धनबाद(DHANBAD): धनबाद जिले में कुल 56 रेलवे स्टेशन है. धनबाद रेलवे स्टेशन से रोज 108 ट्रेनें गुजरती है. धनबाद रेल मंडल का इलाका अन्य ज़िलों में भी फैला हुआ है. रेलवे का ही आंकड़ा बताता है कि 21 से लेकर 23 मार्च तक धनबाद रेल मंडल में चलाए गए विशेष टिकट चेकिंग अभियान में 25 लाख रुपए से अधिक की राशि जुर्माने के मद में मिली है. पूर्व मध्य रेलवे का दावा है कि यह अभियान आगे भी जारी रहेगा. इससे टिकट लेकर चलने वाले यात्रियों को सुविधा मिलेगी, दूसरी ओर बिना टिकट यात्रा करने वालों में भय होगा. राजस्व का आंकड़ा भी बढ़ेगा. मतलब साफ है कि ट्रेनों में काले कोट वालों की समानांतर व्यवस्था अभी भी चल रही है.
समय बदला लेकिन बहुत कुछ पुराने ढर्रे पर
समय बदल गया है, लोक सचेत हुए हैं, टिकट लेने की व्यवस्था बदल गई है. लेकिन अभी भी वे टिकट यात्रियों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है. अगर कमी आई होती तो 3 दिनों में सिर्फ एक रेल मंडल में 5667 मामले पकड़ में नहीं आते और जुर्माने के रूप में रेलवे को 25 लाख से अधिक की आमदनी नहीं होती. यह बात सच है कि बिना टिकट रेल यात्रा करना भी लोग अपनी शान समझते हैं और इसमें काले कोट धारियों का भी सहयोग मिलता है. उनकी भी आमदनी होती है. नियम के अनुसार ट्रेन में जब कोई टीटीइ सवार होता है तो उसे यह घोषणा करनी होती है कि वह इतनी राशि लेकर ट्रेन में चढ़ा है ताकि अगर इसकी जांच पड़ताल हो तो पता चल सके कि बिना टिकट रेल यात्रा में इस टीटीई की कोई भूमिका है क्या. हालांकि इसके लिए काट खोज लिए जाते है.
ट्रेन में सवार टीटीई के खेल भी होते निराले
ट्रेन में सवार होने से पहले टीटीई कई लोगों से लिखवा कर अपने पास रख लेते हैं कि फलाने जगह से फला सामान लाने के लिए इतनी राशि हम दे रहे है. जांच-पड़ताल जब होती है तो उस कागज को आगे कर अपनी दो नंबर कमाई को सही साबित कर देते है. सवाल उठता है कि 3 दिन के जांच में 5667 मामले पकड़ में आने के बावजूद क्या ट्रेन में चलने वाले टीटीई को चिन्हित करने का काम किया गया है. किन के अधीन सबसे अधिक बिना टिकट यात्री पकड़े गए हैं, उन्हें चिन्हित कर कार्रवाई की कोई रूपरेखा तय की गई है. सिर्फ टिकट जांच अभियान चलाकर राजस्व बढ़ाना, बिना टिकट यात्री के मनोबल को तोड़ना तो अच्छी बात है लेकिन इसमें शामिल रेल कर्मियों के खिलाफ भी उतनी ही शक्ति से कार्रवाई होनी चाहिए. रेलवे के पास अपना निगरानी विभाग भी है, उस विभाग की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है. निगरानी विभाग भी औचक जांच पड़ताल की कार्रवाई शुरू करें तो रेल कर्मियों में भी भय बन सकता है.
रिपोर्ट: सत्यभूषण सिंह
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