धनबाद(DHANBAD): झारखंड में स्कूली सरकारी शिक्षा एक बहुत बड़ी चुनौती है. सरकार की कई योजनाओं के बावजूद ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है. अधिकारी बच्चों को खोज कर स्कूल तक पहुंचाते हैं, नामांकन कराते हैं ,लेकिन बच्चे स्कूल में रुकते नहीं है. रामदास सोरेन झारखंड के शिक्षा मंत्री बने है. यह उनके लिए भी बड़ी चुनौती होगी. सरकारी स्कूलों की व्यवस्था भी इसमें कहीं ना कहीं कारक है. कही भवन है तो टीचर नहीं, कहीं टीचर है तो भवन नहीं. अच्छे सरकारी स्कूलों को जरूरत के हिसाब से सुविधाये नहीं मिलती. स्कूल के डिमांड कागज के फेर में फंसकर रह जाते है.
आंकड़ों पर भरोसा करें तो झारखंड के स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या पिछले तीन साल से लगातार कम हो रही है. आंकड़े के मुताबिक पिछले 3 साल में स्कूलों में 12वीं तक के नामांकित बच्चों की संख्या में लगभग नौ लाख की कमी आई है. यू डाइस रिपोर्ट के अनुसार राज्य में वर्ष 21-22 में कुल 79,70,0 50 बच्चे नामांकित थे. जो वर्ष 22 -23 में घटकर 72,0 9, 261 और 23- 24 में यह संख्या 70,97, 545 पर पहुंच गई. वर्ष 24- 25 की यू डाइस रिपोर्ट के लिए स्कूलों से जानकारी मांगी गई है. इधर, यह भी बातें सामने आ रही है कि राज्य के सरकारी स्कूलों में फंड रहते सभी बच्चों को पोशाक नहीं मिली है. 2024 -25 का सत्र मार्च में समाप्त हो जाएगा. जनवरी से फरवरी के अंत तक आठवीं से 12वीं कक्षा तक की बोर्ड परीक्षा भी हो जाएगी.
ऐसे में इन बच्चों को अगर पोशाक मिलती भी है, तो इसका उपयोग नहीं कर पाएंगे. एक बात यह भी सामने आ रही है कि जब जरूरत है, तब बच्चों को पोशाक या अन्य सुविधाएं नहीं मिलती. सरकारी स्कूल के कई भवन जर्जर है. उन भवनों के लिए निचले स्तर से निर्माण की अनुशंसा की जाती है. लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं होती. नतीजा होता है कि सब कुछ जैसे -तैसे चलता है. इधर, पिछले कार्यकाल में सरकार ने प्रदेश के कई स्कूलों को मॉडल स्कूल में तब्दील करने का निर्णय लिया था. भवन आदि निर्माण के कार्य भी हुए. प्रयोगशाला भी बनाई गई लेकिन स्कूल अभी भी कागज में ही मॉडल है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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