धनबाद(DHANBAD): झारखंड विधानसभा का चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद अचानक कोयलांचल में आउटसोर्सिंग स्थल पर विवाद बढ़ गया है. बाघमारा विधानसभा क्षेत्र में गुरुवार को दूसरी बार घटना घटी. जबकि इसके पहले निरसा और झरिया विधानसभा में विवाद हो चुका है. निरसा में माले और भाजपा के समर्थकों में टकराहट हुई थी. लगातार कई दिनों तक धरना दिया गया था. वहां भी विवाद के मूल में दबदबे की लड़ाई थी. जो बाद में कुछ मांगों को मानने के बाद खत्म हुई. इसी तरह झरिया विधानसभा क्षेत्र के कुजामा में भी विवाद हुआ था. वहां भी कम से कम 20 राउंड फायरिंग हुई थी. एक दिन नहीं बल्कि दो दिन फायरिंग की घटना हुई थी. वहां भी समझौते के बाद मामला खत्म हुआ.
चुनाव रिजल्ट के बाद बाघमारा में दूसरी घटना
बाघमारा विधानसभा क्षेत्र में गुरुवार से पहले लोयाबाद इलाके में विवाद हुआ था. वहां भी फायरिंग हुई थी. लोगों पर मुकदमा किया गया था. इधर, गुरुवार को बाघमारा विधानसभा क्षेत्र के धर्माबांध आउटपोस्ट में कई राउंड फायरिंग की गई. बम फोड़े गए, यह विवाद भी आउटसोर्सिंग से ही जुड़ा हुआ है. इस घटना में इलाके के डीएसपी घायल हो गए है. उन्हें दुर्गापुर मिशन अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इस घटना के बाद पुलिस ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही है. उपद्रवियों को पकड़ा जा रहा है. यह मामला भी आउटसोर्स से इसलिए जुड़ा है कि हिल टॉप राइजिंग आउटसोर्सिंग की बाउंड्री को लेकर विवाद हुआ और फायरिंग से लेकर पत्थर बाजी और मारपीट की घटना हुई.
सवाल-आउट सोर्स कंपनियां विवाद की जड़ में क्यों होती
सवाल उठता है कि आउटसोर्सिंग कंपनियों की वजह से आखिर विवाद क्यों होता है? क्या आउटसोर्सिंग कंपनियों में वर्चस्व के लिए राजनीतिक दल के लोग टकराते रहते हैं? क्या आउटसोर्सिंग कंपनियां टेंडर के नियमों का पालन करती है? क्या बीसीसीएल के अधिकारी जिनके अधीन आउटसोर्सिंग कंपनियां चलती है, कभी उनकी जांच -पड़ताल करते हैं? जिन शर्तों पर बीसीसीएल कोयला खनन के लिए उन्हें काम देती है, उन शर्तों का कितना पालन किया जाता है? कुछ दिन पहले और कई शर्ते तय हुई थी. सुरक्षा बढ़ाने का नियम तय हुआ था. आउटसोर्स स्थल की फेंसिंग करने की बात हुई थी. रात में लाइटिंग करने की बात हुई थी. अवैध कोयले की की ढुलाई रोकने की बात हुई थी. क्या इन सब बातों का पालन किया जाता है? इसकी कभी कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है. जिस तरह से राष्ट्रीयकरण के पहले निजी कोयला खदान मालिक पहलवान रखा करते थे. उसी तर्ज पर आउटसोर्स कंपनियां इलाके में अपना "मुखौटा" तैयार रखती है. सभी आउटसोर्सिंग कंपनियों में लाइजनिंग ऑफिसर का पद सृजित किया गया है. यह लाइज निंग ऑफिसर कोई और नहीं ,बल्कि इलाके के दबंग लोग होते है.
लोडिंग प्वाइंटों पर होता है राजनीतिक दल के नेताओं का दबदबा
इसके अलावे लोडिंग प्वाइंटों पर मजदूरों के नाम पर राजनीतिक दल के नेताओं का भी दबदबा होता है. जिस आउटसोर्स पॉइंट पर जिन मजदूर दंगल के लोग जिस संगठन से जुड़े होते है. वहां उनकी चलती होती है. दरअसल, सच्चाई तो यही है कि मजदूरों की आड़ में दबंगई होती है. कोयला से सबको ऊर्जा मिलती है. इस वजह से निरोधात्मक एजेन्सिया भी आंखें बंद कर सब देखती है. बाघमारा की घटना भी कोई एक दिन के विवाद में नहीं हुई. महीना पहले से तनाव चल रहा तह. 7 जनवरी को गिरिडीह के सांसद चंद्र प्रकाश चौधरी ने महाप्रबंधक से वार्ता की थी और कहा था कि जब तक पूरा पेपर वगैरह नहीं दिखाया जाता, तब तक काम शुरू नहीं किया जाए. लेकिन गुरुवार को बाउंड्री का काम शुरू हुआ और विवाद बढ़ गया. जिसमें फायरिंग तक हुई, बम फोड़े गए, डीएसपी घायल हुए.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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