है.जिसके चलते आदिवासी बहुल सुदूर गांवों में कुड़ुख भाषा का प्रचलन है.
4+