रांची(RANCHI): विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनावी अखाड़े में उतरने वाली पार्टी JLKM सुर्खियों में बनी है. सुर्खियों की वजह कुछ और नहीं बल्कि पार्टी के सुप्रीमो टाइगर यानि जयराम महतो है. अब 09 दिसंबर से 12 तक विधानसभा का सत्र होने वाला है. अब सवाल है कि जयराम महतो सदन में किस तरफ बैठेंगे. हेमंत के खेमे में या फिर भाजपा के साथ. ऐसे में यह सवाल का जवाब भी बेहद आसान है. यह सब जयराम महतो के ऊपर निर्भर करेगा की आखिर वह कहां बैठना चाहते है.
अगर जयराम महतो सरकार को समर्थन देते है तो वह हां पक्ष की ओर बैठेंगे और अगर समर्थन नहीं देते है तो ना पक्ष में बैठेंगे. इस बीच अगर जयराम अलग बैठने की इच्छा जताते है और विधानसभा अध्यक्ष को पत्र देते है तो ऐसे में उन्हे अलग जगह दी जा सकती है. एक बात साफ है जयराम जहां भी बैठे लेकिन रहेंगे अगली पंक्ति में ही. क्योंकि यह पार्टी से अकेले विधायक है और ऐसे में पार्टी के सुप्रीमो के साथ-साथ खुद विधायक है तो उन्हे सबसे आगे की जगह दी जा सकती है.
अब समझिए क्या है हां और ना पक्ष
अगर देखें तो विधानसभा को चलाने के लिए पक्ष और विपक्ष की अहम भूमिका है. दोनों के बेहतर समन्वय के साथ ही झारखंड के लोगों के हित में योजना बनाई जाती है. जनहित में कई विधेयक सदन में लाए जाते है. इस विधेयक को पहले विधानसभा अध्यक्ष के पास पेश किया जाता है. जिसके बाद वोटिंग की प्रक्रिया होती है. ऐसे में वोटिंग के समय दो पक्ष होते है. “हाँ और ना” हाँ पक्ष इस विधेयक के पक्ष में वोट करता है और ना इसके विरोध में.
अब जयराम महतो के पुराने बयान को देखें तो साफ है कि शुरू में वह भले ही अलग रास्ते में जाएंगे. लेकिन जब सदन में 1932 ,नियोजन नीति पर बात होगी तो जयराम हेमंत सोरेन के साथ खड़े दिख सकते है. क्योंकि वह खुद भी कई बार बोल चुके है कि नीति सही रही तो साथ रहेंगे.नहीं तो अलग रास्ते में दिखेंगे.
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