दुमका(DUMKA) :झारखंड वन संपदा से परिपूर्ण राज्य है. लेकिन राज्य की गठन होने के बाद वन माफियाओं द्वारा वन संपदा को दोहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ा गया हैं. यही कारण है कि आए दिन झारखंड में वृहत पैमाने पर पेड़ों की अवैध कटाई और लकड़ी की अवैध बिक्री की खबर सामने आती है. हालांकि वन विभाग की ओर से लकड़ी की अवैध कटाई पर कड़ी कारवाई तो की जा रही है,लेकिन इस कारवाई से वन विभाग भी कई सवालों के घेरो में आए हुए है.
दुमका,बिहार और पश्चिम बंगाल से सटे होने का फायदा उठा रहे है वन माफिया
बता दे कि सीमावर्ती जिलों में वन माफिया कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो रहे है. जहां दुमका बिहार और पश्चिम बंगाल से सटे होने का फायदा वन माफिया को मिल रहा है.वहीं दूसरा तरफ समय समय पर वन विभाग की कार्यवाई भी देखने को मिलती है. बता दे कि एक ताजा मामला सरैयाहाट थाना क्षेत्र के नया लोहमड़वा गांव का है जहां वन विभाग ने एक दर्जन से ज्यादा अवैध आरा मिल को सीज कर बड़ी मात्रा में लकड़ी को जप्त किया गया है.
वन विभाग की कार्यवाई पर, राजनीति बयान बाजी तेज
बता दे कि वन विभाग की कार्यवाई पर राजनीति ब्यान शुरु हो गई है.वहीं गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने विभागीय कार्यवाई पर सवाल खड़ा करते हुए अपने सोशल साइट पर लिखा कि कांग्रेस को वोट नहीं देने के कारण वन विभाग और झारखण्ड पुलिस ने आतंक मचा रखा है. बढ़ई और लोहार समाज के घर और मील को तोड़ा जा रहा है, महिलाओं को टारगेट किया जा रहा हैं.
वन विभाग ने कहा ,गुप्त सुचना के आधार पर हुई कारवाई
वहीं इस मामले पर वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि गुप्त सुचना के आधार पर नया लोहमड़वा में कई जगहों पर अवैध आरा मील संचालित किये जा रहें है, जिसके बाद यह छापेमारी की गई हैं. इस दौरान लकड़ी के अलावा अवैध आरा मील में प्रयुक्त कई मशीनरी को भी जब्त कर आगे की कार्यवाही की जा रही है।
किसके संरक्षण में फल फूल रहा था अवैध कारोबार
वन विभाग भले ही कहे कि गुप्त सूचना पर यह कार्यवाई हुई, लेकिन राजनीति से इतर सवाल तो वन विभाग और स्थानीय प्रसासन पर उठना लाजमी है। सवाल उठता है कि एक गांव में रातों रात तो एक दर्जन से ज्यादा आरा मिल नहीं लगे होंगे। जप्त लकड़ी के आधार पर यह भी नहीं कहा जा सकता कि रविवार की रात आरा मिल चालू हुआ और सोमवार को विभाग ने कार्यवाई कर उसे ध्वस्त कर दिया। वन विभाग को यह भी बताना चाहिए कि आखिर कब से अवैध आरा मिल संचालित था? वन संपदा के अवैध दोहन को रोकने के लिए प्रखंड से लेकर पंचायत स्तर तक वन विभाग के कर्मी लगे रहते हैं। आखिर सवाल उठता है कि इतने दिनों तक खुफिया तंत्र मृतप्राय क्यों हो गयी थी और अचानक जागृत कैसे हो गयी? आखिर किसके संरक्षण में यह अवैध कारोबार फल फूल रहा था?
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