कर्नाटक में कांटे के सवाल के बीच झारखंड में हुई विपक्षी एकता की बात, देखिए ये रिपोर्ट


धनबाद(DHANBAD): बुधवार को कर्नाटक में वोट डाले जा रहे थे और इधर पटना से चलकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ रांची में झारखंड के मुख्यमंत्री से मिल रहे थे. बातें तो सकारात्मक हुई है. भावनात्मक बातें भी कही गई. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नीतीश कुमार के कहे अनुसार आगे बढ़ने की बात कही. और भी बहुत सारी बातें हुई. जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे. इस बीच कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस के लिए कांटे का सवाल खड़ा हो गया है. लगभग 72% मतदान हुए हैं. एग्जिट पोल भी आ गए हैं, कुछ में कांग्रेस को बढ़त बताया जा रहा है तो कई ने हंग असेंबली की भी संभावना जताई है. 13 मई को रिजल्ट आएगा. एग्जिट पोल के जो नतीजे आए हैं, वह बहुत स्पष्ट तो नहीं है लेकिन इतना तो साफ है कि हार जीत का अंतर कम ही रहेगा.
विपक्षी एकता की कोशिश हो रही तेज
कर्नाटक के चुनाव में एक सवाल तो खड़ा कर ही दिया है कि क्या लोग भाजपा और कांग्रेस के बीच अंतर नहीं कर पा रहे हैं. भाजपा से ना उम्मीद लोगों की संख्या भी ठीक-ठाक है तो कांग्रेस के खिलाफ भी कर्नाटक में मतदान हुआ है. दोनों पार्टियों के लिए कर्नाटक कांटे का सवाल बन गया है. कर्नाटक में एक बात और दिखी की 224 सीटों के लिए एक ही दिन शांतिपूर्ण मतदान हो गया. इससे कई चरणों में मतदान पर भी सवाल आगे खड़े किए जाएंगे. बहर हाल इस चुनाव पर देश की नजर गड़ी हुई है. इस बीच विपक्षी एकता की कोशिश तेज हो रही है.
झारखंड बिहार का ही हिस्सा था. 2000 में बिहार से कटकर झारखंड अलग हुआ. झारखंड पर किसी न किसी रूप में बिहार की छाप दिखाई देती है .अभी झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कॉन्ग्रेस और राजद के गठबंधन में सरकार चल रही है. झारखंड में भाजपा के खिलाफ कई विपक्षी दलों को मिला दिया जाए तो उनका जनाधार अधिक माना जा सकता है. वैसे झारखंड में राजद का जनाधार बहुत कम है. चुनाव दर चुनाव राजद की उपलब्धि के ग्राफ गिरते गए. जदयू ने तो झारखंड में पैर जमाने की कभी भी ईमानदार कोशिश नहीं की. लगता है इन्हीं तमाम संभावनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी विपक्षी एकता के प्रयास के वाहक बनने पर हामी भर दी है.
अगर गठबंधन हुआ तो झारखंड में भाजपा के सामने बड़ी चुनौती
प्रदेश की बात की जाए तो झारखंड बनने के बाद अभी तक किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सर्वाधिक 36 और 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा को सबसे अधिक 30 सीटें मिली. सरकार बनाने के लिए 42 सदस्यों की जरूरत होती है. झारखंड को तो राजनीति की प्रयोगशाला भी कहा जाता है. यहां की सियासत में उलट-पुलट खूब होती है. बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को 11 और उसके सहयोगी आजसू को 1 सीट मिली. विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस गठबंधन को 46 सीटें मिल गई और इससे सरकार बन गई. झारखंड में अगर कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, वाम दलों समेत क्षेत्रीय दलों का गठबंधन हो जाए तो भाजपा के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है. झारखंड में कुल 14% कुर्मी वोटर हैं. हालांकि अन्य पार्टियों में भी कुर्मी नेता है ,जिनकी पकड़ अच्छी है. बावजूद लोग मानते हैं कि 14% कुर्मी वोटर पर नीतीश कुमार का प्रभाव कुछ ना कुछ पड़ सकता है. अगर गठबंधन हो गया तो झारखंड में भाजपा के सामने बड़ी चुनौती पेश हो सकती है.
नीतीश के रांची दौरे पर भाजपा ने कसा तंज
इधर, नीतीश के रांची दौरे पर भाजपा ने कड़ा तंज कसा है. प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा है कि सत्ता के लिए नीतीश कुमार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के आगे घुटने टेक दिए हैं. जेपी, लोहिया के अनुयाई पहले बिहार में चारा घोटाला किया, रेलवे नौकरी घोटाला किया ,ऐसे परिवार से नीतीश कुमार ने हाथ मिलाया. अब झारखंड में भ्रष्टाचार में डूबे हेमंत सोरेन से हाथ मिलाने पहुंच गए हैं .उन्होंने सवाल किया है कि झारखंड की जनता चाहती है कि राज्य संपोषित भ्रष्टाचार पर नीतीश कुमार की क्या सोच है.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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