धनबाद(DHANBAD): टाइगर जगरनाथ महतो नहीं रहे. अभी उनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ है लेकिन उनकी खाली कुर्सी को लेकर कयास शुरू हो गए हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सबसे विश्वासपात्र थे टाइगर जगरनाथ. झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रति समर्पित भी थे. जगरनाथ महतो लेकिन अब उनके नहीं रहने के बाद राजनीतिक क्षेत्र में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या मधुपुर का इतिहास को डुमरी विधानसभा में भी दोहराया जाएगा. क्या मधुपुर से विधायक रहे हाजी हुसैन अंसारी की मौत के बाद चुनाव से पहले ही झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उनके पुत्र हफीजुल अंसारी को मंत्री बनाकर एक नया प्रयोग किया था. यह प्रयोग सफल भी रहा, तो क्या डुमरी में भी चुनाव से पहले ही जगरनाथ महतो के पुत्र को मंत्री बनाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा सफल प्रयोग को फिर दोहराएगा अथवा किसी अन्य महतो विधायक पर दाव लगाएगा.
कई नामों की चर्चा है लेकिन कम से कम धनबाद बोकारो और गिरिडीह में जगरनाथ महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए बड़े महतो चेहरा थे. वोट बैंक को प्रभावित करने की उनमें ताकत थी. इस लिहाज से राजनीतिक पंडितों का मानना है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा बहुत सोच समझकर कोई कदम उठाएगा. वैसे इस इलाके के लिए विधायक मथुरा महतो की दावेदारी को भी कम कर नहीं आंका जा रहा है. लेकिन अभी यह सब भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है. इस बीच हेमंत सरकार को अपने कार्यकाल में छठा उपचुनाव भी देखना पड़ेगा. 5 उपचुनाव तो हो गए हैं. इस बीच डुमरी सीट भी खाली हो गई है. रामगढ़ चुनाव के पांचवे उपचुनाव में भाजपा आजसू गठबंधन उम्मीदवार की जीत हुई.
गिरिडीह से आजसू सांसद चंद्र प्रकाश चौधरी की पत्नी को विजय मिली. यह झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए झटका था. इस झटके से अभी झारखंड मुक्ति मोर्चा संभल ही रहा था कि टाइगर जगरनाथ महतो का बीमारी की वजह से निधन हो गया. वह आंदोलन से उपजे हुए नेता थे. लोगों में उनकी अच्छी पकड़ थी. कद्दावर भी थे. दूसरी पार्टियों के लोगों से भी उनका मेलजोल था. बाघमारा के भाजपा विधायक ढुल्लू महतो तो कई बार उनसे उनके आवास पर भी मिलते रहे. दोनों के मिलने का फोटो भी मीडिया में छपते रहा है. लेकिन अब तो जगरनाथ महतो नहीं रहे.
जगरनाथ महतो का राजनीतिक सफर
जगरनाथ महतो वर्ष 2000 में पहली बार डुमरी सीट से समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े पर हार गए. उस समय भी वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट के लिए प्रयास किए लेकिन सुप्रीमो शिबू सोरेन ने टिकट देने से इंकार कर दिया था. शायद कम उम्र को देखते हुए ऐसा निर्णय लिया गया था. लेकिन उसके बाद वह लगातार 2005, 2014 और 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर डुमरी से विधायक बने. हालांकि 2014 एवं 2019 में लोकसभा का चुनाव गिरिडीह से लड़े लेकिन हार गए.
लोबिन हेंब्रम ने क्या दिया सुझाव
इधर विधायक लोबिन हेंब्रम ने गुरुवार को The Newspost से बात करते हुए यह सुझाव दिया था कि टाइगर के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके परिवार के किसी भी व्यक्ति को डुमरी से चुनाव लड़ाया जाय और सभी पार्टियां उनका समर्थन करें .झारखंड अलग राज्य आंदोलन में भी जगरनाथ महतो की भूमिका रही है .अब देखना है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा का केंद्रीय नेतृत्व इस पर क्या निर्णय लेता है, क्योंकि अभी झारखंड में गठबंधन की सरकार चल रही है और एक मंत्री का पद अभी भी खाली है. रघुवर सरकार में तो 12 वे मंत्री का पद अंत अंत तक खाली ही रह गया और सरकार बदल गई. झारखंड मुक्ति मोर्चा भी अभी तक रघुवर सरकार की ही राह पर है, देखना है आगे आगे होता है क्या.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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