कोयलांचल की भूमिगत आ'ग ; कलाम साहब भी आये थे और क्या कहा था -पढ़िए इस रिपोर्ट में


धनबाद (DHANBAD): बारिश के साथ ही कोयलांचल में धसान का खतरा बढ़ने लगता है. सोमवार को ही केंदुआडीह इंस्पेक्टर कार्यालय के मुख्य गेट के पास भू धसान की घटना हुई है. इसके पहले हुई घटनाओं में जीवित लोग भी दफन हुए हैं. बारिश की आशंका को देखते हुए बीसीसीएल प्रबंधन भी अपनी जिम्मेवारी से मुक्त होने की कोशिश में जुट गया है. बीसीसीएल मैनेजमेंट ने एक सूचना जारी कर लोगों को आगाह किया है कि गोधर के 15 नंबर बस्ती, कुर्मी डीह हरिजन बस्ती, मोची बस्ती, 9 नंबर काली बस्ती, 25 नंबर बस्ती, तीन नंबर एवं चार नंबर घन साडीह बस्ती अग्नि प्रभावित क्षेत्र है. यह इलाका रहने लायक नहीं है. जहां-तहां आग के कारण धुँवा दिखाई दे रहा है और अब तो दीवार और फर्श पर दरारें दिखने लगी है.
खान सुरक्षा महानिदेशालय ने भी कहा है खतरनाक
यह भी कहा गया है कि खान सुरक्षा महानिदेशालय ने पहले ही क्षेत्र को खतरनाक बताते हुए रहने वाले लोगों को जल्द से जल्द इलाका खाली करने का निर्देश दिया है. फिर उस इलाके में रहने वाले लोगों से आग्रह है कि अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इलाके को तुरंत खाली कर दें अन्यथा किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना होती है तो उसके लिए रहने वाले लोग स्वयं जिम्मेदार होंगे. यह सूचना न्यू गोधर कुसुंडा कोलियरी के प्रबंधक के हस्ताक्षर से जारी की गई है. आपको बता दें कि कोयलांचल में 1916 में पहली बार भौरा इलाके में भूमिगत आग का पता चला था.
उच्च कोटि का कोयला मिलता है कोयलांचल में
झरिया कोयलांचल में देश में पाए जाने वाले कोयले का सबसे उच्च कोटि का कोयला बिटुमिनस मिलता है. 90 के दशक में भूमिगत आग की चर्चा खूब जोर शोर से शुरू हुई लेकिन यह बड़ा राजनीतिक मुद्दा नहीं बन सका. 2000 में झारखंड अलग होने के बाद उम्मीद थी कि कुछ तेजी आएगी लेकिन सब कुछ पुराने ढर्रे पर ही चलता रहा.
एके राय ने 977 में राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की थी
2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के वैज्ञानिक सलाहकार अब्दुल कलाम, (जो बाद में राष्ट्रपति बने )झरिया आए थे और झरिया की भूमिगत आग के बारे में उन्होंने कहा था कि झरिया की आग को अभी भी रोका जा सकता है ,केवल कोशिश तेज करनी होगी लेकिन उसके बाद झरिया की आग को बुझाना योजनाओं तक ही सीमित रहा. हालांकि इसमें पैसे पानी की तरह बहाए गए. 1977 में धनबाद के तब के सांसद एके राय ने झरिया की आग को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की थी लेकिन यह सब नक्कारखाने खाने में तूती की आवाज साबित हुई.
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