गिरिडीह: तीन साल के बाद एक बार फिर पारसनाथ को लेकर कई आदिवासी संगठनो और जैन समाज के बीच तनातनी होना शुरू हो गया है. एक तरफ जहां जैन समाज पारसनाथ को बीस तीर्थंकरो की मोक्ष भूमि और अपना सबसे बड़ा तीर्थ स्थल मानता है तो वही आदिवासी समाज भी इस पारसनाथ को अपना सबसे बड़ा देवता मारांग बुरु के रूप में मानता है. दोनों समुदायों द्वारा पारसनाथ में अपना एकाधिकार को लेकर लड़ाई चल रही है जो 3 साल पूर्व बहुत ही बड़े रूप से आदिवासी समाज द्वारा शुरूआत किया गया था. वही आज पुनः मधुबन शिखर जी में आदिवासी समाज के कई संगठनों द्वारा पारसनाथ स्थित मरागबुरु का पूजा अर्चना कर शिखरजी मधुबन में प्रदर्शन किया गया. इस प्रदर्शन के माध्यम से आदिवासी समाज ने जैन समाज को अल्टीमेटम दिया कि पारसनाथ को खाली करो क्योंकि पारसनाथ हमारा है. आदिवासी समाज द्वारा जैन समाज पर मारांगबुरु मे अतिक्रमण का आरोप लगाया गया और कहा गया कि जैन समाज द्वारा मारंग बुरु में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इधर आदिवासी युवाओं का कहना था कि जैन समाज ने पारसनाथ पहाड़ के स्वरूप को बदल दिया है और जैन समुदाय द्वारा पारसनाथ पहाड़ में 20 तीर्थंकरों के मोक्ष हासिल करने की दावे को भी झूठा बताया है. इन्हीं मनगढ़ंत दांवों को लेकर जैन समाज न्यायालय और सरकार को अब तक बरगलाने का काम किया है. लेकिन आज सही समय आ गया है की आदिवासी समाज अपना लड़ाई खुद लड़ेगी औऱ जैनियो को पारसनाथ से हटा कर दम लेगा क्योंकि पारसनाथ हमारा है. रिपोर्ट: दिनेश कुमार रजक
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