धनबाद(DHANBAD): सुनने में आपको अटपटा जरूर लग सकता है, लेकिन अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो कोयला खदानों से कोयला बाहर निकालने का काम अब कोयला मजदूरों के बजाय रोबोट करने लगेंगे. यह तकनीक अगर प्रणाली में आ गई तो इसके फायदे बहुत होंगे. दुर्घटनाएं कमेगी, प्रदूषण कम होगा,ढुलाई खर्चे में भी कमी आएगी. धनबाद कोयलांचल तो कोयले की राजधानी है. यहां तो कोयला खदानों की भरमार है. कोयला खदानों के कारण धनबाद के लोग कई तरह की बीमारियों से भी जूझते है. प्रदूषण भी फैलता है, कोयल प्रोडक्शन की लागत भी बढ़ती है. जानकारी के अनुसार यह रोबोट खदान तक बिछे पाइप लाइन में ट्रेन जैसी पटरी पर चलेंगे. इन्हें कोयला ढोने के लिए किसी एक्स्ट्रा एनर्जी की जरूरत नहीं होगी. यह रोबोट घर्षण से पैदा हुई ऊर्जा का इस्तेमाल कर कोयला उठा पाएंगे.
आईआईटी ,कानपुर के वैज्ञानिकों ने डेवलप किया है तकनीक
आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने हाइपरलूप परिवहन प्रणाली विकसित कर रोबोट से कोयला ढोने की राह आसान कर दी है. इस तकनीक का इस्तेमाल अधिक से अधिक कंपनियां कर सकें, इसके लिए संस्थान के तकनीकी स्थानांतरण की अनुमति भी प्रदान कर दी गई है. तकनीक का पेटेंट संस्थान को पहले ही मिल चुका है. अभी तक खदानों से कोयला लाने के लिए वाहन या अन्य मालवाहकों का इस्तेमाल किया जाता है. जिसमें प्रदूषण बढ़ता है और लागत खर्च भी अधिक होता है. इस काम को करने के लिए ही यह प्रणाली विकसित की गई है. हाइपरलूप परिवहन तकनीक में पाइपलाइन नेटवर्क तैयार किया गया है. इसके अंदर ट्रेन की पटरी की तरह रेल लाइन बिछाई गई है. स्वचालित रोबोट इसी रेल ट्रैक पर चलेगा और कोयला निश्चित स्थान तक पहुंचा देगा. यह पूरा सिस्टम खदान से कोयल की ढुलाई करने के साथ पाइपलाइन की निगरानी करने में भी सक्षम होगा. रोबोट में लगे सेंसर पाइपलाइन की रियल टाइम मॉनिटरिंग और रिपोर्टिंग भी करेंगे. यानी पाइप में आने वाली समस्याओं और कोयला कहां से उठाकर कहां रखा गया, इसकी जानकारी भी मिलेगी. ट्रायल के लिए वैज्ञानिकों ने पाइपलाइन का एक मॉडल तैयार किया था. जिसमें रोबोट का एक छोटा स्वरूप विकसित कर पाइपलाइन के माध्यम से सामान का परिवहन कराया गया.
ट्रायल में पूरी तरह से सफल रही नई तकनीक
ट्रायल में यह पूरी तरह से सफल रहा. यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि कोयला खदानों में काम को दुनिया के सबसे खतरनाक कामों में एक माना जाता है. प्रकृति के खिलाफ जाकर कोयला का खनन करना जोखिम भरा काम होता है. देश-विदेश में हर साल कोयला खदानों में दुर्घटनाएं होती है, जिसमें हजारों लोगों की जान जाती है. भारत की अगर बात की जाए तो सबसे बड़ी खान दुर्घटना धनबाद में 1975 में हुई थी. यह धनबाद के चास नाल में हुई थी, जिसमें 300 से अधिक मजदूर मारे गए थे. इस दुर्घटना को जानने वाले आज भी उसे याद कर परेशान हो जाते है. वैसे, तो धनबाद कोयलांचल में कोलियारियों की अधिकता के कारण दुर्घटनाएं होती रहती है. प्रकृति की छाती चीरकर कोयला निकालना एक दुष्कर कार्य है. कोयला उद्योग का इतिहास तो बहुत पुराना है लेकिन जैसे-जैसे जरूरत बढ़ती गई, तकनीक विकसित होती गई. अब रोबोट प्रणाली तैयार की गई है. देखना है इसको कब प्रचलन में लाया जा सकेगा. कोलियरी इलाकों में प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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