गुमला (GUMLA) : झारखंड का प्रमुख वाद्य यंत्र और मंदार को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का प्रयास जारी है. कलाकारों की यह चाहत है कि मांदर को एक धरोहर के रूप में पहचान मिले. इसके लिए गुमला के कलाकार और कारीगर दोनों बहुत ही संवेदनशीलता के साथ प्रयासरत हैं. इस वाद्य यंत्र को GI टैग दिलाने के लिए जिला प्रशासन के सहयोग से एक टीम दिल्ली रवाना हुई.
GI टैग मिलने से क्या होगा झारखंड के कलाकारों को लाभ
झारखंड का प्रमुख वाद्य यंत्र मांदर गुमला जिले से बेहद खास तरीके से जुड़ा हुआ है. इसे एक पहचान मिले इसके लिए जिला प्रशासन और यहां के कलाकार भी प्रयास रहते हैं. छह सदस्य टीम GI टैगिंग को लेकर दिल्ली में होने वाली सुनवाई के लिए गुमला से रवाना हुई. गुमला उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी ने उन्हें रवाना किया. इस टीम में मांदर बनाने वाले कारीगर और इसके विशेषज्ञ शामिल हैं. इस टीम में कारीगर बलदेव नायक, रामनायक, रंजीत घासी, घनश्याम राम के अलावा की एक्सपर्ट सत्यदीप कुमार हैं. इन सब के अतिरिक्त मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्योग के जिला समन्वयक सूरज कुमार भी टीम के साथ गए हैं.
जिला उपायुक्त कारण सत्यार्थी ने कहा कि झारखंड की कला और संस्कृति काफी संबंधित है, यहां के वाद्य यंत्र और इनसे जुड़े कलाकार को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सरकार प्रयासरत है. मांदर को GI टैग मिलने से इस इंस्ट्रूमेंट और इसके कारीगर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकेगी. 20 दिसंबर को दिल्ली में जी टैगिंग के लिए अंतिम सुनवाई है, इसलिए यह टीम दिल्ली रवाना हुई है. GI का फुल फार्म ज्योग्राफिकल इंडिकेशन है. इससे किसी चीज की उत्पत्ति का भौगोलिक स्थान पता चलता है और उस क्षेत्र से इसकी पहचान को स्थापित किया जाता है.
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