पढ़ने की उम्र में नशे की लत में दुमका के बच्चे, जिस हाथ मे होनी चाहिए कलम उस हाथ में थामे हुए हैं डेनड्राईट
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दुमका(DUMKA): कहते हैं बच्चे देश के भविष्य होते हैं. बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए राज्य से लेकर देश तक और संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर कई अंतरराष्ट्रीय संस्था काम कर रही है. पानी की तरह रुपये बहाए जा रहे है. इसके बावजूद हम यह सोचने पर विवश होते है कि क्या बच्चों का भविष्य बेहतर बन रहा है.
इस सवाल के जवाब के लिए हम दुमका के जरमुंडी बाजार के अंकित के बारे में बता रहे हैं. अंकित के पिता का नाम मोहन ठाकुर है. घर कहां है पता नहीं लेकिन यह बालक पूरी तरह नशे की गिरफ्त में आ चुका है. जिसके हाथ मे कलम और पीठ पर स्कूल बैग होनी चाहिए, उसके हाथ में पॉलीथिन के अंदर डेनड्राईट और पीठ पर कचरा से भरा बोरी है. ना रहने का ठिकाना और ना खाने का. सुबह हुआ तो बोरी लिया और निकल पड़े कूड़ा कचरा चुनने. कूड़ा कचरा चुनकर बेचने से जो रुपये मिले इससे और कुछ खरीदे या ना खरीदे डेनड्राईट जरूर खरीदता है. क्योंकि जब नशा की तलब होगी तो डेनड्राईट ही काम आएगा. अगर कुछ बच गया तो अभिभावक के हाथ में देगा ताकि खाने का इंतजाम हो सके. अब उस रुपए से खाने का सामान ख़रीदायेगा या उस रुपये से पिता भी नशे का सामान खरीदकर टल्ली होगा यह कहना मुश्किल है. बच्चे का क्या है, जहां नशा हावी हुआ. वहीं टल्ली होकर सो गए. नींद खुली तो फिर वही दिनचर्या शुरू हो गया. अभी अंकित की उम्र महज 11 से 12 साल होगी. पूछने पर कहता है कि बचपन से ही नशा करते हैं. उसे यह भी पता है कि डेनड्राईट सूंघने से नशा होता है.
हाथ में डेनड्राईट कैसे पहुंचा
अब सवाल उठता है कि जिस उम्र के बच्चों के हाथ मे कलम होनी चाहिए उसके हाथ मे डेनड्राईट कैसे पहुंचा. पीठ पर स्कूल बैग के बजाय कचरा चुनने के लिए बोरी कैसे आया. क्या इसे हम उसकी किस्मत से जोड़कर अपने कर्तव्य का अंत कर लें. कदापि नहीं. क्योंकि ऐसे बच्चों का भविष्य संवारने के लिए ही सरकार से लेकर कई संगठन कार्य कर रही है. तो फिर वैसे लोगों की निगाहें ऐसे बच्चे पर क्यों नहीं पड़ती? और अगर पड़ती है तो फिर नजर अंदाज क्यों किया जाता?
नशे की लत के कारण अपराधी बन सकते हैं ऐसे बच्चे
अब सवाल उठता है कि ऐसे बच्चों का भविष्य क्या होगा. अगर सच पूछा जाए तो ऐसे बच्चे ही अक्सर आगे चलकर समाज के लिए अभिशाप बन जाते हैं. क्योंकि ऐसे बच्चों पर ही आपराधिक गिरोह की पैनी नजर रहती है. नशे की गिरफ्त में आ चुके किशोर को अपराध की दुनिया में कदम रखते देर नहीं लगती. आपराधिक गिरोह द्वारा आर्थिक प्रलोभन देकर इन मासूमों से जुर्म करवाया जाता है और जब एक बार किशोर नशे की दुनिया के साथ अपराध जगत में कदम रख देता है तो फिर समाज की मुख्य धारा से जुड़ना इनके लिए काफी कठिन हो जाता है.
काउन्सलिंग के माध्यम से बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश होती है
अपने बच्चे की परवरिश इंसान ही नहीं जानवर भी करते है. लेकिन कुछ बच्चे ऐसे होते है जो बालपन में ही राह भटक जाते हैं. वैसे बच्चों को ही सही मार्ग पर लाने के लिए बाल कल्याण समिति से लेकर बाल अधिकार संरक्षण आयोग तक कार्य करती है. दुमका में भी बाल कल्याण समिति है. इस बाबत पूछे जाने पर जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ अमरेंद्र कुमार ने कहा कि इस तरह के मामले में सूचना मिलने पर बच्चों का रेस्क्यू किया जाता है. काउन्सलिंग के माध्यम से ऐसे बच्चों को मुख्य धारा में जोड़ने का प्रयास किया जाता है. जब इससे भी बात नहीं बनती तो बच्चे को नशा मुक्ति केंद्र भेजा जाता है. वैसे उन्होंने यह भी बताया कि दुमका जिला में एक भी नशा मुक्ति केंद्र नहीं रहने से परेशानी होती है.
इस नशे की जद्द में कई बच्चे
यह कोई एक बच्चे की कहानी नहीं है. उपराजधानी दुमका में ही ऐसे कई बच्चे मिल जाएंगे जो किसी तंग गलियों में नशा का सेवन करते दिख जाएंगे. तो सवाल उठना लाजमी है कि कार्यकारी एजेंसी को सूचना कौन दे. सूचना देने के बावजूद जिले में समुचित व्यवस्था नहीं है. इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपने देश के भविष्य को बर्बाद होने दें. जरूरत है शासन से लेकर प्रशासन और बुद्धिजीवी से लेकर विभिन्न संगठनों तक अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी पूर्वक निर्वाहन करें ताकि देश का भविष्य सुरक्षित रह सकें.
रिपोर्ट: पंचम झा, दुमका
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