देवघर(DEOGHAR): एक तरफ जहां देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी. इसका उद्देश्य देश को खुले में शौच से मुक्त बनाना था. खुले में शौच मुक्त बनाने को लेकर युद्ध स्तर पर काम किया गया. जिसका बेहतर परिणाम भी सामने आया. ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में अब अधिकांश महिलाएं और पुरूष शौचालय का उपयोग करते हैं. देवघर के कई स्कूलों में भी मिशन मोड पर शौचालय का निर्माण तो किया गया. लेकिन उसकी उपयोगिता का लाभ आज तक बालक बालिकाओं को नहीं मिला. मजबूरन खुले में शौच जाने को मजबूर हो रहे हैं स्कूली बच्चे. ऐसे में शौचालय के औचित्य पर सवाल उठना लाजिमी है.
शौचालय की स्थिति बद से बदतर
सरकारी स्कूलों में सुविधा देने के नाम पर सरकार पानी की तरह रूपिया बहाती है।खासकर साफ सफाई के लिए विशेष ध्यान रखती है।लेकिन स्कूल प्रबंधन और प्रधानाध्यापक की घोर लापरवाही से स्कूल में पढ़ने वाले बालक बालिकाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.देवघर के सिर्फ एक स्कूल उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय घसको की बात करें तो अच्छी खासी विद्यार्थियों की संख्या है.स्कूल में बालक बालिकाओं के लिए अलग अलग शौचालय भी है. लेकिन इसका लाभ से वंचित रह रहे हैं विद्यार्थी.कारण है प्रधानाचार्य और स्कूल प्रबंधन की लापरवाही से जीर्ण शीर्ण अवस्था में कचरे के अंबार के बीच शौचालय का होना.पानी की भी समुचित व्यवस्था नही है.परेशान बालक बालिका खुले में शौच जाने को मजबूर है।लेकिन विद्यालय प्रबंधन और प्रधानाचार्य को इससे कोई मतलब नहीं है.
कई स्कूल में शौचालय के कारण बालिकाओं की संख्या घट रही है
बेहतर समाज के लिए शिक्षा प्राथमिकता होती है.गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नाम पर सरकार प्रतिवर्ष करोड़ो रूपये खर्च करती है.लेकिन देवघर के कई ऐसे भी सरकारी स्कूल है जहां दिन प्रतिदिन छात्राओं की संख्या घटती जा रही है. वजह है शौचालय।सभी स्कूलों में शौचालय तो है. लेकिन उसकी देखभाल के अभाव में टूट फुट गया है. गंदगी के बीच शौच जाने से परहेज कर रही है छात्राएं. ऐसे में उन्हें खुले में शौच जाना पसंद नहीं है इसलिए विद्यालय का रुख नहीं करने से इनकी उपस्थिति कम होती जा रही है. स्वच्छता अभियान के तहत स्कूली शिक्षा में शौचालय की बात देवघर जिला में बेईमान कही जा सकती है. जरूरत है प्रशासन को ठोस कदम उठाने की.
रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा
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