देवघर(DEOGHAR): बाबा बैद्यनाथ के प्रति लोगों की अटूट आस्था का ही परिणाम है कि प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा के जलार्पण करने देवघर आते हैं. जलार्पण के बाद प्रसाद के रूप में पेड़ा उनकी पहली पसंद होता है या कहें कि पेड़ा बाबा के प्रसाद की पहचान बन गया है. यही कारण है कि देवघर शहर और घोरमारा पेड़ा उद्योग का हब बन गया है. सिर्फ सावन में यहां 60 करोड़ से ज्यादा का पेड़े का कारोबार होता है. लेकिन इस वर्ष दो चरण में आयोजित श्रावणी मेला में 100 करोड़ का कारोबार होने की उम्मीद है.
प्रसाद के नाम पर पेड़ा बन गया देवघर की पहचान
श्रावणी मेला में देवघर आये श्रद्धालुओं द्वारा लंबी-लंबी कतार में लग कर बाबा का जलाभिषेक करने के बाद उनके सामने यहां का प्रसाद खरीदने की बारी आती है. बाबाधाम के प्रसाद में अन्य सामग्रियों के साथ पेड़ा प्रमुख होता है. या कहें कि प्रसाद के नाम पर पेड़ा यहां की पहचान बन गया है. बड़ी मात्रा में पेड़े की मांग के कारण इसके कई वेराइटीज और ब्रांड बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन देवघर और बासुकीनाथ धाम मुख्य मार्ग पर स्थित घोरमारा का पेड़ा उनकी पहली पसंद बनने लगा है. यहां के पेड़े का अलग तरह का स्वाद खास तौर पर उन्हें आकर्षित करता है. जिला प्रशासन द्वारा इस बार 800 ग्राम खोया और 200 ग्राम चीनी वाली पेड़ा 400,जबकि 700 ग्राम खोया और 300 ग्राम चीनी वाला पेड़ा 370 रुपिया किलो बिक रहा है. श्रद्धालुओं की खास पसंद का ही परिणाम है कि देवघर शहर और घोरमारा पेड़ा व्यवसाय का हब बनने लगा है.
दो माह के सावन में इस साल 80 करोड़ से ज्यादा का कारोबार होने की उम्मीद
कल तक दहाई में दुकान की जगह अब यहां तकरीबन डेढ़ सौ से अधिक पेड़े की दुकानें सज गई हैं. सावन माह में इसकी संख्या हज़ार में पहुँच जाती है. साल भर में दोनों जगह 120 करोड़ से अधिक सिर्फ सावन मेह में 60 करोड़ से अधिक की पेड़े की बिक्री होती है. लेकिन इस वर्ष मलमास लगने के कारण दो माह के सावन में इस साल 80 करोड़ से ज्यादा का कारोबार होने की उम्मीद है. पेड़ा का स्वाद ऐसा की लोग बाबा की पूजा अर्चना करने के बाद प्रसाद के रूप में खरीदारी करते है. खास तरह की खुशबू और स्वाद के तौर पर अपनी अलग पहचान रखने वाला यहां का पेड़ा अब लोगों की पहली पसंद बन चुका है. यहां के पेड़ा व्यवसाय में आये इस उछाल से यहां के पेड़ा बिक्रेता भी काफी खुश हैं.
सावन में काफी ज्यादा होती है खोया की मांग
सावन में खोया की मांग इतनी होती है कि पहले से ही दुकानदार द्वारा स्थानीय स्तर पर खटाल वालों से सट्टा कर लेते हैं. खोया को लेकर कभी कभी तरह तरह की चर्चा होती है कि ऊंटनी के दूध का खोया है. लेकिन संघ के सचिव की माने तो स्थानीय स्तर पर जब खोया की पूर्ति नही हो पाती है तो उत्तर प्रदेश के मुगलसराय और मिर्जापुर से खोया मंगा कर पूर्ति की जाती है.
बड़ी मात्रा में यहां के पेड़े की मांग के कारण पेड़ा व्यवसाय अब यहां उद्योग का रूप लेने लगा है. एक उद्योग की शक्ल में विकसित होने से पेड़ा व्यवसाय स्थानीय लोगों के लिए रोजी-रोजगार का भी बड़ा जरिया बन सकता है.
रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा
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