साहिबगंज(SAHIBGANJ):सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने करीब चार साल का कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं.और पूरे प्रदेश भर में यह ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि हेमंत सरकार के चार साल के कार्यकाल में बड़ा बदलाव आया है. इतना ही नहीं बल्कि हेमंत सरकार ने साहबगंज जिले में विकास की एक नई कथा भी लिखी है.वहीं हेमंत सरकार का यह दावा है कि बरहेट विधानसभा क्षेत्र में आने वाली गांवों की तस्वीर और तकदीर बदल रही है, लेकिन धरातल पर हेमंत सरकार का विकास नहीं दिख रहा.
साहिबगंज: हेमन्त सरकार के विकास का दावा फेल!
सीएम के मुताबिक आदिवासी बहुल इलाकों में बसे गाँवों में विकास जोरों से हो रहा है. और लोगों को बेहतर सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है,लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के झूठे वादें और खोखले विकास की दंश इन दिनों साहिबगंज जिले के पतना प्रखंड क्षेत्र के लोगों को झेलना पड़ रहा है.वहीं आमडंडा गांव के दर्जनों ग्रामीण पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. सालों से यहां के लोग झारनाकुप का गंदा पानी पीकर अपना गुजारा कर रहे हैं,लेकिन ग्रामीणों की सुध लेने वाला कोई नहीं है.सिर पर पानी से भरे बर्तन का बोझ तो उठा ले,लेकिन कंधे पर शासन-प्रशासन के झूठे वादों और खोखले दावों का बोझ ज्यादा भारी लगता है.
पानी की किल्लत से ग्रामीण परेशान
झारखंड राज्य को बने 2 दशक से ज्यादा का समय बीत गया है.और प्रदेश में कई सरकारें आई और चली भी गई,लेकिन झारखंड सरकार के संरक्षित जनजातीय समुदाय यानी कि पहाड़िया समुदाय के लोगों की जिंदगी की तस्वीर नहीं बदली है.हालत आज भी अंग्रेजो के कब्जे वाली भारत के जैसा जिंदगी जीने को मजबूर है.
लोग बदलाव के लिए कर रहे हैं 2024 का इंतजार
साहिबगंज जिले के पतना प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीणों की समस्याओं को देख उस भारत देश की याद आ रही है.जिसे हम कई दशकों पहले छोड़ दिये है.लेकिन आज भी विकास की मुख्य धारा से जुड़ना तो दूर आमडंडा गांव के ग्रामीण पत्थर से उभरे रोड़े वाले सड़क और कीड़े वाले झारनाकुल का गंदा पानी पीने को मजबूर है, और मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है. कुछ ऐसा ही नजारा है साहिबगंज में राजमहल की पहाड़ियों पर रहने वाले ग्रामीणों का है.झारखंड सरकार की ओर से संरक्षित ये जनजातीय समुदाय झरने का गंदा पानी-पीने को मजबूर है.पानी की किल्लत ग्रामीणों के सिर्फ सिर-दर्द ही नहीं बल्कि जिंदगी के लिए आफ़तकाल बनी हुई.
लोग गंदा पानी पीने को है मजबूर
सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के गृह विधानसभा क्षेत्र के पतना प्रखंड पर स्थित आमडंडा गांव के लोग परेशानी झेल रहे हैं.पानी की सुविधा ना होने के चलते ग्रामीण झारनाकुप का गंदा पानी पीकर गुजारा करते हैं.बस्ती में ना ही चापाकल है और ना ही पानी की टंकी,गर्मी के दिनों में तो आस-पास के कुएं और झरना का पानी भी सूख जाता है. जिसके बाद मजबूरन महिलाओं को करीब पांच किलोमीटर दूर जाकर पानी लाना पड़ता है.
कई परेशानी भी झेल रही है ग्रामीण
हालांकि परेशानी सिर्फ पानी की नहीं है.इस गांव में आवाजाही के लिए सड़क भी नहीं है.ना ही पानी के बहाव को रोकने के लिए किसी डैम का इंतजाम.ऐसे में ग्रामीणों का जीना मुहाल हो गया है.लिहाजा परेशान ग्रामीणों ने जिला प्रशासन के दरवाजे से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक को सरकार आपके द्वार और कई अन्य कार्यक्रमों में लिखित शिकायत कर चुके है.लेकिन सालों से समस्या झेल रहे ग्रामीणों की पुकार कौन सुनेगा.
राज्य के बटवारे के कितने दिन बाद भी आदिवासी हैं परेशान
आगे आपको बता दें कि आंग्रेजो के साथ लगातार युद्ध कर आदिवासी वीर अमर शहीद सिद्धो-कान्हू ने अपना खून बहाया था.ताकि प्रदेश में आदिवासियों को किसी प्रकार की कोई समस्या ना झेलना पड़े. इतना ही नहीं बल्कि राज्य का गठन भी आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था,लेकिन प्रदेश में इन्हीं आदिवासियों और पहाड़ियों पर आदिकाल से निवास कर रहे पहाड़िया समुदाय की हालत आज खराब है.हैरत की बात ये कि ग्रामीणों को अपनी परेशानियां जाकर प्रशासनिक अधिकारियों और सरकार को बतानी पड़ रही है.क्योंकि उनकी सुध लेने वाला कोई भी नहीं है.
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