रांची (TNP Desk) : झारखंड की राजधानी रांची एकिकृत बिहार के समय से ही राजनीति का मुख्य केंद्र रही है. लेकिन जब से भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी खेलना शुरू किया तब से रांची शहर और प्रचलित हो गया. इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर हमेशा देखने को मिलती है. बता दें कि रांची लोकसभा सीट को सराईकेला-खरसावां और रांची जिलों के कुछ हिस्सों को मिलाकर बनाया गया है. मजेदार बात ये है कि इस सीट पर राज्य की सत्ता पर काबिज झामुमो कभी भी जीत नहीं पाई है. रांची लोकसभा सीट के अन्तर्गत छह विधानसभा सीटें इचागढ़, सिल्ली, खिजरी, रांची, हटिया, कांके आती हैं. इसमें कांके अनुसूचित जाति और खिजरी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. 2014 से बीजेपी यहां से जीतती आ रही रही है. पहले रांची लोकसभा सीट पर कांग्रेस का सबसे ज्यादा दबदबा था, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में भाजपा ने इसे रोमांचक बनाकर कांग्रेस के दबदबे को कम कर दिया.
1971 में कांग्रेस से प्रशांत कुमार घोष बने थे सांसद
अगर हम 1971 से लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां कांग्रेस ने रांची से जीत हासिल की. यहां से प्रशांत कुमार घोष को 41.9 फीसदी वोट मिले थे. जबकि भारतीय जनसंघ के रुद्र प्रताप सारंगी को 33.30 प्रतिशत वोट मिले. 1977 में कांग्रेस ने दो बार के विजेता प्रशांत कुमार घोष की जगह शिव प्रसाद साहू को मैदान में उतारा था और कांग्रेस यह सीट हार गयी. यहां से 1977 में भारतीय लोक दल के रवींद्र वर्मा 45.4 फीसदी वोट के साथ विजयी हुए. जबकि कांग्रेस के शिव प्रसाद साहू को 24.7 फीसदी ही वोट मिले थे. 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर रांची लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया और शिवप्रसाद साहू ने इस सीट से जीत हासिल की. इस बार शिव प्रसाद साहू को 37.7 फीसदी वोट मिले, जबकि जनता पार्टी के शिवकुमार सिंह को 24.2 फीसदी वोट मिले.
कांग्रेस के शिव प्रसाद साहू ने 1984 में बीजेपी के राम टहल चौधरी को हराया
1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट पर जीत हासिल की. शिव प्रसाद साहू यहां से दोबारा लोकसभा चुनाव जीते. इस बार उन्हें कुल 47.2 फीसदी वोट मिले जबकि भारतीय जनता पार्टी के राम टहल चौधरी को 16 फीसदी वोट मिले. जबकि जनता पार्टी के उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय को 15.1 फीसदी वोट मिले थे.
1989 में कांग्रेस के हाथ से फिसल गई थी ये सीट, सुबोधकांत ने मारी थी बाजी
1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के हाथ से यह सीट फिसल गई थी. इस चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय ने बाजी मारी थी. उन्हें 34.3 फीसदी वोट मिले. वही बीजेपी के राम टहल चौधरी को 31.2 फीसदी जबकि कांग्रेस के शिव प्रसाद साहू को 26.7 फीसदी वोट मिले थे.
1991 में पहली बार भाजपा ने चखा था जीत का स्वाद
भाजपा ने पहली बार 1991 के लोकसभा चुनाव में जीत का स्वाद चखा था. रांची सीट से भाजपा के रामटहल चौधरी 47.6 फीसदी वोट पाकर विजयी रहे. उस समय 1989 में जीते सुबोधकांत सहाय को जनता दल ने टिकट नहीं दिया. नाराज होकर उन्होंने झारखंड पार्टी से चुनाव लड़ा और चौथे स्थान पर रहे. इसके बाद बीजेपी ने फिर 1996 लोकसभा चुनाव में बाजी मारी. भाजपा के रामटहल चौधरी ही विजयी रहे. 1996 में कांग्रेस पार्टी ने अपना उम्मीदवार बदल दिया था और केशव महतो कमलेश को अपना उम्मीदवार बनाया था. 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के रामटहल चौधरी एक बार फिर रांची सीट से जीते. इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने फिर रांची सीट पर कब्जा कर लिया. एक बार फिर रामटहल चौधरी रांची सीट से जीते और इस बार उन्हें 65 फीसदी वोट मिले. जबकि कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलकर केके तिवारी को मैदान में उतारा था, लेकिन वे जीत नहीं सके.
लगातार चार बार रांची से सांसद रहे रामटहल चौधरी को 2004 में मिली पटखनी
रांची लोकसभा क्षेत्र से लगातार चार बार सांसद रहे रामटहल चौधरी को पहली बार 2004 में पटखनी मिली, जब कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय इस सीट से विजयी हुए. सुबोध कांत सहाय को 40.8 फीसदी वोट मिला. जबकि भाजपा के रामटहल चौधरी को 38.6 फीसदी वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे.
लगातार दो बार कांग्रेस कोटे से सांसद बने सुबोधकांत सहाय
2009 के लोकसभा चुनाव में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय ने रांची लोकसभा सीट से जीत हासिल की. 2009 के लोकसभा चुनाव में सुबोध कांत सहाय को 42.9 फीसदी वोट मिले जबकि भाजपा के रामटहल चौधरी को 41 फीसदी वोट मिले. सुबोधकांत सहाय लगातार दो बार कांग्रेस कोटे से सांसद रहे.
2014 में फिर बीजेपी ने किया कब्जा
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर कांग्रेस से यह सीट छीन लिया और बीजेपी के रामटहल चौधरी 42.7 फीसदी वोट लाकर कब्जा कर लिया. 2014 में पहली बार मोदी की लहर थी जिसे आसानी से बीजेपी ने जीत का परचम फहराया था. वहीं दूसरे स्थान पर कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय रहे. 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर मोदी का मैजिक दिखा. हालांकि, इस बार रामटहल चौधरी को भाजपा ने रांची से टिकट नहीं दिया. जबकि रामटहल चौधरी रांची लोकसभा क्षेत्र से पांच बार चुनाव जीतकर भाजपा को सीट दिलाई थी. यहां से संजय सेठ को मैदान में उतारा. इससे नाराज होकर रामटहल चौधरी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. हालांकि, वे जीत नहीं पाये, उन्हें सिर्फ 2.4 फीसदी वोट ही मिला. वहीं भाजपा के उम्मीदवार संजय सेठ विजयी हुए. उन्हें कुल 57.30 वोट मिले. जबकि कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को 34.3 फीसदी वोट मिले थे. इस बार फिर भाजपा ने संजय सेठ पर भरोसा जताया है और उन्हें दोबारा टिकट दिया है. देखना होगा कि इस बार 2024 के चुनाव में कौन बाजी मारता है और कौन नहीं.
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