धनबाद(DHANBAD) : क्या धनबाद में सांसद पशुपतिनाथ सिंह की हनक कम रही है या उनके खिलाफ कोई राजनीतिक साजिश की जा रही है. ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता ने तो कार्यक्रम में सांसद को नहीं बुलाया तो कहा जा सकता है कि विभाग राज्य सरकार के अधीन है लेकिन अगर कोल इंडिया की अनुषंगी इकाई बीसीसीएल सांसद की उपेक्षा करें तो इसे क्या कहा जाएगा. कोल इंडिया तो केंद्र सरकार के अधीन है. राज्य में तो अभी गठबंधन की सरकार चल रही है लेकिन केंद्र में तो भाजपा की ही सरकार है. बीसीसीएल के अधिकारियों द्वारा सांसद की उपेक्षा पर सांसद तो नहीं लेकिन उनके समर्थकों ने नाराजगी जाहिर की है.
सांसद समर्थकों ने बीसीसीएल प्रबंधन का फूंका पुतला
सांसद समर्थकों ने बीसीसीएल प्रबंधन का मंगलवार को पुतला दहन किया और कहा कि यह सिर्फ प्रोटोकॉल का उल्लंघन ही नहीं बल्कि सांसद का अपमान भी है. इस कार्यक्रम में धनबाद के भाजपा विधायक राज सिन्हा मौजूद थे. यानी विधायक को निमंत्रण दिया गया और सांसद को छोड़ दिया गया. शि लापट्ट पर भी सांसद पशुपतिनाथ सिंह का नाम अंकित नहीं है. इससे भी उनके समर्थक खासे नाराज है. खुलकर कुछ तो नहीं बोल रहे है लेकिन सांसद समर्थकों को विधायक की मौजूदगी पसंद नहीं आ रही है. विधायक के खिलाफ कोई भी टिप्पणी करने से बच रहे हैं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से दोषी बता रहे है. अटल स्मृति उद्यान के शिलान्यास समारोह में सांसद को नहीं बुलाया गया था. इस कार्यक्रम में विधायक राज सिन्हा और बीसीसीएल के सीएमडी मौजूद थे.
विधायक और सांसद को लेकर मनमुटाव की बातें सामने आती रही है
इधर, धनबाद के राजनीतिक हलकों में विधायक और सांसद को लेकर मनमुटाव की बातें सामने आती रही है. हालांकि, दोनों कभी इसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं करते. 2024 का चुनाव सामने है, राज सिन्हा भी 2024 में सांसद का चुनाव लड़ने की इच्छा रखते है. कई मौकों पर कह चुके हैं कि किसी भी कार्यकर्ता की इच्छा होती है कि वह लोकसभा का चुनाव लडे. अगर उनके मन में यह इच्छा है तो इसमें बुरा क्या है. लगभग इसी तरह की बात सांसद पशुपतिनाथ सिंह भी कहते है. वह कहते हैं कि टिकट देने की पार्टी में एक प्रक्रिया है, उस प्रक्रिया को जो पूरा करेगा, उसे ही टिकट मिलेगा. बात बिल्कुल सच है लेकिन इसके लिए जमीन तैयार करना होता है. वैसे, सांसद पशुपतिनाथ सिंह की जगह चुनाव लड़ने वालों कई लोग है. कुछ लोग धनबाद के हैं तो कुछ लोग धनबाद से सटे इलाके के भी है. सभी चाहते हैं कि 2024 का चुनाव टिकट हासिल कर ले. उनका तर्क होता कि बढ़ती उम्र के कारण हो सकता है कि उन्हें टिकट नहीं मिले. वैसे, धनबाद भाजपा का गढ़ माना जाता है.
तीन बार विषयक रहे और तीसरी बार सांसद है
सांसद पशुपतिनाथ सिंह लगातार तीन बार धनबाद विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे. उसके बाद पहली बार उन्होंने 2009 में धनबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और विजई रहे. 2014 में भी भारी मतों से जीते. 2019 में भी उनकी जीत हुई और तीसरी बार सांसद रहने वाले पशुपतिनाथ सिंह को धनबाद जिले के किसी कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया जाता है तो वैसे भी गंभीर मामला कहा जा सकता है. वैसे, पशुपतिनाथ सिंह रीता वर्मा की टिकट कटने के बाद सांसद का चुनाव लड़ा और अभी तक पीछे मुड़कर नहीं देखे है. रीता वर्मा 1991 से लेकर 2004 तक लगातार चार बार सांसद रही. कोयला राज्य मंत्री भी बनी. रीता वर्मा शहीद एसपी रणधीर प्रसाद वर्मा की पत्नी है और उनकी हत्या के बाद ही वह राजनीति में आई और कोयला मंत्री की कुर्सी तक पहुंची. हालांकि पशुपतिनाथ सिंह को भाजपा में लाने का श्रेय किसे है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उन्हीं के कार्यकाल में पहली बार पशुपतिनाथ सिंह धनबाद जिला भाजपा अध्यक्ष बने और उसके बाद लगातार बुलंदियों पर चढ़ते चले गए.
राज सिन्हा को भी राजनीति का ककहरा पढ़ाने का श्रेय पशुपतिनाथ सिंह को ही जाता है
राज सिन्हा को भी राजनीति का ककहरा पढ़ाने का श्रेय पशुपतिनाथ सिंह को ही जाता है. सांसद का चुनाव लड़ने के बाद धनबाद सीट से राज सिन्हा को टिकट दिलवाने में पशुपति बाबू की भी भूमिका थी. बाहरहाल धनबाद में प्रोटोकॉल का विवाद आगे क्या रुख लेता है, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन भाजपा के एक नेता की माने तो हो सकता है कि अधिकारियों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला उठे. यहां यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि रीता वर्मा भी जब सांसद थी तो उन्होंने बोकारो में आंदोलन के दौरान लाठीचार्ज के खिलाफ बोकारो के तत्कालीन एसपी राजेश चंद्रा के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला उठाया था. उसके बाद तत्कालीन एसपी की परेशानी बढ़ गई थी. बोकारो के बाद राजेश चंद्रा धनबाद के एसपी बने थे. अगर विशेषाधिकार का मामला उठता है और इसे साबित कर दिया जाता है तो अधिकारियों की परेशानी बढ़ सकती है.
रिपोर्ट : सत्यभूषण सिंह, धनबाद
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