धनबाद(DHANBAD) : सिंदरी का HURL कारखाना अभी धनबाद के राजनीतिक दलों के निशाने पर है. मुद्दा एक है लेकिन आंदोलन कई है. और इन आंदोलनों में कई पार्टियां शामिल है. आजिज आकर प्रबंधन ने कार्य कर रहे मजदूरों से या प्रमाण पत्र मांग रहा है कि आप अपना स्थानीय प्रमाण पत्र जमा करें, जिसे पता चल सके कि स्थानीय कितने मजदूर संस्थान में कार्यरत है. वैसे प्रबंधन का दावा है कि 75% स्थानीय मजदूरों को नौकरी दी जा चुकी है. रही बात खाद की पैकिंग के लिए तो इसके लिए प्रशिक्षित मजदूरों की जरूरत होती है, क्योंकि कम समय में अधिक बोरो को पैक करना होता है. इसमें साधारण मजदूर सफल नहीं हो सकते और प्रबंधन को नुकसान भी हो सकता है. बहरहाल मामला सिर्फ मजदूरों का नहीं है ,हर पार्टियों के अपने कुछ ना कुछ हिडेन एजेंडे हैं, उसी एजेंडे पर काम हो रहा है. बार-बार धनबाद जिला प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है.
हर बार जिला प्रशासन को करना पड़ता है हस्तक्षेप
जानकारी के अनुसार कुछ दिन पहले मासस के नेतृत्व में आंदोलन हुआ था, जिसकी अगुवाई पूर्व विधायक आनंद महतो ने किया था. आंदोलन जब तेज हुआ तो धनबाद जिला प्रशासन ने हस्तक्षेप किया और प्रबंधन ने लिखकर दिया कि 75% मजदूरों को हर हाल में रखा जाएगा. फिर आंदोलन ख़त्म हो गया. उसके बाद जब उत्पादन शुरू हुआ तो छठे या सातवें दिन झारखंड मुक्ति मोर्चा आंदोलन का मोर्चा संभाल लिया. फैक्ट्री के गेट पर आंदोलन शुरू हो गया. उसके बाद प्रबंधन ने अमोनिया लीकेज के भय से प्लांट को ही बंद कर दिया. फिर जिला प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा, HURL प्रबंधन ने लिख कर दिया कि वह 75 प्रतिशत स्थानीय को नौकरी दे चुका है. ट्रांसपोर्टिंग की भी मांग की गई थी पर कोई निर्णय नहीं हुआ है. लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा गेट से हटकर आंदोलन अभी कर ही रहा है. झारखंड मुक्ति मोर्चा आंदोलन के बाद खतियानी नेता जय राम महतो भी एक दिन पहुंच गए और उन्होंने भी मजदूरों की हक की बात कही. यह बात अलग है कि कोई नेता देखने नहीं जा रहा है कि वास्तव में स्थानीय कितने मजदूर कार्यरत है.
हिडेन एजेंडा के सहारे चलता है सबका काम
लोग बताते हैं कि इन नेताओं को मजदूरों से कोई लेना देना नहीं है. यह सब कंपनी में अपनी दबंगता बनाने के लिए आंदोलन को हथियार बना लिए है. आंदोलन के नाम पर अपनी ताकत दिखा रहे हैं और प्रबंधन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे है. अगर सचमुच सिर्फ 75% नौकरी का ही मुद्दा है तो प्रबंधन तो यह लिखकर दे चुका है कि उसने अपने यहां 75% स्थानीय लोगों को नौकरी दे दिया है. अब काम कर रहे मजदूरों से स्थानीयता प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है. बता दें कि सिंदरी खाद कारखाना बंद हो जाने के बाद सिंदरी वीरान हो गई थी. फिर 20 18 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलियापुर में इसका शिलान्यास किया था और उसके बाद कई कंपनियों को मिलाकर HURL कंपनी का गठन किया गया और उसके बाद यूरिया का उत्पादन शुरू हुआ है लेकिन उत्पादन शुरू होते ही आंदोलन का दौर शुरू हो गया है अब देखना है कि इसे प्रबंधन कैसे निपटता है.
रिपोर्ट : सत्यभूषण सिंह, धनबाद
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